ग़ज़ल देते तो अच्छा था
ग़ज़ल
देते तो अच्छा था
ख़ता जो भी हुई हमसे बता देते तो अच्छा था
चलो दो बात कड़वी कह रुला देते तो अच्छा था//
जहाँ भर में ढिंढोरा पीट कर बदनाम कर डाला
न गलती को हमारी यूँ हवा देते तो अच्छा था//
भरा गुब्बार जो मन में शिकायत और शिकवों का
बुला हमको अकेले में सुना देते तो अच्छा था//
बजाए बाँटने के ज्ञान उस भूखे बशर को तुम
अगर दो रोटियाँ सूखी खिला देते तो अच्छा था//
हमीं से चाहते हो प्यार में हर बार झुक जाएँ
अगर एक बार खुद को भी झुका देते तो अच्छा था//
बने जो प्यार के दुश्मन लिखी हुई सब किताबों से
कि किस्से लैला मजनूं के मिटा देते तो अच्छा था//
न यूँ हम काँच की तरह बिखर कर टूटे होते ‘ऋतु’
अगर तुम साथ मंज़िल तक निभा देते तो अच्छा था//
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ,उत्तर प्रदेश