रथ यात्रा
रथ यात्रा
हे कृष्ण मुरारी, हे जगन्नाथ स्वामी।
कृपा दृष्टि रखना, हे अन्तर्यामी।
ताल ध्वज पर दाऊ भैया,पीछे नंदी घोष।
बीच विराजी लाड़ली बहना,सब करते जय घोष।
हे अन्तर्यामी, कृपा दृष्टि रखना।
दासावतारों के रूप में,पूजे जाते नाथ।
जा रहे हैं विश्राम करन को, मौसी जी के धाम।
हे अन्तर्यामी, कृपा दृष्टि रखना।
शंखक्षेत्र,पुरषोत्तम पूरी कहलाता।
नाथ ये पावन धाम।
भाई बहन की प्रीत अनोखी,चल रहे इक दूजे को थाम।
हे अन्तर्यामी, कृपा दृष्टि रखना।
सागर तीर बसे हो स्वामी, नगर भ्रमण को निकल पड़े।
अनुपम शोभा रथयात्रा की,दर्शन को हम विकल खड़े।
हे अन्तर्यामी, कृपा दृष्टि रखना।
अषाढ़ शुक्ल द्वितीया से,एकादशी तक पर्व मनाते।
रथयात्रा के दर्शन करके,हम धन्य धन्य हो जाते।
हे अन्तर्यामी, कृपा दृष्टि रखना।
जगन्नाथ के भात को,जगत पसारे हाथ।
हम सब को भी शरण में रखना, शरण पड़े की लाज।
हे अन्तर्यामी, कृपा दृष्टि रखना।
हे कृष्ण मुरारी, हे जगन्नाथ स्वामी
कृपा दृष्टि हम पर रखना, हे अन्तर्यामी।
रश्मि पांडेय, शुभि
जबलपुर मध्यप्रदेश