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द्वापर युग की द्रौपदी

  1. द्वापर युग की द्रौपदी
    (मन की कल्पना)

द्रोपदी ब्रह्मांड मे प्रकृति का अद्भुत व अनोखा रूप राजा द्रुपद ने सोचा भी ना था यज्ञ में उन्हें परिपूर्ण में युवान के रूप में द्रोपदी प्राप्त होंगी पर साथ ही साथ आकाशवाणी भी हुई कि ये कन्या कौरवों के विनाश का कारण बनेगी कालांतर में स्वयंवर के बाद माता कुंती ने द्रोपदी में वे विलक्षण गुण देखें जब अर्जुन ने द्रोपदी को कुंती के सामने किया उन्हें समझते देर न लगी की द्रोपदी ब्रह्मांड की एकमात्र सशक्त रूप में उत्पन्न हुई है जिसमें यह क्षमता है कि वह पंचतत्व को अलग-अलग करने का सामर्थ्य रखती है क्योंकि खुद कुंती राजकुमारी के रूप में पंच तत्वों की शक्तियों को आत्मसात कर चुकी थी फल स्वरुप कर्ण के रूप में कुंडल और कवच धारण किए अग्नि तत्व अर्थात सूर्य का उपहार उन्हें प्राप्त हो चुका था ।
माता कुंती जानती थी कि उनके पांच पुत्रों में युधिष्ठिर में आकाश तत्व की प्रधानता थी ।अर्जुन में अग्नि तत्व की, भीम में पृथ्वी तत्व की ,नकुल और सहदेव में क्रमशः जल और वायु तत्व की प्रबलता थी। यह सब गुण द्रोपदी में स्पष्ट रूप से दिख रहे थे ।तभी उन्होंने पांचो भाइयों में द्रोपदी को बांटने की बात कही थी ।
राज्य की लोलुपता एवं द्रौपदी का स्वयंवर में ना जीते जाने पर शकुनी और दुर्योधन बहुत व्यथित थे।झ इसलिए कुटिल चाल के साथ में शकुनी मामा ने जुए की चाल चली और इस चाल में युधिष्ठिर फंस गये साथ में सुरा पान चल रहा था भाईयों को हारने के बाद युधिष्ठिर से कर्ण द्वारा यह कहा गया पांच पतियों की भार्या वेश्या ही होती है ।उसे यहां पर बुलाया जाए इतना कहना था दुर्योधन ने दुशासन से कहा जाओ द्रौपदी को लेकर आओ और अगर वह ना आए तो उसके बाल खींच कर लाना। द्रोपदी के पूछे जाने पर यह बताओ पहले युधिष्ठिर अपने आपको हारे थे कि मुझे हारे थे ,और अगर अपने आपको हारे हैं तो मुझे हारने का व मुझे दावं पर लगाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं ।
पर यह कौन सुनने वाला था। दुशासन द्रौपदी के लंबे लंबे केश को पकड़कर घसीटता हुआ सभा में लेकर आ गया‌ जहां एक से एक दिग्गज भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, गुरु कृपाचार्य , विदुर , अंधे धृतराष्ट्र एवं अनेक विद्जन बैठे थे द्रोपदी अपने आप को संयमित नहीं कर पा रही थी। कि वह इस हस्तिनापुर की कुलवधू है और उन्हें एक वस्त्रा होने के बाद इस रूप में लाया गया सबसे पहले द्रौपदी ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि अगर आप जुयें में मुझे दांव पर लगाया था तो आप होते कौन हैं ,मुझे दावं पर लगाने वाले और अगर आप पहले अपने को हार चुके थे तो फिर आपका मुझ पर कुछ भी अधिकार नहीं बनता था ।कि आप मुझे दांव पर लगाए आप ही अकेले मेरे पति नहीं आपने अपने भाइयों से पूछा था ? पर वहां कुछ कहना या सुनाना कोई मायने नहीं रखता था। क्योंकि द्रोपदी की नजर जब अपने पतियों पर गई तो अवाक़ रह गई पतियों को अपना ही होश नहीं था ।
सुरा पान में इतने डूबे हुए थे कि वे उसे पहचान भी नहीं पा रहे थे अपने पतियों को इस रूप में देखकर कोई खड़ा कोई बैठा कोई लेटा और कोई आशंकित नजरों से एकटक देख रहा है अपना ही होश नहीं था जिन्हें इतना समझते देर नहीं लगी इन पांचों में से कोई उसकी सहायता करने वाला नहीं ।
तब वह सभा में बैठे वरिष्ठ जनों से अपनी न्याय की गुहार करने लगी सभा में पांडवों की भांति सुरा के नशे में वे सभा जन दिखाई दे रहे थे ।साथ ही धृतराष्ट्र के अंधत्व को भी धारण किए हुए थे फिर भी पांचाली ने सभी से निवेदन किया कि मुझे न्याय मिले और मुझे इस तरह से क्यों लाया गया। न्याय कीजिए मेरे साथ, पर यह क्या एक जोरदार आवाज ने द्रौपदी का ध्यान खींचा कि इस एक वस्त्रा पांचाली को निर्वस्त्र किया जाए ! कहां द्रौपदी सब से विनती कर रही थी कि उसके साथ न्याय हो और उसके ऊपर यह इतना बड़ा कुठाराघात इतना बड़ा अपमान नारी की लाज ही संसार में उसकी बहुत बड़ी शक्ति है ।और आज व सरेआम लूटी जा रही थी कहां वह न्याय मांगने आई थी कहां !उसकी लाज़ ही दांव पर लग गई उसी क्षण उसे अपने यज्ञ पिता की याद आई पिता से गुहार करने लगी हें पिता मुझे आप अपने यज्ञ में समाहित कर लीजिए ।
मुझे आप अपने पास बुला ले फिर मुझे अग्नि स्नान करा दे मुझे इस संसार में ही नहीं रहना ।क्योंकि मेरी यहां पर कोई सहायता करने वाला नहीं है ।
सर सब तरह से आशा छोड़ चुकी तब अपने प्रिय सखा कृष्ण को आवाज दे पूरी ताकत लगाकर
द्रौपदी चीत्कार उठी उसे स्थान की प्रत्येक वस्तु हिल उठी उसने केवल और केवल कृष्ण को याद किया अपने सखा को याद किया ।
दुशासन वस्त्र खींचने का काम शुरू कर चुका था।

