मंजू के दिल से——
मंजू के दिल से——
“जीवन की सार्थकता”
हम कई बार कुछ पेरेंट्स को यह शिकायत करते हुए पाते हैं कि हमारा बेटा घर में इतना बड़ा बिजनेस होने के बाद भी दूसरों की नौकरी करना पसन्द करता हैं | वह भी हमसे दूर दूसरे शहर में जाकर!!! क्या इसी दिन के लिए हमने उसे इतना पढ़ा-लिखा कर होशियार बनाया था, कि वह एक दिन हमें ही छोड़कर कहीं दूर चला जाए ????
जब मैं किसी पेरेंट्स को यह शिकायत करते हुए देखती हूँ, तब यह सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि क्या किसी पेरेंट्स का खुद के स्वार्थ की खातिर, अपने बच्चों के पढ़े-लिखे होने के बावजूद उन्हें कुएं का मेढ़क बनाना कहाँ तक उचित हैं !!!!
जरा इस बात पर गौर फर्माइयेगा……….
हर माता-पिता की आँखों में एक खूबसूरत सा सपना, उसी दिन से पलने लगता हैं, जिस दिन बच्चे के कदम उनके जिंदगी में पड़ते हैं और न जाने दुनियाँ भर के कितने बड़े-बड़े रंगीन सपनों का ताना-बाना सभी पेरेंट्स बुन लेते हैं और खुद ही अपने बच्चों को बहुत ऊँची उड़ान देना चाहते हैं | चाहे उस उड़ान के लिए उन्हें अपने जीवन में अपना कुछ भी दांव पर क्यों न लगाना पड़े |
अब जब आपके बच्चों के उड़ान भरने का समय आता हैं और उस उड़ान के लिए उन्हें आपसे दूर जाना होता हैं, तब आप खुद ही उनके पंख काटकर उन्हें उड़ान भरने से रोकना क्यों चाहते हैं!!
क्या सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए????
मुझे लगता हैं, यह सरासर पेरेंट्स की गलत मानसिकता हैं क्योंकि जब आपने खुद उन्हें इस काबिल बनाया हैं कि वे लोग आसमान जैसी ऊंचाई पर अपनी उड़ान भर सके | फिर उनके पंख काटकर उन्हें उड़ने के काबिल न रखना यह कहां की समझदारी हैं, यह तो उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय करने जैसा
हैं |
मेरे हिसाब से सही बात यह हैं कि पहले ही उन्हें उसी हिसाब से ढालना चाहिए कि उनके सपनें इतनी ऊँची उड़ान भरने वाले न हो या फिर उन्हें उनके सपनों को पूरा करने के लिए खुले आसमान में उड़ने दे |
जैसे कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती | उसी प्रकार चाहे फिर वह जीवन में हो या रिश्तों में तालमेल बैठाने की बात हो !!! दोनों पहलुओं को अच्छी तरह समझने और विचार करने की जरूरत होती हैं |
यहाँ मैं एक बात उन बच्चों से भी कहना चाहूँगी जो अपने उज्जवल भविष्य की खातिर अपनों से दूर रहने के लिए मजबूर
हैं | उन्हें दूरी सिर्फ शहरों में रखनी चाहिए दिलों में नहीं | दूर रहकर भी आपके अपने परिवार के प्रति एहसास नही बदलना चाहिए |
दूसरी बात जैसे माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं | ऐसे ही बच्चों के भी कुछ अपने पेरेंट्स के प्रति फर्ज होते हैं जो उन्हें दूर रहकर भी कभी नहीं भूलना चाहिए | क्योंकि जो पंख आपको उड़ान भरने की खातिर आज मिले हैं वह कहीं न कहीं उन्हीं की देन हैं |
“जो अपने फर्ज की पकड़ मजबूत हो तो |
हर रिश्तों में एहसासों की नमी बाकी होती हैं |
और उस नमी को पाकर जिंदगी हर पल,
महकते हुए गुलाब सी होती हैं ||”
अब कुछ पेरेंट्स कहेंगें!!! ऐसी भी क्या मजबूरी हैं, जो उन्हें हमसे दूर रहना पड़ रहा हैं |
एक बात तो आज के युवा पीढ़ी के जीवन में तय हैं कि उन्हें जिंदगी को जिंदगी की तरह जीने के लिए उनके पास असीमित पैसा होना अतिआवश्यक हो गया हैं |
हमारा समय अलग था यदि हम हमारी जिंदगी के अतित के पन्नें पलट कर देखते हैं तो हम यही पाते हैं कि हम जिंदगी में बहुत सी बातों में अपने मन को समझाना जानते थे | पहले एक स्कूल बैग से हमारे तीन-चार साल आराम से गुजर जाते थे और हमें कोई आपत्ति भी नहीं होती थी | फिर समय में बदलाव आया, अब हमारे बच्चों के स्कूल बैग तीन-चार साल की जगह एक या दो साल चलने लगे और फिर उनका कोई उपयोग ही नहीं रह जाता | लेकिन आज समय का पहिया कुछ ज्यादा ही तेजी से घूमने लगा हैं और उसके साथ-साथ लोगों की सोच में उससे भी ज्यादा तेज गति से बदलाव आ रहा हैं |
आज के इस दौर में अपना एक रुतबा बनाने के लिए हर कोई समाज में कॉम्पिटिशन की लाइन में खड़ा हैं | अब ऐसे में अपने बच्चों की टांग पकड़ कर पीछे खींचना, क्या उनके साथ अन्याय नहीं हैं???
स्वरचित
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)