समाज में शादी सही समय पर
समाज में शादी सही समय पर
आज के समय में ये बकवास नहीं है, सच्चाई है हर समाज की,एक कटु सत्य रिश्ते तो पहले होते थे, अब रिश्ते नही सौदे होते हैं, बस यहीं से सब कुछ गङबङ हो रहा है, किसी भी माँ-बाप मे अब इतनी हिम्मत शेष नही रही, कि बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से तय कर सकें पहले खानदान देखते थे, सामाजिक पकङ और संस्कार देखते थे, और अब मन की नही तन की सुन्दरता, सरकारी नोकरी, दौलत, कार, बँगला, साइकिल, या स्कूटर वाला अच्छे खानदान का अब किसी को नही चाहिये, सब की पसंद कार वाला ही है, भले ही इनकी संख्या 10% ही हो। लङकी वालो को लङका बङे घर का चाहिए, और लङकी वालोँ को पैसे वाला लङका, ताकि बेटी को काम करना न पङे, नोकर चाकर हो, परिवार छोटा ही हो ताकि काम न करना पङे, और इस छोटे के चक्कर मे परिवार कुछ ज्यादा ही छोटा हो गया है, पहले रिश्ता जोड़ते समय लड़की वाले कहते थे, कि मेरी बेटी घर के सारे काम जानती है, और अब शान से कहते हैं हमने बेटी से कभी घर का काम नही कराया, यह कहने में लोग शान समझते हैं, इन्हें रिश्ता नही बेहतर की तलाश है, रिश्तों का बाजार सजा है गाङियों की तरह, शायद और कोई नई गाङी लांच हो जाये, इसी चक्कर मे उम्र बढ रही है, अंत मे सौ कोङे और सौ प्याज खाने जैसा है, अजीब सा तमाशा हो रहा है, अच्छे की तलाश मे सब अधेङ हो रहे हैं ।अब इनको कौन समझाये कि एक उम्र मे जो चेहरे मे चमक होती है, वो अधेङ होने पर कायम नही रहती, भले ही लाख रंगरोगन करवा लो ब्युटिपार्लर मे जाकर।
एक चीज और संक्रमण की तरह फैल रही है, नोकरी वाले लङके को नोकरी वाली ही लङकी चाहिये, अब जब वो खुद ही कमायेगी तो क्यों आपके या आपके माँ बाप की इज्जत करेगी ।खाना होटल से मँगाओ या खुद बनाओ, बस यही सब कारण है आजकल अधिकाँश तनाव के, एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नही रहा, उपर से सहनशीलता भी बिल्कुल नहीं, इसका अंत होता हैं आत्महत्या और तलाक, घर परिवार झुकने से चलता है, अकङने से नहीं …!
जीवन मे जीने के लिये दो रोटी और छोटे से घर की जरूरत है, बस और सबसे जरुरी जरूरत है आपसी तालमेल और प्रेम, हाव, भाव, संस्कार, प्यार की, लेकिन आजकल बङा घर व बङी गाङी ही चाहिए चाहे मालकिन की तरह बनकर ही रहे, आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं, कपङा धोने के लिए वाशिँग मशीन, मसाला पीसने के लिये मिक्सी, पानी भरने के लिए मोटर, मनोरंजन के लिये टीवी, बात करने मोबाइल, फिर भी असँतुष्ट पहले ये सब कोई सुविधा नहीं थी, मनोरंजन का साधन केवल परिवार और घर का काम था, इसलिए फालतू की बातें दिमाग मे नहीं आती थी, न तलाक न फाँसी, आजकल दिन मे तीन बार आधा आधा घँटे मोबाइल मे बात करके, घँटो सीरियल देखकर, ब्युटिपार्लर मे समय बिताकर समय व्यतीत किया जाता हैं …!जब ये जुमला सुनते हैं कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती, तो हंसी आ जाती है, बहनो के लिये केवल इतना ही कहूँगा, की पहली बार ससुराल हो या कालेज लगभग बराबर होता है, थोङी बहुत अगर रैगिँग भी होती है तो सहन कर लो, कालेज मे आज जूनियर हो तो कल सीनियर बनोगे, ससुराल मे आज बहू हो तो कल सांस बनोगे …!
समय से शादी करो, स्वभाव मे सहनशीलता लाओ, परिवार में सभी छोटे-बङो का सम्मान करो, ब्याज सहित वापिस मिलेगा, आत्मघाती मत बनो, जीवन मे उतार- चढाव आता है, सोचो समझो फिर फैसला लो, बङो से बराबर राय लो, प्रकृति और उनके उपर और ऊपर वाले पर विश्वास रखो, विचार करे की हम कँहा से कँहा आ गये …!
नशा चढ़ने लगे हर इंसान में नशे का शोक है। चाहे दारू, बीडी, सिगरेट,सिलम, हुका, पान, गुटका , ताड़ी, नशीली दवाएं, किसी को गाने, हर व्यक्ति में अलग अलग नशे के शोक होते है।
बीएल भूरा