” द्रोपदी सिर्फ और सिर्फ पूरी तरह समर्पित हो चुकी थी दोनों हाथ उठाकर उन्होंने कृष्ण का आह्वान किया ”
क्योंकि हमेशा कृष्ण ने यह कहा था हे सखी जब भी कोई आवश्यकता पड़े तुम्हें सिर्फ और सिर्फ मुझे ही याद करना मैं तक्षण तुम्हारे सामने रहूंगा इसे मिथ्या ना समझना।
मेरी बात याद रखना उसे अपने सखा की याद हो आई वह सखा जो उसके दुख सुख का साक्षी साथी था हमेशा उसके साथ रहता था ।
यआज वह सिर्फ और सिर्फ पूरी तरह से अपने कृष्ण को गोविंद को याद करने लगी एकमात्र कृष्ण उसकी आंखों के सामने थे ।
द्रोपदी ने अपनी पूरी ऊर्जा कृष्ण को बुलाने में लगा दी हे कृष्ण हे गोविंद आप ही मेरी एक रखवाले हो आप ही मेरी रक्षा कर सकते हो इतना कहना था कि कृष्ण का मनमोहक रूप द्रौपदी के सामने था ।
वह चिर परिचित मुस्कान वह कमलनयन मोर पंख मुकुट पर सुशोभित आधर पर मुरली रखी, पीतांबर धारी सामने खड़े थे ।वे इतनी मधुर बांसुरी बजा रहे थे की पांचाली अपना सुध बुध खो कर दोनों हाथ उठाकर नाचने की मुद्रा में उपस्थित हो गई थी। कृष्ण ने कृष्णा को देखा जो कि अपनी सुध बुध भुला चुकी थी ।
द्रौपदी और कृष्ण मे वार्तालाप होने लगी पूरा वातावरण बदल चुका था। चारों तरफ वाटिका वृंदावन का नजारा सुंदर- सुंदर फूल, सुंदर-सुंदर सखी सहेलियां मोर एवं पशु पक्षी पक्षियों की बोली और उसके बीच में कन्हैया।
कृष्ण ने बताया हे सखी आज मैं तुम्हारे लिए बहुत सारी साड़ियां लेकर आया हूं ।
तुम्हें याद है मेरी छुगली में चोट लगी थी और तुमने अपनी सबसे प्यारी बेशकीमती साड़ी फाड़कर मेरी उंगली में लपेटी थी
मैंने तुमसे उस समय कहा था द्रोपदी मैं तुम्हारे लिए इतनी साड़ियां लेकर आऊंगा कि तुम देखती रह जाओगी । और यह क्या देखते ही देखते साड़ियों का ढेर कृष्ण ने लगा दिया और कहा एक से बढ़कर एक तुम्हें उनमें से चुनना है और जो रंग तुम्हें पसंद आए और उसमें तुम क्या और परिवर्तन चाहती हो वह भी बताती जाना ।मैं वैसी साड़ी तुरंत तुम्हें दूंगा और फिर शुरू हुआ गोविंद का साड़ियों को दिखाना।
द्रौपदी माया रूपी साड़ियों को द्रोपदी समझ नहीं सकी स्त्रियों का माया रुपी रूप स्पष्ट दिख पड़ा । किस माया में उलझ गई
अरी सखी यह सतरंगी साड़ी मुझे सबसे प्रिय हैं पर है कृष्ण इसमें कोई किनार नहीं है ।
अच्छा मैं इसमें किनारे लगा देता हूं गोटे वाली और जरी दार साड़ी कृष्णा के हाथ में थी । द्रौपदी कहने लगी अभी दूसरी वाली देखो यह लाल रंग है इसमें हरे रंग का गोटा लगाएं और यह साड़ी वह साड़ी तो बहुत सुंदर है पर इसमें बूटी नहीं है कोई बात नहीं यह बूटी तैयार है।
