आईए पर्यावरण का करें संरक्षण… इसे हम, बनाएं स्वच्छ सुन्दर , सौम्य और स्वर्णिम …
आईए पर्यावरण का करें संरक्षण… इसे हम, बनाएं स्वच्छ सुन्दर , सौम्य और स्वर्णिम …
भारतीय दर्शन यह मानता है कि इस देह की रचना पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटकों प्रथ्वी,जल,वायु अग्नि ओर आकाश से निर्मित हुई है।भारतीय संस्कृति को आरण्यक संस्कृति भी कहा जाता है हमारे ऋषि पुरुष सर्वज्ञ थे ,वे सृष्टि के सबसे बड़े सत्य को जान गये थे कि सृष्टि का अस्तित्व प्रकृति की समृद्धि पर आश्रित है इसलिए उन्होंने ऐसा जीवन दर्शन विकसित किया जो प्रकृति उपासक था ,अरण्य पर आदृत था और इसी दर्शन से विकसित हुई ऐसी जीवन शैली जो पर्यावरण के प्रति सजग और आस्थावान थी। हमारे पूर्वज वन संपदा का महत्व समझते थेऔर इसलिए पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक थे। पर्यावरण के तत्वों ,जैसे जल पृथ्वी अग्नि वायु आकाश वनस्पति इत्यादि के प्रति हमारे ग्रंथो में हमारी लोक संस्कृति में असीम श्रद्धा का भाव परिलक्षित होता है प्रकृति की गोद में पलने वाले ऋषि मुनियों ने वृक्ष और जल की महता स्वीकारते हुए एक श्लोक में कहां है कि वृक्ष जल है , जल अन्न है और अन्न जीवन है ।पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हमारे पूर्वजों अर्थात ऋषियों ने अपनी तपस्थली ,आवास और आश्रमों में पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने वाले दीर्घजीवी एवं स्वास्थ्य के लिए उपयोगी वृक्षों को लगाकर और उनके महत्व को देखते हुए उनके संरक्षण और समर्थन के लिए उन्हें पूजनीय भी बनाया ।वृक्ष ,नदी सरोवर पोखर, कुआं सब की उपयोगिता समझते थे ।यही नहीं मिट्टी, अन्न पशु, पक्षी सबकी भरपूर उपस्थिति ही मनुष्य के जीवन का आधार है ,यह विचार कर हमारे पूर्वजों ने सबको अपनी उपासना में स्थान दिया हम उस महान संस्कृति के वाहक हैं जिसका लोकमानस जीवन का प्रतिफल प्रकृति और पर्यावरण को समर्पित कर जीता था सत्य तो यह है कि जब हम लोग कहते हैं इस लोक में मनुष्यों का समूह ही नहीं सृष्टि के चर अचर सभी सम्मिलित होते हैं पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी ,पर्वत सब लोक हैं और सब के साथ सांझेदारी की भावना लोक दृष्टि है सबको साथ लेकर चलना ही लोकसंग्रह हैं और इन सबके बीच में जीना यही सर्वोत्तम लोकयात्रा है ।
सनातन धर्म एवं संस्कृति में तुलसी पूज्य है, हर घर में तुलसी का पौधा हो यह रीति अनंत काल से चली आ रही है तुलसी का पौधा सबसे अधिक प्राणवायु देता है ।तुलसी दल का सेवन रोग व्याधियों से दूर रखता है ।नीम का वृक्ष। हमारे लिए बहुमूल्य आयुर्वेदिक है,यह सत्य भी उपस्थित है कि वृक्ष पर्यावरण का मुख्य आधार है वृक्ष कट गया तो पंछी कहां जाएंगे ।
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि वृक्षो में ,मैं पीपल हूं ।पीपल में विष्णु जी का वास और ज्ञान देवता के माध्यम से प्रगति और शीतला माई का वास मांगलिक कार्यों में आम की लकड़ी व आम की बोर को शुभ मानकर वृक्षों का संरक्षण करने वाले हमारे पूर्वज कैसी अनोखी दूर दृष्टि रखते थे भारत की महान संस्कृति में तुलसी एकादशी, आंवला नवमी, वट सावित्री आदि पर्व प्रकृति संरक्षण के मुख्य आदर्श सोपान है। हम देखते आएं हैं ,हमारे लोग चित्र आलेखनों में समस्त चराचर जगत को सम्मिलित कर मनुष्य ने सबसे पहले ज्ञान यही सांझा किया, कि प्रकृति ,वनस्पति प्राणी, जगत का सम्मान हो। पर्यावरण की चिंता क्या आपने ध्यान दिया है कि हमारे यहां प्रत्येक व्यक्ति दैनिक चर्या में , प्रकति के साथ आत्मिक रूप से सदा सदा से जुड़ा रहा है।
हमारे यहां शास्त्रों में अनेक उदाहरणों से सिद्ध होता है कि हमारे पूर्वज ‘वसुधैव कुटूमबकम ‘ अर्थात – सम्पूर्ण विश्व ही हमारा परिवार है, सर्वमान्य धारणा को आत्मसात किए हुए हैं।
1पर्यावरण क्या है? पर्यावरण संरक्षण क्या है?
