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” विश्व में बढ़ता हिन्दी का गौरव ” डा0 हरेंन्द्र हर्ष

” विश्व में बढ़ता हिन्दी का गौरव ” डा0 हरेंन्द्र हर्ष
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-विश्व पटल पर आज भारत सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है । संसार की चार प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अपना स्थान कायम करने वाला भारत निश्चित ही अपना कद बढ़ाने में सफल रहा है । इसी के साथ अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी वह लगातार अपनी धाक जमाता जा रहा है । विश्व बिरादरी जब किसी देश को महत्व और स्वीकृति प्रदान करती है तो उस देश की तमाम बातें स्वत: महत्वपूर्ण हो जाती है । भारत की यही विकासमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति हिन्दी के लिये भी वरदान स्वरूप है । आज विश्व स्तर पर हिन्दी की स्वीकार्यता और व्याप्ति महसूस की जा सकती है । इससे पहले जो देश हिन्दी से अपरिचित थे या अनभिज्ञ थे आज उन देशों में भी हिन्दी की अनुगूंज सुनी जा सकती है । आज की तारीख में सम्पूर्ण संसार में हिन्दी 65 करोड़ लोगों की प्रथम भाषा है और 50 करोड़ लोगों की दूसरी व तीसरी भाषा है । वर्तमान में हिन्दी अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ विश्व भाषा बनने के पथ पर लगातार अग्रसर होती चली जा रही है । हिन्दी की यह विशेषता है कि वह अनेक बोलियों से मिलकर बनी है । उसका यह वर्तमान स्वरूप भी इन्हीं से निर्मित हुआ है। हिन्दी के विकास में इन बोलियों के साथ ही देशभर के कवियों , भक्तों, संतो और साहित्यकारों की उल्लेखनीय भूमिका रही है । हिन्दी भारत की सांस्कृतिक एकता व अखंडता का एक मजबूत आधार स्तम्भ है। भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड आदि जैसे राज्य किसी न किसी रुप में हिन्दी के रंग में ही रंगे हुए हैं। तथा यह गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, गोवा, तथा पूर्वोत्तर के राज्यों और ज्यादातर केन्द्र शासित प्रदेशों में द्वितीय भाषा के रूप में प्रयोग मे लाई जाती है । इसी तरह यह नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्री लंका, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत,इराक,फीजी,मारीशस, थाईलैंड, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गयाना जैसे देशों में यह दूसरी और तीसरी भाषा के रुप में प्रयोग होती है । यह शेष विश्व में लगभग 20 करोड़ लोगों द्वारा चौथी,पांचवीं और विदेशी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है । इस तरह सम्पूर्ण विश्व में 135 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में हिन्दी को बोल या समझ लेते हैं। इसी के साथ हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि संसार के जितने भी विकसित देश है, उन सभी ने ही अपनी भाषा के ही बल पर अपने विकास को प्राप्त किया है। यह बात अमेरिका, ब्रिटेन,रुस फ्रांस, जर्मनी, जापान,इटली,स्पेन, पुर्तगाल, इजरायल और चीन तक समान रूप से देखी जा सकती है। इजरायल जैसे छोटे से देश ने अपनी हिब्रू भाषा में उत्कृष्ट तथा मौलिक शोध कार्य करके अब 12 नोबेल पुरस्कार प्राप्त किये है। यह सभी देश अपनी भाषाओं के विकास पर बहुत बड़ी धनराशि खर्च करते हैं। इन देशों की सरकारें ऐसी योजनाएं प्रस्तुत करती है कि उनकी भाषा और साहित्य के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़े, और विश्व समुदाय की उन्मुखता उनकी ओर बनी रहे । हम भारत सरकार से भी यही अपेक्षा रखते हैं। वर्तमान समय की सरकार में राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर विभिन्न मंत्रालय हिन्दी में अपना कार्य कर रहे हैं। आज हिन्दी भारत के बाहर फीजी एवं संयुक्त अरब अमीरात में अनाधिकारिक भाषा बन गई है। संयुक्त अरब अमीरात ने तो अपने न्यायालयो तक में हिन्दी के प्रयोग में की अनुमति प्रदान कर दी है । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपना एक्स हैंडल और वेबसाइट को हिन्दी में प्रारम्भ कर दिया है । यह रेडियो पर एक घंटे का हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित करता है। दो वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सरकार के प्रयासों से हिन्दी, उर्दू एवं बांग्ला तीन भाषाओं में कामकाज की सुविधा प्रदान कर दी है।भले ही अभी तक इन्हें आधिकारिक भाषा का दर्जा न मिला हो लेकिन इन भाषाओं में हमारा कामकाज सम्पन्न हो सकता है। जबकि इसके पूर्व यह असंभव था । यह भी बड़ा कारण है कि हिन्दी का वर्तमान गतिशील और भविष्य हमें आश्वस्त करने वाला है । पिछले वर्ष जी 20 देशों के सम्मेलन में इण्डिया शब्द के स्थान पर सरकार द्वारा भारत शब्द का प्रथम बार प्रयोग हमें आशान्वित अवश्य कर रहा है । हम प्रेरणा हिन्दी प्रचारिणी सभा के सभी साथी वर्तमान सरकार से यह अनुरोध करते हैं कि वह हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्रदान कर हमारे आत्म गौरव वापस कर दें हम सब उसके हार्दिक आभारी रहेंगे। एक बार महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ” राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। हिन्दी सभी के ह्रदय की भाषा है और हिन्दी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है ।”

डा0 हरेंन्द्र हर्ष
मार्गदर्शक व सचेतक
प्रेरणा हिन्दी प्रचारिणी सभा

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