नमामि देवी नर्मदे
” आस्था और आध्यात्म की पोषक नर्मदा के अवतरण दिवस पर विशेष”
कल-कल निनादनी नर्मदा सामवेद की मूर्ति है नर्मदा की महिमा का स्कंद पुराण, पद्म पुराण में भी वर्णन है नर्मदा अमरकंटक से अपने प्राकृट्य रुप मे बालिका की तरह है जो किलकारी भरते हुए आगे बढ़ने लगती है और विस्तारित होने लगती है
नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक पर्वत का एक कुंड है जो 3492 फीट की ऊंचाई पर स्थित है मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र के क्षेत्रों से होती हुई नर्मदा खंभात की खाड़ी में समाहित हो जाती है एक पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा के नेत्र से दो आंसू गिरे जिनसे नर्मदा और सोन की उत्पत्ति हुई ।
भू वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था में प्रथम तय दो नदियों का प्रादुर्भाव हुआ भारत की नर्मदा और मिस्र की नील ,दोनों के तट पर विशिष्ट पुरा संस्कृतियों का विकास हुआ
विश्व की सर्वश्रेष्ठ नदी है नर्मदा यह अद्भुत और विलक्षण है इस नदी का इतिहास भूगोल , शिल्प, कला, साहित्य सभी सुंदर और आकर्षक है
अनेक ऋषियों ने इसके तट पर तप किया नर्मदा सबसे प्राचीन नदी है
3 वर्ष 3 माह 13 दिन मैं इसकी परिक्रमा होती है सिर्फ नर्मदा नदी की ही परिक्रमा होती है बुंदेली गौडी, निमाड़ी, मराठी ,गुजराती संस्कृतियों का निवास इसके तट पर है
नर्मदा के स्मरण मात्र से एक जन्म का, दर्शन से तीन जन्म का, और स्नान से सात जन्म का पाप नष्ट होता है
अनेक विशिष्ट जड़ी-बूटी और औषधियां नर्मदा तट के वृक्षों से प्राप्त होती हैं
नर्मदा का हर कंकर शंकर है जिन्हें बिना प्रतिष्ठा के भी पूज्य माना गया है नर्मदा का जल दूध की तरह पोषण करता है यह अभदा ,जलदा ,सहज संजीवनी है नर्मदा सागर में मिलने के पूर्व डेल्टा नहीं बनाती है ,केवल नर्मदा नदी पर ही पुराण वर्णित है हर अर्थात शिव के पहले नर्मदा का नाम लिया जाता है “नर्मदे हर “संगमरमर पत्थर नर्मदा नदी में ही है और सौभाग्य है कि यह है संगमरमर धुआंधार जलप्रपात नर्मदा का अप्रतिम सौंदर्य हमारे जबलपुर में है सभी देवी- देवताओं से वंदित नर्मदा से मिलने गंगा भी वैशाख माह में आती है
नर्मदा पर जितने सुंदर प्रपात और कुंड हैं किसी नदी पर नहीं है। लोकगीत संगीत और स्वर लहरियांँ नर्मदा तट पर सर्वाधिक गूंजते हैं। तंत्र शक्ति के सर्वाधिक स्थल नर्मदा तट पर हैं ।शिल्प कला के अद्भुत नमूने और दर्शन ,ज्ञान, ध्यान के अबूझे रहस्य भी नर्मदा तट पर हैं यही एक नदी है जो सरल मार्ग को छोड़ कठिन मार्ग का अनुसरण करती है ।
सर्वाधिक आस्था और आध्यात्म की पोषक नदी है नर्मदा
जल, चट्टान ,प्रपात शोर और मोड़ ,रेवा के प्रमुख तत्व हैं
चट्टानों पर बने चित्र ,रेत पर बनी नक्काशी, रेवा का अनुपम सौंदर्य है ,ओंकारेश्वर ओमकार स्वरूप ,मंडला में मेखलाकार नर्मदा को दक्षिण गंगा, गौतमी ,मंदाकिनी आदि कई नामों से पुकारा गया है प्रकृति की नैसर्गिक सत्ता और सौंदर्य के दर्शन नर्मदा के घाटों पर और तटों पर होते हैं। नर्मदा के दोनों तटों पर अनेकों तीर्थ हैं जहाँ हमारी संस्कृति , लोकगीत इत्यादि गूँजते रहते हैं नर्मदा हमारी आस्था की नदी है सौंदर्य की नदी है अनवरत चलते रहने का संदेश देने वाली नर्मदा को माघ माह की सप्तमी” अवतरण दिवस पर नमन है।
नमामि देवी नर्मदे
समृद्धि देना सर्वदा।
डॉ संध्या जैन श्रुति
कुचैनी परिसर दमोह नाका
जबलपुर मध्यप्रदेश