पर्यावरण शब्द का अर्थ है- परि+आवरण के संयोग से बना है,परि का अर्थ है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है परिवेश। अर्थात हमारे आसपास का वातावरण जिसमें हम-सब रहते हैं, पर्यावरण है।
पर्यावरण संरक्षण क्या है?
हमारे चारों ओर का वातावरण है हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण संरक्षण की ओर ध्यान दें और उसे संवर्धित करें।पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को सुरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें क्योंकि पर्यावरण और प्राणी एक दूसरे पर आश्रित है। अत्यधिक जनसंख्या ,जलप्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग से लेकर वनों की कटाई और प्रदूषण तक यह मानव जाति के लिए गंभीर खतरा है । पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है खासकर तब जब डिजिटल मीडिया पर्यावरण संरक्षण के लिए क्रांति लाने की क्षमता रखता है। अतः ऐसे अनेक कारण हैं,जो पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें हर हाल में सचेत करते रहते हैं।
पर्यावरण संरक्षण के प्रकार:
मृदा संरक्षण,जल संरक्षण,वन संरक्षण, वन्य जीव संरक्षण
, जैव-विविधता संरंक्षण
पर्यावरण संरक्षण का हमारे जीवन में महत्व:
वर्तमान में ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से पर्यावरण का बहुत महत्व रहा है क्योंकि प्रकृति का संरक्षण करना मतलब उसका पूजन करने के समान होता है हमारे देश में पर्वत नदी ,वायु, ग्रह नक्षत्र ,पेड़ पौधे ये सभी कहीं ना कहीं मानव के साथ जुड़े हुए हैं ,परंतु बढ़ते विकास के कारण इसे लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
पर्यावरण संरक्षण का निम्न महत्व है :
पर्यावरण संरक्षण वायु, जल, भूमि प्रदूषण को कम करता है। बायोडायवर्सिटी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण का बहुत अधिक महत्व है। पर्यावरण संरक्षण सभी के सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हमारे ग्रह को ग्लोबल वार्मिंग से हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए भी पर्यावरण संरक्षण निरंतर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पर्यावरण संरक्षण सम्पूर्ण जड़ और चेतन का समुचित समन्वय स्थापित करने का कार्य निरन्तर करता है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम:
संसद द्वारा 23 मई 1986 को पारित किया गया था ओर 19 नवंबर 1986 को लागू किया गया था इसमें चार अध्याय तथा 26 धाराएं होती है इसी पारित करने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को भारत में कानून बनाकर लागू करना है प्रथम अध्याय की धारा एक के अनुसार इसका विस्तार संपूर्ण भारत में है ।प्रथम अध्याय की धारा 2 में पर्यावरण प्रदूषण परिसंकटमय पदार्थ अधिभोगी शब्दों की विशेष परिभाषा गई है। द्वितीय अध्याय में चार धाराएं है जिसमें धारा 3 में पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए उपाय करने की केंद्र सरकार की शक्तियों तथा कृत्य धारा 5 में निर्देश देने की ।धारा 6 में पर्यावरण प्रदूषण को विनियोजन करने हेतु नियम का उल्लेख है।
