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भारत की स्वतंत्रता के 77 वर्ष होने के बावजूद भी आज तक हम अपनी राष्ट्रभाषा को मान्यता नहीं दे पाएँ हैं, इससे अधिक विकट स्थिति और क्या हो सकती है।

भारत की स्वतंत्रता के 77 वर्ष होने के बावजूद भी आज तक हम अपनी राष्ट्रभाषा को मान्यता नहीं दे पाएँ हैं, इससे अधिक विकट स्थिति और क्या हो सकती है।
महात्मा गांधी जी ने कहा था कि जिस देश की अपनी भाषा नहीं वह देश गूँगा है।
भारतेन्दु हरिश्चंद ने भी निज भाषा को महत्व प्रदान किया था।
फिर हम देशवासियों की अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को राष्ट्रभाषा का पूर्ण दर्जा प्रदान करने शायद अभी तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया।
यही वजह है कि हम इस छोटे से कार्य को आज तक पूर्ण नहीं कर पाए हैं।
इसी तारतम्य में आने वाले हिंदी दिवस 14 सितंबर को राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम जिलाधीश के माध्यम से ज्ञापन सौंप कर इस विकट परिस्थिति से उन्हें अवगत करायें।
इस हेतु हस्ताक्षर अभियान चला कर लोगों का जन समर्थन प्राप्त करें।
जब सब कुछ आंदोलनों एवं मांगों पर ही निर्भर है, तो सत्ता पर काबिज लोगों का स्वविवेक कोई मायने नहीं रखता।
सत्ताधीशों पर भी यह घोर सवालिया निशान है।
आईये अपने हस्ताक्षर कर इस देश के सर्वोच्च पद पर आसीन राष्ट्रपति महोदय व प्रधानमंत्री महोदय के समक्ष हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा शीघ्र प्रदान करने अपनी माँग रखें।

—संतोष श्रीवास्तव “सम”

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