खूबसूरत किताब
खूबसूरत किताब
जिंदगी तो हैं एहसासों से रंगी खूबसूरत किताब |
आज मैं कर बैठी उस किताब से बात |
जब मैंने किया उससे एक सवाल |
क्यों हैं सबके जिंदगी में कुछ न कुछ बात को लेकर मलाल |
क्यों न रहते सब हमेशा खुशहाल |
क्यों नजर आते सबकुछ रहते हुए भी लोग बेहाल |
तब वह मुस्कुराते हुए मुझसे बोली |
मैं तो खेलती हूँ सबके संग आँख मिचोली |
मैं तो बनना चाहती हूँ सबकी हमजोली |
मैं तो हूँ जैसे कोई खूबसूरत सी रंगोली |
कितने ही रंगों से मैं खुद को हूँ हरदम रंग लेती |
कदम-कदम पर मैं सबको हूँ समझाती |
बार-बार समझाने पर भी जब तुम न हो समझते |
तब मैं तुम्हें एक हल्की सी ठोकर देकर हूँ गिराती |
कुछ जो होते हैं समझदार |
उस ठोकर के बाद करते वे खुद ब खुद विचार |
तब कर लेते वे ईमानदारी से, अपनी गलती स्वीकार |
ऐसे लोग कर लेते समय रहते अपने में सुधार |
लेकिन कुछ लोग होते थोड़े अलग से |
जब वे एक ठोकर से न हैं कुछ समझते |
तब मैं लगाती उन्हें ठोकर बार-बार |
इस तरह मैं उन्हें समझाती कई-कई बार |
लेकिन उनका पीछा जो न छोड़ते उनके विकार |
और जो न बदलता उनका कभी किरदार |
उन्हें न होता ढेरों खुशियों के रहते हुए भी खुशियों का दीदार |
ऐसे ही लोग न कर पाते कभी, मुझे खुशी-खुशी स्वीकार |
मंजू की लेखनी कहती सबसे |
जो हैं जिंदगी की किताब सी खूबसूरत सौगात |
हर एक इंसान के पास |
फिर क्यों न करें हम सब उस ‘किताब से बात’ |
उसके पन्ने बीच-बीच में पलटते रहे हम |
उसके हर अनुभव से सीखते रहे हर दम |
फिर कैसे न होंगे सुंदर हमारे विचार |
तभी तो निखरेगा हम सबका किरदार |
जो हैं जिंदगी की किताब सी खूबसूरत सौगात |
हर एक इंसान के पास |
जिसके पन्नों पर लिखे हैं हमारे ही ख्यालात |
बहुत जरूरी हैं उससे कभी-कभी मुलाकात |
फिर क्यों न करें हम सब उस ‘किताब से बात’ ||
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)