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भोर

भोर

भोर हो गया उठो अब मित्र।
प्रकृति का देखो सुंदर चित्र।।

लालिमा है प्राची में देख।
बनाती विविध रंग आरेख।।

झाँकता सूरज देख ललाम।
चित्र कितना सुंदर अभिराम।।

उषा अभिनंदन करती रोज।
पथिक सूरज में भरती ओज।।

सुबह का मतलब जानो मीत।
प्राणदा बहती वायु पुनीत।।

धूल के कण भी जाते बैठ।
धूम्र की कमतर हो घुसपैठ।।

बाग में फूल विविध हैं रंग।
मनोहर मन में भरें उमंग।।

ताल में खिले कमल के फूल।
रश्मि रवि है इनके अनुकूल।।

नदी में मज्जन करते लोग।
यही रहते हैं सदा निरोग।।

मंदिरों में प्रात: की शान्ति।
मिटा देती है मन की क्लान्ति।।

डाल में चिड़ियों की चहकार।
कबूतर उड़ते पंख पसार।।

चहकते खग-कुल गाते गीत।
प्रकृति देती मद्धिम संगीत।।

त्यागकर निद्रा की आसक्ति।
दौड़ते युवजन भरते शक्ति।।

टहलते देखो वरिजन वृद्ध।
मनोबल से ये हैं समृद्ध।।

कर्म-निष्ठा का कृषक समाज।
सुबह उठकर निपटाये काज।।

बीनता महुआ श्रमिक समाज।
परिश्रम का है जग में राज।।

छोड़कर आलस जागो मित्र।
सुबह दे प्राण पुनीत पवित्र।।

रजनीश सोनी, शहडोल

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