Search for:

मां वीणा पाणी कविता

‘मां वीणा पाणी’

हे पद्मासना वीणावादनी
ज्ञान बुद्धि प्रदायिनी

मार्ग मेरा करिए प्रशस्त
शीश पे धरिए वरद हस्त

सुरों में अमृत घोलिए
ज्ञान चक्षु खोलिए

कंठ में विराजिये
लेखनी निखारिए

शब्द ज्ञान दीजिए
अज्ञानता हर लीजिए

अनवरत लेखन चले
नित्य नव ज्ञान मिले

नव चेतना जगाइये
नित नव सृजन कराइये

अंतस में हो उजास
लिखने की बढ़े प्यास

दोषमुक्त तन बने
रोषमुक्त मन बने

सत्य पथ पर हों अग्रसर
निर्भय और बनें निडर

मुश्किलों से जब हो सामना
तुम हाथ मेरा थामना

चरणों में तन मन समर्पित
शब्दमाल करूं अर्पित

करना स्वीकार मां
देना नित प्यार मां

तरुणा खरे जबलपुर

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required