अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में मिजोरम के राज्यपाल ने किया डॉ सीताराम आठिया की पुस्तक का विमोचन
अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में मिजोरम के राज्यपाल ने किया डॉ सीताराम आठिया की पुस्तक का विमोचन
स्मारिका में प्रकाशित हुआ शोध पत्र
विश्व हिन्दी परिषद द्वारा 25-26 जुलाई 2024 को एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमे नगर के स्वास्थ्य विभाग में पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत साहित्यकार डॉ सीताराम आठिया की पुस्तक शोध एवम समीक्षा नारी शिक्षा और साहित्य के विविध विमर्श का मिजोरम के राज्यपाल कंभमपाठी हरि बाबू , पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा वर्तमान मंडला सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते, पंचायत, मत्स्य पालन राज्यमंत्री प्रो एस पी बघेल, जांजगीर चांपा की सांसद कमलेश जांगड़ा, एनसीईआरटी के निदेशक प्रो दिनेश प्रसाद सकलानी, त्रिनिनाद एवम टोबैको के राजदूत महामहिम रोजर गोपाल, विश्व हिन्दी परिषद के अध्यक्ष पद्मश्री एवम पद्म भूषण आचार्य यार्लगड्ढा लक्ष्मी प्रसाद, महासचिव डॉ विपिन कुमार, उपभोक्ता मामलो के अपर सचिव शांत मनु, आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक रवि कुमार , सम्मेलन की संयोजिका प्रो संध्या वात्स्यानन के कर कमलों द्वारा विमोचन किया गया। साथ ही सहभागिता प्रमाण पत्र , स्मृति चिन्ह तथा सम्मेलन की स्मारिका भी भेंट की गई। प्रथम दिन सत्र की शुरुआत विश्व हिन्दी परिषद के महासचिव डॉ विपिन कुमार ने अपने स्वागत भाषण एवम विशिष्ट अतिथियों के परिचय के साथ की। उन्होंने कहा कि महर्षि अरविन्द के ग्रंथों और भारतीयता को एक दूसरे का पूरक बताते हुए हिन्दी भाषा को संपूर्ण भारत को जोड़ने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी बताया। उन्होंने आगे कहा कि “यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन महर्षि अरविंद के विचारों और हिन्दी भाषा के महत्व को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का एक अनूठा प्रयास है। हमें गर्व है कि हमने इस मंच के माध्यम से हिन्दी को एक सशक्त और समृद्ध भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया है, जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोती है।” विमोचित पुस्तक के बारे में डॉ सीताराम आठिया ने कहा कि इसमें उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, नारी विमर्श, साहित्यकारों की जीवनियां, महिला आयोग, समाज सुधारक के रूप में कबीरदास जी का योगदान और मात्र 39 वर्ष की आयु में 150 से अधिक साहित्यिक कृतियों का रांगेय राघव द्वारा सृजन , हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने समग्र प्रयास, हिन्दी का वर्तमान स्वरूप और पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी की स्थिति, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का संक्षिप्त में समग्र अध्ययन, शिक्षा के विकास में विभिन्न आयोग और नीतियों का अध्ययन आदि विषयों को कुल 33 अध्यायों में संग्रह किया है। 320 पेज की इस पुस्तक का प्रकाशन जेटी एस पब्लिकेशन नई दिल्ली द्वारा किया गया है।सम्मेलन में विशिष्ट अतिथियों के उद्बोधन के क्रम में मेघालय के राज्यपाल श्री कंभमपाठी हरी बाबू ने हिन्दी प्रेमियों, चिंतकों, कवियों और विचारकों के निरंतर प्रयासों की सराहना की और महर्षि अरविंद के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने का आग्रह किया।पंचायती एवम मत्स्य पालन केंद्रीय राज्य मंत्री प्रोफेसर सत्यपाल सिंह बघेल ने हिन्दी के ऐतिहासिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए बताया कि नवजात शिशु को अंग्रेज़ी के बजाय हिन्दी में शिक्षा दी जानी चाहिए। राजदूत रोजर गोपाल ने बताया कि टोबैगो में हिन्दी का प्रभाव कैसे बढ़ रहा है और वहाँ के विद्यालयों में हिन्दी में पाठ पढ़ाए जाते हैं। उन्होंने भाषा और संस्कृति के आधार पर टोबैगो को उन्होंने दूसरे भारत की संज्ञा दी।एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने मातृभाषा के महत्व और हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु उठाए गए कदमों की चर्चा की। सम्मेलन की संयोजिका प्रो. संध्या वात्स्यायन ने श्री अरविंद के संघर्ष, दर्शन और जीवन यात्रा का परिचय दिया। सांसद चिंतामणि महाराज जी ने अपने गुरु के प्रति श्रद्धा को संजोये रखने पर बल दिया। देवी प्रसाद मिश्र, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने भारत को जानने के लिए महर्षि अरविंद के विचारों को जानने की आवश्यकता पर बल दिया। सम्मेलन में मंच संचालन शकुंतला सरूपिया ने किया।सम्मेलन में मिजोरम के राज्यपाल सहित उपस्थित समस्त विशिष्ट अतिथियों द्वारा डॉ विजय पाटिल बड़वानी की भी दो पुस्तकों का विमोचन किया गया। हिंदी सम्मेलन में विजय पाटिल बड़वानी, रंजना मल्लिक, नरेश कुमार, रेखा मौर्या, डॉ इंदिरा चौधरी जयपुर, प्रो विनीता कुमारी, प्रो त्रप्ता शर्मा, डॉ कविता प्रसाद, डॉ मीना घूमे, भगवान दास शर्मा इटावा, डॉ वीरेंद्र दत्ता, छविंद्र कुमार आदि ने भी सहभागिता एवम अपने शोध पत्रों का वाचन किया। सम्मेलन के समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र, स्मारिका एवं स्मृति चिन्ह वितरित किए गए। सम्मेलन में देश विदेश से 250 से अधिक शोधपत्र प्राप्त हुए जिनमे से 21 को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। इस सम्मेलन ने हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और भविष्य में भी ऐसे आयोजनों की आवश्यकता को रेखांकित किया।