एक डायरी ऐसी भी
तो चलिए देखते हैं, मंजू की कल्पनाओं के हिसाब से क्या हो सकता हैं, किसी किलर की डायरी में लिखा ||
मैं आज यह डायरी इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि जब बिना सोचे समझे मेरे हाथ कई लोगों के खून से रंग गए, तब मेरे जमीर ने मुझे अंदर तक झंझोड़ कर मुझसे कहा “तू अपने पापों को अब कह दे अलविदा |” शायद यह डायरी जब तक किसी के हाथ लगेगी मैं इस दुनियाँ से जा चूका होगा | लेकिन मेरी यह डायरी लिखने का उद्देश्य यही हैं कि मैं लोगों को इस दुनियाँ से जाते-जाते यह बता सकूँ कि मेरे पापों का भागीदार सिर्फ मैं नहीं | मेरे जिंदगी के हालातों ने और कुछ मेरी गलत संगति ने मुझे ऐसा बना दिया |
एक माली जब कोई पौधा लगाता हैं, तब उसकी देख रेख की वजह से ही वह सुंदर बनता हैं और यदि उस पौधे की शाखाएं आड़ी-टेढ़ी बढ़ने लगे, तब माली उसे काटता-छांटता रहता हैं ताकि वह जब पौधें से पेड़ बने तब उसकी सुंदरता और निखर कर आए और वह अपने आस-पास के पेड़ों के लिए कोई अढ़चन न पैदा कर सके |
यदि उस पेड़ में कभी कोई किड़ा लग जाता हैं, तब माली उस पर दवाई का छिड़काव भी करता हैं, ताकि उसे कोई रोग न लगे और वह एक स्वस्थ पेड़ बन सकें |
हम बच्चों के लिए माता-पिता भी एक माली की तरह ही होते हैं |
मैं भी कभी बहुत ही अच्छा लड़का था, लेकिन न जाने कब मैं गलत आदतों का शिकार हो गया और दिनों-दिन मैं उन गलत मानसिकता का शिकार होता चला गया | काश, उस माली की तरह ही मेरे पेरेंट्स ने मेरी परवरिश की होती तो शायद मैं डायरी तो लिख रहा होता लेकिन उसमें कुछ हसीन सपनें बुन रहा होता, कुछ पढ़ाई की बातें लिख रहा होता | आज यूँ अलविदा न कह रहा होता |
मैं इस दुनियाँ से जाने से पहले यह भी कहना चाहूंगा | जब तक जैसे को तैसा वाला कानून नहीं बनेगा तब तक इसी तरह पापों का सिलसिला चलता रहेगा | इस पर विचार जरूर किया जाए और जल्द से जल्द कोई ऐसा कानून लाए कि हम जैसों की रूह कांप जाए | फिर कोई मासूम हम जैसों के हाथों टुकड़ों में न बंटे, न ही कोई पत्थरों से कुचली जाए |
शायद कुछ पाठकों को लगेगा कि इसमें माता-पिता का क्या दोष
हैं | हर कातिल के लिए पेरेंट्स जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन यदि हर माता-पिता अपने बच्चों में बचपन से ही अच्छे संस्कार डाले | चाहे वह लड़का हो या लड़की दोनों को एक नजरिए से देखे | कभी यह न सोचें कि यह तो लड़का हैं, यह पूरी तरह आजाद हैं, इस पर बंधन लगाने की क्या जरूरत हैं | इसकी इज्जत पर कौन सी आंच आने वाली हैं | बस एक यही सोच समाज में एक कातिल को जन्म देती हैं मानाकि लड़को की इज्जत पर आंच नहीं आती लेकिन इनकी वजह से किसी मासूम बच्ची की जिंदगी तो तबाह हो जाती हैं न!! ! ! उसका क्या कभी सोचा है किसी ने???
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)
1 Comment
बहुत ही सारगर्भित, भावपूर्ण और वैचारिक प्रस्तुति दी है मंजू जी आपने l😍❤👌👌