Search for:

ईश्वरदास

ईश्वरदास

पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास
चारण वर्ण चकार में उस दिन हुआ उजास

जोधपुर,भाद्रेस गाँव हुआ आपका जन्म
प्रभु की सेवा भक्ति था आपका परम धर्म
सूजा,अमरबाई के घर में भरा उल्लास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

पत्नी देवलबाई का हुआ अचानक निधन
राजबाई के संग पुनः बँधे प्रेम बन्धन
गुरु पीताम्बर जी के शिष्य आप थे खास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

राजा यशगान हेतु गान किया करते थे
कविता गाकर सकल घर का पेट भरते थे
लाख बाधाएं आईं कभी न हुए निराश
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्में ईश्वरदास

जामनगर में जा भूप को कविता सुनाई
सुनकर मधुर कविता राजा ने की बढ़ाई
कविता सुनकर पीताम्बर जी हुए उदास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

पीताम्बर जी से जब नहीं प्रशन्सा पाई
ईश्वरदास के मन बुरी भावना आई
वे समझे कविता का उड़ाया है उपहास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

बदला लेने की खातिर गए भट्ट के घर
पीताम्बर के सदन छिप बैठे रात्रि पहर
पीताम्बर बैठे थे जहां पत्नी के पास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

भार्या ने उदास होनें का पूछा कारण
बोले आज कविता कह रहा था इक चारण
कविता सुन्दर,भूप प्रशंसा आई न रास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

अति विशिष्ट काव्य रचने की प्रतिभा पाकर
नृप को प्रसन्न किया उसने प्रशंसा गाकर
काव्य रच लगा सकता था प्रभु से अरदास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

ईश्वरदास प्रकट हुए फेंककर हथियार
चरण- शरण पड़ने लगे भट्ट के बारम्बार
क्षमा करें हमें प्रभु मन में थी बहुत खटास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

उसी पल से भट्ट जी को अपना गुरु माना
प्रभु का गुणगान करूँगा निज हृदय में ठाना
तभी से मन में हुआ भक्ति का परम प्रकाश
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

जामनगर से वापस भाद्रेस गांव आकर
नदी तट पर बैठे रमणीय कुटी बनाकर
प्रभु तप में लीन एकान्त में करें निवास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

एक बार की बात है गंगा में कर स्नान
अग्नि पर जल चढा दिया बिना किसी सामान
प्रभु दाल चावल देंगे हमें पूर्ण विश्वास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

उसी समय एक बंजारा राह से आया
भूखे भक्त हेतु प्रभु ने भोजन भिजवाया
सन्त रुप में प्रभु ने मिटाई मन की प्यास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

द्वारिकापुरी कृष्ण के दर्शन करने गए
निज नयनों में कृष्ण की प्रिय छवि भरने गए
बिन खोले पर्दे खुले प्रभु दर्शन दिये दास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

दरश की उत्कंठा से समुद्र में कूदे जाय
जल में गाते घूमते यहां- वहां उतराय
गहरे समुद्र से निकले बाधित न हुई साँस
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

कर्णदास को महान विषधर ने डस खाया
करूण रुदन देख आपका मन पसीज आया
प्रभु की कृपा से आई तन में फिर से स्वांस
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

साँगा नामक व्यक्ति ने कम्बल किया प्रदान
बोले बाद में लेंगे रख लो यह सामान
कई दिन प्रभु भक्त ने अमरेली मे किया वास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

कुछ समय के पश्चात साँगा घर में पधारे
साँगा मात ने दास जी के चरण पखारे
साँगा को न देख घर हुआ अजीब आभास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

साँगा को ना देख भोजन से किया इन्कार
बोले साँगा कहाँ कम्बल हमारा उधार
रो माँ ने कहा साँगा हुआ बाढ़ का ग्रास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

बोले कम्बल दिए बिन नहीं मर सकता है
प्रिय भक्त के ईश्वर प्राण न हर सकता है
दास कृपा से जीवित हुई साँगा की लाश
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

मृतक को जीवित करने वाले हुए अनेक
खोजकर जीवन जो दे दास मात्र थे एक
जीव की रक्षा करना रहता इनका प्रयास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

घोड़े पर बैठकर सागर में किया प्रस्थान
ईश्वर के समान थे ईश्वरदास महान
अस्सी वर्ष की उम्र में हुआ दास स्वर्गवास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

भाद्रेस में ही रखी चरण पादुकाएं हैं
दीप जला प्रतिवर्ष सब उत्सव मनाएं हैं
भीषण मेला लगे प्रतिवर्ष कार्तिक मास
पन्द्रह सौ पंचानबे जन्मे ईश्वरदास

राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required