पयविरण और प्रकृति
पयविरण और प्रकृति
जब जब मानव ने विकास के नाम पर,
स्वार्थ अपनाया है
प्रकृति और पर्यावरण का
तिरस्कार हमने पाया है
चाहें पेड़ कटे या पर्वत
नदियों से रेत निकालते हैं अनवरत
चाहें जले खेतों का हो या
कल कारखानों का हो धुआं
प्रदूषण फैलता है
होती है जहरीली हवा
नदियों के गहरे गड्ढें
निगलते हैं जाने कितने छोटे बड़े बूढ़े
खेतों को काटकर
ऊँची इमारतें बनाते हैं
अपने सुखों के नाम पर
हर कमरे में एसी लगाते हैं
इससे हम सबकी मानवीयता का
भी हनन होता है
रिश्तों में दूरियों बढ़ती हैं
असमानता का बीज भी अंकुरित होता है
मैं नहीं हूँ विरोध में विकास के
सभी परिवार के लोग बैठों एक कमरे में
आस पास में
आने वाली पीढ़ियों के लिए
धरोहर के रूप में स्वस्थ पर्यावरण को चुनना है
सभी समस्याओं पर विचार हम सबको करना है
सादा जीवन शैली अपनानी है
और समाधान भी करना है
यदि हम सब चाहे प्रकृति और पर्यावरण बचाना कोशिश करें आम खाकर गुठली
वीरान जगहों पर डाल आना
साल में हर परिवार पांच वृक्ष लगाए
अपने लगाए वृक्षों से सालों साल फल,
फूल और छांव पाए
जल भी बचाओ समय का भी परिष्कार करो
प्रभु की दिव्य दृष्टि का मन में सदैव विचार करो
उनके दिए अनमोल उपहारों का समुचित आदर अवलोकन और उपयोग करो ||
शीलू जौहरी
भरूच गुजरात