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अकेले ही मंज़िल तय करनी होती है

अकेले ही मंज़िल तय करनी होती है

हम और आप दोनो महज याद
बनकर के एक दिन रह जायेंगे,
और दोनो कोशिश करके दुनिया
में अच्छी यादें छोड़ कर भी जायेंगें।

सबकी नकल करी जा सकती है,
पर चरित्र, व्यवहार, संस्कार और
ज्ञान की नकल नहीं हो सकती है,
इनमे सब वास्तविकता दिखती है।

शरीर में काम यदि श्वास का होता है
मित्रता में काम विश्वास का होता है,
पर इंसान तो बुद्धि अपने पास और
धन दूसरों के पास ज्यादा समझता है।

किसी की मौजूदगी से यदि कोई
व्यक्ति स्वयं के दुःख भूल जाता है,
तो यह उसके होने की सार्थकता है,
कष्ट में यदि साथ दें तो उदारता है।

मदद सबकी की जाय मगर बदले
में आशा किसी से मत रखी जाय,
सेवा का सही मूल्य भगवान देता है,
इंसान से आशा ही क्यों की जाय।

दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है,
बस स्वयं आत्मविश्वास होना चाहिये,
हारी हुई जंग भी जीत लेते हैं लोग,
केवल इरादे मजबूत होना चाहिये।

अकेले ही मंज़िल तय करनी होती है,
हर सफ़र में हमसफ़र नहीं मिलते हैं,
आदित्य सहारा तो ईश्वर का होता है,
परंतु इंसान इंसान के सहारे होते हैं।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ

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