गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा
गुरुरब्रह्म गुरुरविष्णु, गुरुरदेवो महेश्वराय
ग़ुरूर साक्षात परबब्रमहा तस्मै श्री गुरूवे नमः
गुरु है माता पिता गुरु है गुरु है बंधु सखा गुरु है
गुरु हमारा कल आज कल है इनसे सभी का जीवन सफल है
गुरु से पहले ना कोई आया ना इनकी जगह कोई ले पाया
गुरु से जुड़ता सभी का नाता बड़ा अभागा जो पढ़ ना पाता
प्रथम गुरु जननी है हमारी उस पे तो सारी दुनिया ही वारी
जीवन के सारे मूल सिद्धांतों की शिक्षक से ही मिलती जानकारी
माता पिता संस्कार सिखाते गुरु जीने का आधार दिलाते
इनकी ऊँगली थाम ली जिसने बनकर सूरज चंदा वो चमके
कभी माता सम ममता देते पिता बन कभी फटकार भी लेते कहते सारे संत मुनि ज्ञानी गुरु की महिमा जाय ना बखानी
गुरु चाहे तो फलक बिठा दे गर चाहे तो ख़ाक मिला दे
गुरु की तुलना गोविंद संग होती इनकी गरिमा देव सम होती
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी की ज़रूरत है ये पढ़ाई
जो शिक्षक का आदर करता ईश्वर ने उसकी शान बढ़ाई
गुरु हमारे राज गोपालाचारी उनपर हमने दुनिया है वारी
जो वो अपने संरक्षक ना होते हम दुखो से सदा घिरे ही रहते
गुरु विश्वामित्र हो या वशिष्ठ हो चाहे आज के सी.वी.रमन
सारे गुरुओं की एक ही विशेषता शिक्षा दान में रहते सदा मगन
शत शत नमन सारे गुरुओं को जिन्होंने अपने सदप्रभाव से विश्व को दिए अनमोल रतन देश जगमगाया जिनके प्रयास से
शुभा शुक्ला ‘निशा ‘