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कविता।

“नानक दुखिया सब संसारा”
सोई सुखिया ज़ेहि नाम अधारा॥

परंतु मान्यता यह है कि :-

जन्म लेना एक मनुष्य रूप में,
अपने में बड़ा सौभाग्य होता है,
सभी प्राणियों के जन्म से मानव
का ही जन्म सर्व श्रेष्ठ होता है।

नव मास गर्भ में रह कर शिशु,
और शिशु की माँ कष्ट सहते हैं,
जग में शिशु के प्राकट्य समय
सारा संसार ख़ुशियाँ मनाता है।

नौ महीने के कष्ट सहन करना,
शत वर्षों के सुख का कारण है,
चौरासी लक्ष योनियों में केवल
मनुष्य हँसता है और रो पाता है।

हाँ, गुरु नानक से लेकर अनेकों संतों ने अपने मत कुछ इस प्रकार प्रकट किये हैं :-

“नानक दुखिया सब संसारा”
सोई सुखिया जेहि नाम अधारा।

संसार में सभी दुखी हैं क्योंकि संसार स्वयं दुख है ।
क्यों कह रहे हैं नानक देव जी संसार को दुख?
क्योंकि संसार है अनित्य और अनित्य से व्यक्ति कभी सुख नहीं पा सकता क्योंकि सुख होता है शाश्वत में।
संसार मे सभी कुछ :- व्यक्ति, वस्तुएँ या विचार नाशवान हैं,
वे आज हैं, कल नही होंगी ।उनसे प्राप्त सुख भी क्षणभंगूर ही होगा, इसलिए नानक देव जी कह रहे हैं – “नानक दुखिया सब संसारा!”
हम संसार मे उपलब्ध और इंद्रियों द्वारा अनुभव में आने वाले सुख को ही असली मान बैठे हैं। मगर हमें पता नही कि इंद्रियाँ सिर्फ़ अनित्य और नाशवान को ही अनुभव कर सकती हैं और वे शाश्वत और नित्य को कभी नही जान सकती हैं। हमारी इंद्रियाँ सिर्फ़ बाहरी वस्तुओं को ही जान सकती हैं। इनकी भीतर की दुनिया में कोई पहुँच नहीं है।

ऐसा जान लेना कि इंद्रियों के द्वारा प्राप्त सुख असली सुख नहीं है, ज्ञान की तरफ पहला कदम है। इससे आधी यात्रा तो तय हुई अब मंज़िल ज़्यादा दूर नही है, क्योंकि एक बार ग़लत से छूटे तो सही की पहचान कोई दूर नही, अब सही को भी जान ही लेंगे। उसी की तरफ गुरु नानक अब इशारा कर रहे हैं :– “सोई सुखिया जेहि नाम अधारा!”
वही सुखी है जिसने नाम को अपने जीवन का आधार बना लिया है। यह नाम ही वो शाश्वत पूंजी है जिसे पाकर हमें वास्तविक सुख यानी आनंद की प्राप्ति होती है। इसी नाम को वेद ओम कहते हैं तो उपनिषद् -प्रणव, कबीर और गोरखनाथ इसे शब्द कहते हैं तो ईसा मसीह – वर्ड! सूफ़ी इसी नाम को सदा-ए-आसमानी कहते हैं।
इस नाम को जो अपने जीवन का आधार बना कर इसमे रमण करने लग जाता है वो उस परम सत्य को अपने भीतर ही पा लेता है जिसे खोजने हम तीरथ-तीरथ भटकते हैं। इसी नाम के लिए वे कह रहे है कि अब तू उस निर्विचार चैतन्य को जान और उसी में प्रतिष्ठित होकर कर्म कर।

गुरु नानक देव जी ने कभी आत्मा – परमात्मा के बारे में कोई दर्शन शस्त्र खड़ा नही किया है, जैसे भगवान बुद्ध, महावीर, पतंजलि एवं श्री कृष्ण ने तत्व-ज्ञान का ऐसा समुद्र खड़ा किया जिस पर हज़ारों टीकाएँ लिखी गयी, जिनका हर टीकाकार ने अपने ढंग से विवेचन किया। महात्मा बुद्ध भी यही कहते हैं कि जीवन दुख है, मगर उसके निदान के लिए गौतम बुद्ध बड़ी जटिल लेकिन वैज्ञानिक प्रक्रिया बताते हैं। वे अष्टांगिक मार्ग की बात करते हैं:-
सम्यक जाग्रति, सम्यक स्मृति, सम्यक व्यायाम, सम्यक वाणी, सम्यक आजीविका, सम्यक कर्म, सम्यक संकल्प और सम्यक समाधि।

वहीं पर पतंजलि अष्टांग योग की बात करते हैं। वे कहते हैं पहले चित-वृति निरोध करो तब सुख मिलेगा। तो पहले यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि से गुजरो तब सुख तक पहुँचोगे।

महावीर भी पंच महाव्रत की बात करते हैं- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह!

परंतु नानक देव जी सीधी-सीधी काम की बात कहते हैं जैसे एक आयुर्वेद का वैद्य मरीज की नब्ज़ पकड़ कर हाथ में औषधि पकड़ा देता है। इस मामले में नानक देव बेजोड़ हैं। इसलिए संसार दुख है, इसे पहचानने की ज़रूरत है और नाम का रहस्य जानकार नाम को अपने जीवन का आधार बनाने की ज़रूरत है, फिर हम भी नानक की तरह कहेंगे :–
“सोई सुखिया जेहि नाम अधारा!”

आदित्य नफ़रतें प्यार में बदल दें,
सारे ग़म भुलाकर ख़ुशियाँ भर लें,
फ़िक्र किसी एक की नहीं बल्कि
हम मिल सारे संसार की कर लें।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ

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