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पुराने कपड़े ( लघुकथा)

पुराने कपड़े
( लघुकथा)

आभा ने घर के बाहर से आवाज लगाई,” दादी! देखो यह बुढ़िया ठंड से कांप रही है। दे दो इसे अपने पुराने कपड़े। मैं कई वर्षों से देख रही हूं कि पुराने कपड़े सन्दूक में पड़े हुए हैं। पापा तो कहते हैं कि कोई भी कपड़ा छ: महीने से ज्यादा नहीं पहनना चाहिए। तुम पुराने कपड़ों को जमा कर क्या करोगी?”
दादी ने कहा,” आभा बिटिया! मैं किसी गरीब को कपड़े देना तो चाहती हूं पर दे नहीं पाती हूं।सोचती हूं कि किसी दूसरे काम में प्रयुक्त हो जायेंगे।”
आभा ने कहा,” दादी, तुम पूजा पाठ तो करती हो लेकिन किसी गरीब को कपड़े देने में संकोच करती हो। दादी, मेरे गुरूजी ने कल हमें बताया कि जरूरतमंदों की जरूरतों को पूरा करना ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा है।”
आभा की बात सुनकर उसकी दादी निरूत्तर हो गई। वह आभा को चुमते हुए बोली,” बेटी! आज तुमने मेरी आंखें खोल दी। ले जाओ सभी पुराने कपड़े। दे दो जरूरतमंदों को।”

— बिनोद कुमार पाण्डेय–
ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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