विश्व मातृभाषा दिवस विशेष (21 फरवरी) मां की बोली… ना बन जाए ठिठोली!
आज विश्व मातृभाषा दिवस है। मातृभाषा को समर्पित दिवस…मातृभाषा यानि मां की बोली…अपने देश, अपने गांव, अपनी माटी की बोली! वह बोली जो बच्चा अपनी मां से, परिवार से, परिवेश से, बचपन के साथियों से, समाज से सीखता है…बिना किसी शिक्षालय में जाए! चलिए आज इस दिवस के बहाने अपने देश, समाज, शहर, गांव में अपनी बोली, अपने चलन को भी खंगाला जाए…
मातृ भाषा या चूं चूं का मुरब्बा!
अपने देश में डॉक्टर बनना मुश्किल हुआ तो यह ख्वाहिश पूरी करने बच्चे को मां बाप यूक्रेन या रशिया भेजते रहे हैं। इसके लिए उन्हे वहां जाकर पहले साल उनकी मातृभाषा सीखनी होती है और फिर वहीं की मातृभाषा में पढ़ाई करनी होती है…हां अंग्रेजी बतौर अलग भाषा वहां है, पर प्राथमिकता मातृभाषा को है। पर अपने देश में ऐसा नहीं। यहां सरकारी स्कूल जहां माध्यम हिंदी है, को निचले तबके का मानाजाता है और अंग्रेजी माध्यम शिक्षालय बतौर स्टेटस सिंबल के नजरिए से देखे जाते हैं। ऐसे में मातृभाषा की पहचान चूं चूं का मुरब्बा बन कर रह जाती है।
घणी घणी खम्मा!
एक कहावत बोली, भाषा को लेकर मेरे देश में प्रचलित है। कहा जाता है कि…
कोस कोस पर पानी बदले…
चार कोस पर बोली…
इस लिहाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी बोलियों, भाषाओं से भारत देश की माटी का श्रंगार हुआ है।
इसी संदर्भ में पश्चिमी राजस्थान में अभिवादन अभिव्यक्ति के लिए एक शब्द है…खम्मा घणी या घणी घणी खम्मा! घणी मतलब बहुतायत से और खम्मा यानी क्षमा मांगते हुए…तो भारत में मातृभाषा की जो स्थिति है, उसके लिए खम्मा घणी कहा जा सकता है। अन्य देशो में मातृभाषा का जो सम्मान है, वह यहां विलुप्ति पर है। अंग्रेजियत इस देश में भारी है। इसके चलते प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में बच्चा जिन मानसिक दबावों का शिकार होता है, वह बयां से बाहर है।
इतिहास के झरोखे से…
17 नवंबर 1999 को यूनेस्को द्वारा 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया गया था। यह 21 फरवरी 2000 से दुनिया भर में मनाया जा रहा है। यह घोषणा बांग्लादेशियों (तब पूर्वी पाकिस्तानियों) द्वारा किए गए भाषा आंदोलन को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई थी। मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए लंबे संघर्ष की कहानी भी है।
कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया गया था।
मातृभाषा संबंधित तथ्य…
-1994 में इथियोपिया में मातृभाषा और प्राथमिक शिक्षा के मद्देनजर अनुसंधान हुए, प्रयोग हुए और परिणाम यह निकला कि मातृभाषा में दी गई शिक्षा को बच्चे चालीस प्रतिशत की अधिकता से ग्रहण करता है, उसकी रुचि, उत्सुकता अन्य भाषा की तुलना में बहुत ज्यादा रहती है!
– यूनेस्को ने भाषायी विरासत के संरक्षण हेतु मातृभाषा आधारित शिक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दिया है। सांस्कृतिक विविधता की रक्षा के लिये स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक भी शुरू किया गया है। इसमें विश्व के विविध क्षेत्रों की विविध संस्कृतियों एवं बौद्धिक विरासत की रक्षा करते
मातृभाषाओं का संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है।
-हर दो सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है और विश्व एक पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत खो देता है।
-भारत में यह विशेष रूप से उन जनजातीय क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है जहाँ बच्चे उन विद्यालयों में सीखने के लिये संघर्ष करते हैं जिनमें उनको मातृ भाषा में निर्देश नहीं दिया जाता है।
उम्मीद का दिया… भाषा संगम
सरकार ने “भाषा संगम” कार्यक्रम शुरू किया है, जो छात्रों को अपनी मातृभाषा सहित विभिन्न भाषाओं को सीखने और समझने के लिये प्रोत्साहित करता है।
कार्यक्रम का उद्देश्य बहुभाषावाद और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना भी है।
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान सरकार ने केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान भी स्थापित किया है, जो भारतीय भाषाओं के अनुसंधान और विकास हेतु समर्पित है।
-साधना सोलंकी
(लेखिका राजस्थान पत्रिका, संपादकीय विभाग से सेवानिवृत्त)