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नादान बंगला देश !

नादान बंगला देश !

बंगला देश तुम्हारी कुछ_ कुछ,
चाल निराली दिखती है।
म्यान और तलवार तुम्हारी,
नई _नई सी लगती है।।

जिसने तुम्हें बनाया है,
उस पर ही रौब जमाते हो।
अपने पूज्य पिता श्री को ही,
टेढ़ी आंख दिखाते हो।।

तेरे बड़े शहोदर से हमने,
हक तुम्हे दिलाया है।
पिंजड़े में थे कैद तुम्हें,
हमने आजाद कराया है।

पर तुम आजादी के बदले,
दिल में कालिख रखते हो।
भाई _चारा बकते हो पर,
कत्ल बाप का करते हो।

इतनी नमक हरामी तो,
कुत्ता भी कभी न करता है।
रोटी का टुकड़ा खाकर,
पूरा अहसान मानता है।

अहसान मानना दूर रहा,
तुम तो दुश्मन बन बैठे हो।
पता नहीं क्या सोच रहे हो,
किस गुमान में ऐंठे हो।।

जो देश तुम्हे भड़काते हैं,
दोरंगी चालें चलते हैं।
पड़ोसियों को लड़वाकर,
अपना दबदबा जमाते हैं।।

आपस में तुम लड़ो _मरो,
हुड़दंग करो, या जंग करो।
लेकिन हिन्द भाइयों पर,
यह जुल्म, ज्यादती बन्द करो।।

मत भूलो औकात अभी,
काफी कुछ करना बाकी है।
कुछ बसन्त ही तो गुजरे हैं,
बहुत जिन्दगी बाकी है।।

दुश्मन को पहले हम अपनी,
भाषा से समझाते हैं।
नहीं समझ में आया तो फिर,
बुलडोजर चलवाते हैं।।

हमने तुम्हे बनाया जैसे,
वैसे मिटा भी सकते हैं।
भृकुटी टेढ़ी हुई अगर तो,
धूल चटा भी सकते हैं।।

पर बिगड़े _भटके बेटे की,
तरह तुम्हे समझाते हैं।
भूल सुधारो, होश में आओ,
बार _बार समझाते हैं।।

बहुत हो चुकी नादानी अब,
सही राह अपनाओ तुम।
विघटन कारी चाल छोड़कर,
मुख्य मार्ग में आओ तुम।।

समझो अब भी मौका है,
पिछली घटना को याद करो।
पैसठ और इकहत्तर के,
परिणामों का भी ख्याल करो।

बनकर सही पड़ोसी अपना,
धर्म पड़ोसी अपनाओ ।
एक _दूसरे के सुख _दुःख में,
भाई _चारा दिखलाओ।।

इतनी जिद, इतनी कडुआहट,
इतना क्रोध नहीं अच्छा,
गीदड़ भभकी बन्द करो यह,
बैर _विरोध नहीं अच्छा।।

इसी तरह विषवमन किया तो,
वह दिन दूर नहीं होगा,
इस दुनिया के नक्शे में फिर,
बंगला देश नहीं होगा।

डा शिव शरण श्रीवास्तव “अमल “

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