चिता में जलने के बाद
चिता में जलने के बाद
जीवन में निराश होकर रहना औरों
की चमक देख ही विचलित होना है,
उनकी सफलता नहीं संघर्षों से भी,
हमने खुद को अवगत करवाना है।
अपने सपने सच हो जायें इसलिये
सिद्धान्तों पर चलना हम सब सीखें,
वृक्षों की पत्तियाँ बदलती रहती हैं,
उनकी मज़बूत जड़ों को आओ सींचें।
मानव जीवन की मृदु अभिलाषा ही
अभिलाषाओं का प्रमुख पात्र होती है,
आशाओं और उमंगों उम्मीदों पर ही
तो इस जीवन की गति निर्भर होती है।
जीवन दर्शन की मधूलिका जीवन
उपवन की सुरम्य सुरभित हरियाली है,
जीवन की इन आशाओं, उम्मीदों की,
सारी समष्टि संस्कृति ही आली है।
जन्म मृत्यु पर इतना निराश होकर
जीना तो जीवन दर्शन झुठलाना है,
क़र्मच्युत होने की बातें जीते जी ही
गीतोपदेश का भी अवहेलन करना है।
आया है वह जायेगा जन्म मृत्यु का,
यह सिद्धांत नितान्त अटल सत्य है,
पर जब आया था, अकेला ही तो था,
आदित्य अकेले ही जाना निश्चित है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