अध्याय 3 में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण तथा उप शासन से संबंधित 7 से 17 अर्थात 11 धाराएं, धारा 5 में उपलब्धियों का उल्लंघन करने पर दंड शक्ति संबंधित कानून का प्रावधान किया गया है ।अध्याय 4 में 18 से 26 अर्थात कुल 9 धाराओं में कानून का वर्णन है इनमें सद्भाव में की गई कार्यवाही को संरक्षण अपराधों का संज्ञान प्रत्यायोजन की शक्तियां नियम बनाने की शक्तियों का उल्लेख है।
वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता क्यों है :
वर्तमान में पर्यावरण असंतुलित हो गया है बढ़ती आबादी, औद्योगिकरण, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध कटाई से वर्तमान विश्व का तापमान चिंतित स्तर को बढ़ा रहा है । अतः नीचे कुछ कारण दिए हैं ,जो पर्यावरण संरक्षण की महती आवश्यकता बताते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस प्रभाव, ग्लोबल वार्मिंग, ब्लैक हॉल इफेक्ट आदि को कम या कंट्रोल करने के लिए पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है ।पेड़ कटते जा रहे है जिससे वन क्षेत्र कम हो रहा है। नदियों का जल भी प्रदूषित हो रहा है, ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ रही है, इसलिए हमें अनिवार्य रूप से पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है। मिथेन गैसों के साथ-साथ क्लोरोफ्लोरोकार्बन की भारी उपस्थिति ने ओजोन परत को बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया है, यह ग्रह पर अम्ल वर्षा और त्वचा कैंसर का कारण बनता जा रहा है , ग्लेशियर पीघलकर समुद्र में पानी के स्तर को बढ़ा रहे हैं अतः अनेकों ऐसे कारण हैं जिनके कारण पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता बढ़ गई है।
*भारत के अत्यधिक प्रदूषित शहर: दिल्ली, मुम्बई, बैंगलोर, कोलकाता, चेन्नई है
*पर्यावरण संरक्षण के अहम उपाय:
1. हर एक व्यक्ति पेड़ पौधे लगाए ,अपने घर फ्लैट या सोसाइटी में हर वर्ष एक पौधा अवश्य लगे और उसकी देखभाल करके उसे एक पूर्ण वृक्ष बनाएं ताकि वह विषैली गैसों को रोकने में मदद कर सके।
2. यूज एंड थ्रो की दुनिया को छोड़कर उन्हें सहेजने वाली सभ्यता को अपनाया जाए ।
3. अपने भवन में चाहे व्यक्तिगत हो या सरकारी कार्यालय हो ,में वर्षा जल संचयन प्रणाली प्रयोग में लाई जाए।
4. जैविक खाद्य अपनाएं।
5. अपने आसपास के वातावरण को सदा स्वच्छ रखें। सड़क पर कूड़ा करकट मत फैंके ।
6 नदी तालाब जैसे जल स्रोतों के नजदीक कूड़ा न डालें ।
7. जितना खाएं उतना ही ले,
8. दिन में सूर्य की रोशनी से ही काम चलाएं काम नहीं होने की स्थिति में बिजली से चलने वाले उपकरणों के स्विच बंद रखें ,सीएफएल का उपयोग कर ऊर्जा बचाए।
9. वायुमंडल में कार्बन की मात्रा कम करने के लिए सौर ऊर्जा का अधिक इस्तेमाल करें, सोलर कुकर का इस्तेमाल बढाए एवं स्वच्छ ईंधन का प्रयोग करें।
10.फोन, लैपटॉप, मोबाइल आदि का इस्तेमाल पावर सेविंग मोड पर करें ।