ना जाने कब तक कृष्ण अपनी कृष्णा को तरह-तरह के साड़ियां दिखा दे रहे और कृष्णा उन साड़ियों को देख देखकर मोहित होती रही, बीच में कृष्ण ने रोका और कहा हे कृष्णा यह गजरा तो देखो वृंदावन की गलियों से ग्वालिन ने बना कर लाई हैं ।
इसके साथ यह गजरा बहुत अच्छा लगेगा देखो चारों तरफ गजरे के फूलों की महक फैल गई द्रौपदी उसी में ही मगन हो गई गजरा बहुत अच्छा लगेगा ।
तरह तरह की साड़ियां तरह-तरह के गजरे दिखाने में कितना समय निकल गया कृष्णा को इसका आभास नहीं हो सका। तंद्रा तो उस समय टूटी जब कृष्ण ने कहा हे सखा पांचाली मुझे जरूरी काम याद आ गया और हां अगर तुम्हें कोई और साड़ी पसंद आए या कोई और जो इसमें नहीं है की याद करके मुझे जरूर बताना कृष्ण जाने को तैयार हो गए कृष्ण ने कहा थोड़ी देर और रुक जाओ कृष्ण से मना करते ना बना कुछ समय पश्चात कृष्ण का द्रौपदी से पुनः मनुहार किया जाना हे कृष्णा अब तो जाने दो अब द्रौपदी कृष्ण की बातों को ना टाल सकी ठीक है गोविंद और कृष्ण का का जाना हुआ ।
कृष्णा का अपने रूप में लौटना हुआ। उनके दिमाग की एक-एक परत खुलती चली गई पिछली चीज उन्हें याद आती रही अचानक वह शहर उठी कि वे राज्यसभा में खड़ी है तंद्रा टूटी तो दिखा तो चारों तरफ साड़ियां ही साड़ियां थी जिसे कृष्ण दिखा रहे थे और वह देख रही थी लग नहीं रहा था कि साड़ियों के बीच में द्रोपदी है या द्रोपदी ही साड़ी है गजरे की महक चारों ओर व्याप्त थी। तंद्रा में तंद्रा टूटी अचानक वह अपनी पुरानी स्थिति में लौट आई परतें दर परते खुलने लगी। मुझे बाल खींचकर लाया जा रहा है मुझे सभा में निर्वस्त्र करने के लिए दुशासन को कहा गया है सभी सभा मे सभीअनभिज्ञ बैठे हैं और उसकी लाज लुटने वाली है द्रोपदी ने चारों ओर से नजर दौड़ाई तो देखा एक अत्यंत तीव्र सतरंगी इंद्रधनुष रंग चारों तरफ बिखरा था। जिसमें हाथ को हाथ नहीं दिखाई दे रहा था। नजरों पर जोर डाल के द्रौपदी ने देखा शकुनी दुर्योधन करण अर्ध चेतन अवस्था में भूमि पर गिरे पड़े थे। दुशासन मूर्छित अवस्था में पड़ा था साड़ियों का ढेर उसके पास पड़ा था । मां गांधारी मां कुंती हाथ जोड़े खड़ी थी।
सभा में सभी लोग हाथ जोड़कर खड़े हैं और हे कृष्ण हे गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव गुंजायमान हो रहा था धन्य द्रौपदी के सखा का अद्भुत प्रेम जिन्होंने द्रोपदी की लाज बचाने में इस तरह का अद्भुत रूप अपनाकर द्रौपदी के मान की रक्षा की।

डॉ सरिता अग्निहोत्री सजल मंडला मध्य प्रदेश

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