नीलामी (कहानी)
नीलामी (कहानी)
दो दिन पहले ही सीमा को देखने के लिए लड़के वाले आये थे। लड़का मालाबार कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर था। सीमा दिखने में बहुत सुंदर पढ़ाई में माहिर। उसे नौकरी करना पसंद था। वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी। पर उसके पिता ने उसकी एक न मानी।
लड़के की पूरी फैमिली शिक्षित थी। लड़के के साथ माता पिता उसकी चाची, मौसी, बुआ,, बहन भाभी इतनी सारी महिलाएं लड़के के साथ सीमा को देखने के लिए आयें थे। सीमा ने इतने सारे एग्जाम दिये पर उसे कभी डर नहीं लगा। आज न जाने इन सारी महिलाओं के बीच उसका दिल जोर – जोर से धड़कने लगा था।
वह बहुत परेशान थी। कौन कैसा सवाल पूछेगा। उसे बार-बार लग रहा था यह वधु परीक्षा बड़ी कठिन होती है। इस अग्नि परीक्षा में वह सफल हो पायेंगी या नहीं यही बात उसे परेशान कर रही थी।
नास्ता चाय होने पर लड़के के मां ने कहा हम सीमा को अच्छे से देखना चाहते हैं। सीमा को बुलाइए
सीमा को खरीददारों के बीच फिर से बुला दिया गया। लड़के की मां
ने सीमा से कहा था
सीमा जरा चलकर दिखाओ,
लड़के के बुआ को सीमा के पैरों के तलवे देखना था। समधन जी कुमकुम की गीली थाली लेकर आइए।,,देखें हमारे सीमा के पैरों के निशान लक्ष्मी की तरह है,या
सपाट पैरों वाली है। सीमा को सफ़ेद धोती पर चलने के लिए कहां। लड़के की मौसी ने सीमा से
कहा बेटा तुम्हारी हथेलियां दिखाओ। सीमा ने अपने दोनो हाथ दिखाए थे।
लड़के की भाभी सीमा के हाथों की लकिरो का परीक्षण कर रही थी। हाथों की उंगलियों को उपर नीचे से देखा जा रहा था
हर कोई नाप तोल कर देख रहा था। लड़का मिट्टी का गोबर बना हुआ था।
लड़के की बहन ने कहा था। सीमा खाना बनाना आता है।
सीमा ने सिर्फ हां कह दिया था।
लड़के की भाभी ने कहा था।
सीमा थोड़ा हसकर दिखाओ। कहीं दांतों में गैप तो नहीं है।
सीमा की वधु परीक्षा होने पर लड़के वालों ने कह दिया। सीमा हमें बहुत पसंद हैं। अब बस लेन देन की बात पक्की हो जाय तो अच्छा रहेगा।
तभी सीमा ने कहा मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है। मैं कोई बाजारु बिकाऊ वस्तु नहीं हूं।
मैं आत्म सम्मान से जिना चाहती हूं।
मैं हाड़ मांस की जीती जागती
मानवी हूं। मेरी बोली मत लगाओ,।
मेरी नीलामी मत करो।
मैं सम्मान से जीना चाहती हूं।
मै विधाता की अनमोल देन हूं
इक्कीसवीं सदी मे मेरी नीलामी करने का किसी को अधिकार नहीं है क्या कमी है मुझमें
मैं जीवन की नई आस हूं।
लड़की वाले लड़के के घर जाकर कभी देखते हैं। उसके पैरों के तलवे हाथों की लकीरें।
नहीं ना फिर ऐसे घर में मुझे क्यों बेच रहे हों,,,
डॉ पुष्पा गोविंदराव गायकवाड
वै.धुं.महाराज देगलूरकर महाविद्यालय देगलूर जिला नांदेड़