11.जितना हो सके ठंडे पानी से कपड़े धोए ड्रायर का प्रयोग नहीं करें ।
12.जितना हो सके पैदल चल कम दूरी तय करने के लिए पैदल चले या साइकिल का प्रयोग करें।
13. पैकिंग वाली चीजों को कम से कम मात्रा में प्रयोग करें।14.डिस्पोजल वस्तुओं -जैसे प्लास्टिक के गिलास पानी की छोटी-छोटी बोतल और प्लेट के प्रयोग से परहेज़ करें ।
15.. कूड़ा करकट, सूखे पत्ते फसलों के अवशेष और अपशिष्ट को न जलाएं ,इससे पृथ्वी के अंदर रहने वाले जीव मर जाते हैं और वायु प्रदूषण स्तर में वृद्धि होती है।
16.पानी का प्रयोग जहां भी जरूरत हो वही ,सही ओर समुचित मात्रा में ही करें।
17 पर्यावरण संरक्षण में हमारे पूर्वजों द्वारा की गयी अथाह संरक्षण सेवा,के पदचिन्हों पर चलें, सभी को चलने के लिए प्रेरित करें।
16. तीन R, रीसाइकल ,रिड्यूस और रियूज का हमेशा हमेशा के लिए ध्यान रखें।
17. पर्यावरण संरक्षण करने वाले प्रमुख योगदान व्यक्ति को समाज, संस्थाओं, सरकारों द्वारा समय समय पर प्रोत्साहित कर सम्मानित किया जाए।
18. पर्यावरण संरक्षण में हर एक घर, समाज, जिला,राज्य देश ओर सम्पूर्ण दुनिया निरन्तर सेवारत रहे।
19. अर्थात हम सभी को उक्त संबंधित, सभी कार्य व उपाय करने होंगे जिनसे मर्दा ,जल, वायु ,आकाश, प्रथ्वी ,हर तरीके से स्वच्छ, सुंदर , रमणीय, और स्वच्छंद बने।
निष्कर्ष : आज के भौतिकवादी युग में पर्यावरण संकट बहुत ही खतरनाक होता जा रहा है। आज स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि जीवन के लिए अनिवार्य जल,थल,वायु, तीनों प्रदूषण से ग्रसित है,इसके अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण और रेडियो एक्टिव प्रदूषण का खतरा भी शीश पर मंडराने लगा है पृथ्वी की सतह पर 43 प्रतिशत क्षेत्र सुखे, बंजर व रेगिस्तान के रूप में विद्यमान है। उसमें से 67% क्षेत्र मानव निर्मित है अर्थात मनुष्य अपनी कब्र स्वयं खोदता ही जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 51% प्रदूषण उधोगों से,27% प्रदूषण वाहनों से, 8% फसल जलाने से, तथा 14% घरेलू व अन्य कारणो से होता है। वस्तुतः कृषि में प्रयुक्त कीटनाशक दवाएं , कारखानों से निकलने वाले अवशेष और चिकित्सालयों से निकली गंदगी से नदियों का जल अत्यधिक प्रदूषित होता ही जा रहा है । निष्कर्ष यह है कि हमें सभी को ,इस सम्पूर्ण प्रथ्वी के संरक्षण के लिए, यहां पर, स्वयं को आत्मिक शपथ और आत्मिक प्रण लेकर, यहां के हर एक जन को मर्दा ,जल, वायु अर्थात इस कायनात की संरक्षा,…इस कायनात की सुरक्षा…और इस कायनात को हम कैसे पल्लवित ..पुष्पित और संवर्धित कर सकते हैं ?,इस कायनात को.. हम किस प्रकार से स्वच्छ.. सुन्दर , सौम्य और स्वर्णिम बना सकते हैं …? इस दशा और दिशा में, हमें हमारे पूर्वजों के पदचिन्हों पर ,पुनः और अनवरत चलना होगा। तभी हम इस धरा के प्रति ,हमारा जो कुछ ऋण बनता है , वह ऋण ,. कुछ अंश रूप में हम उतार सकते हैं….!!।?? अन्यथा??!
डॉ राजपाल, डॉ सपना
प्राध्यापक हिंदी पर्यावरणविद्, श्रीगंगानगर राजस्थान