क्या क्षमा भाव हमारी कमजोरी को उजागर करता है??
(आलेख–)
क्या क्षमा भाव हमारी कमजोरी को उजागर करता है??
क्षमा का अर्थ —
क्षमा भाव को पूर्णतया समझने के लिए आइये सबसे पहले हम जानते हैं कि क्षमा का क्या अर्थ है?
क्षमा का अर्थ है-“सहनशीलता”
यदि कोई व्यक्ति गलती करता है एवं अपनी गलती स्वीकार करते हुए क्षमा मांग लेता है तो वह सामने वाले व्यक्ति का क्रोध बहुत हद तक दूर करने में सफल जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी व्यक्ति ने आपके प्रति कोई अपराध किया है, अथवा अन्य किसी भी परिस्थिति में आपके साथ दुर्व्यवहार किया है तो उस कार्य के फल स्वरूप आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति उत्पन्न होने वाले आक्रोश एवं क्रोध के भाव को मौन रहकर शांत कर लेना ही क्षमा कहलाता है।
शास्त्रों में लिखा गया है कि – “क्षमा वीरस्य भूषणम” अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है।
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संघर्षमय होता है। व्यक्ति जीवन काल में अनेक प्रकार के सुख- दुख, हानि- लाभ,यश -अपयश आदि के सोपान पार करता हुआ उन्नति अथवा अवनति के मार्ग पर अग्रसर होता रहता है। अतः जीवन में आने वाले अनेक प्रकार के विघ्न बाधाओं को दूर करने एवं सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने हेतु क्षमा माँगने एवं क्षमा करने से दोनों जन का भला होता है।
क्षमा भाव को इस अनुपम उदाहरण के द्वारा सरलता से समझा जा सकता है – “वास्तव में तो क्षमा ऐसी सुगंध होती है, जैसे डाली से तोड़ा गया फूल अपनी खुशबु से उन्हीं हथेलियों को सुंगधित कर जाता है जिन हाथों ने उसे डाली से तोड़कर विलग किया था।”
क्षमा भाव का महत्व-
यह हम सभी जानते हैं कि समस्त मनुष्यों में सर्वगुणसंपन्न कोई भी व्यक्ति नहीं होता। सभी मनुष्यों के भीतर गुण एवं दोष समाहित होते हैं। इसलिए जीवन को सुचारू रूप से व्यतीत करने के लिए व्यक्ति गलत आदतों एवं व्यसन आदि को आत्म अनुशासन द्वारा सुधारने का प्रयास करते हैं, एवं सत्साहित्य तथा अच्छी संगति के सानिध्य में रहकर अच्छी आदतों एवं व्यवहार को अपना लेते हैं। इसी कारण ऐसे जन सभी के साथ सामंजस्य स्थापित करके जीवन को सरलता से जीने योग्य बना लेते है।
हमारे बुजुर्ग जन अक्सर कहते भी हैं कि मानव गलतियों का पुतला होता है। अतः अपने जीवन के समयकाल में सभी मनुष्य गलतियां करते हैं। और जिनके लिए बाद में उन्हें पछताना भी पड़ता है। जो व्यक्ति अपने जीवन काल में होने वाली गलतियों से सबक लेते हैं, और गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगने में कोई संकोच नहीं करते, सच्चे अर्थों में वही मनुष्य अक्लमंद या समझदार कहलाते है। उनकी नेकनीयत, सुन्दर आचरण एवं व्यवहार शीलता के कारण उनके आगे बढ़ने के द्वार स्वयंमेव खुलते चले जाते हैं।
अतः जब हमसे गलतियां होती हैं तो हमें क्षमा मांगना भी आना चाहिए। साथ ही अन्य लोगों द्वारा की गई गलतियों को क्षमा करने का साहस रखते हुए हमें उनके प्रति दरियादिल भी होना चाहिए। इस सृष्टि में सभी मनुष्यों का जीवन कर्मों के आधार पर चलता है *रामचरितमानस में बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है –
“कर्मप्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करि तो तस फल चाखा।।”
अर्थात इस कर्म प्रधान विश्व में कर्म के आधार पर ही फल का मिलना निश्चित है।
अतः किसी के द्वारा की गई गलती को क्षमा कर देने से दोनों ही मनुष्य के कर्म बंधन को काटना सरल हो जाता है। वरना एक दूसरे के साथ मनो-मालिन्य के भाव रखने से कर्मबंधन में बंधकर फिर से चौरासी के चक्कर काटने के लिए इस दुनिया में साथ आना जाना पड़ता है।
अन्य धर्मों में क्षमा का महत्व —
हमारी सनातन धर्म संस्कृति में एवं अन्य सभी धर्मों में क्षमा भाव का बहुत महत्व बतलाया गया है। जैन धर्म में क्षमाभाव को अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। जैन धर्म के दशलाक्षणिक व्रत उपवास पर्व पर आचार्य जन कहते हैं कि – क्षमा मांगने से अंहकार ढलता एवं गलता है। पर्युषण पर्व क्षमा के आदान-प्रदान का पर्व है। जैन धर्मावलंबी जनसमूह से क्षमा मांगने एवं क्षमा करने के भाव को उत्सव रूप में मनाते हैं।
कुरान शरीफ में लिखा है कि धैर्य रखकर माफ करने वाले व्यक्ति बहुत हिम्मत वाले होते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में लिखा है कि क्षमाशील व्यक्ति को रोग नहीं सताता। और वह यमराज से भी नहीं डरता।
निष्कर्ष —
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि झुककर चलने से ही व्यक्ति ऊँचाई को प्राप्त करता है। आधुनिक युग में संयुक्त परिवार, आपसी प्रेम भाव का स्रोत सूखने लगा है। अब एकल परिवारों की प्रधानता के कारण असहनशीलता का व्यवहार बढ़ता जा रहा है। समाज में एवं मानव हृदयों में सद्भावना एवं मानवता को जीवित रखने हेतु क्षमा भाव को आपसी प्रेम भाव को प्रमुखता मिलनी चाहिए। आपसी सहयोग एवं प्रेम विश्वास के बल पर कठिन से कठिन परिस्थितियों का मुकाबला किया जा सकता है। अतः इंसान को चाहिए कि आपसी वैर भाव को भुला कर एक दूसरे को गले लगाएं। *क्योंकि क्षमा भाव सर्वोत्तम भाव है। क्षमा भाव से भावों में साहस की शक्ति,भाव उच्चता एवं निर्मलता आती है। क्रोधादि कषायों को छोड़कर आत्मा शुद्ध होती है। राग द्वेष अंहकार, ईर्ष्या के भाव मिटते हैं। प्रत्येक व्यक्ति सर्वोच्च भाव नैतिक गुणों का वरण करके अपनी आत्मा का उद्धार स्वयं ही कर सकता है। इसलिए आत्मोद्धार के साथ ही मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।
सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश