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मुक्तक

 

सीते बिन राम अधूरे हैं ,.. कैसे सुमन खिल पायेंगे।
कोमिला तुम मधुर वाणी हो,दुःख सुख संग सह जायेंगे।
जुग जुग गाथाएं भायेंगी,.. शंका समाधान युग बीते।
निर्मल जन में भावना मनकी,मानुषों को मार्ग दिखायेंगे।

जनकनंदिनी प्रभु को प्यारी,कोमल पग भूमि कटीली हो।
भूमि से पाया है तुमको,.. वैदेही तुम जनक लली हो।
सीताराम के संग वो लक्ष्मन है,रघुकुल रीति सदा है भली।
राज्य भोग मिला नहीं दुःख हारी,पग पग खारों पे चली हो।

रंगी राही ज्ञान गुण सागर, कनक झनक को ध्याऊंगी मैं।
जग भाये सुहाए रघुनंदन, रघुनाथ के साथ चलूंगी मैं।
करुणा कर कृपा भाग्यशाली,प्रभु इच्छा है मन में जागी।
अहिल्या उद्धार नाथ चरणों से, सपना साकार करुंगी मैं।
©® जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झांसी उ•प्र•

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