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दुर्गा दल की सेनापति झलकारी बाई

दुर्गा दल की सेनापति झलकारी बाई

झलकारी बाई भारतीय नारियों में वीरता और साहस का प्रतीक हैं। इतिहास के पन्नों में खोई झलकारी बाई एक विश्वसनीय योद्धा और महिला सैनिक थी। उनकी पुण्यतिथि को कोली समाज के द्वारा शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। झलकारी बाई ने झांसी के युद्ध में भारतीय बगावत के समय महत्वपूर्ण योगदान दिया था। अपनी विनम्रता पूर्ण कर्तव्य का पालन करते हुए वह महान रानी लक्ष्मीबाई की सलाहकार बनी और रानी लक्ष्मीबाई की सेवा के कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए। वास्तव में, वह इतनी साहसी थी कि झांसी के किले की लड़ाई के दौरान, उसने खुद को रानी लक्ष्मीबाई के रूप में छुपा लिया और सेना को आदेश दिया। इस प्रकार असली रानी को इस दौरान झलकारी बाई ने अपनी बहादुरी और साहस से ब्रिटिश सेना के दिल में भय उत्पन्न कर दिया था। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए रानी के वेश में भी युद्ध करती थी।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी बाई की बहादुरी को अपनी पंक्तियों के माध्यम से वर्णन किया है–
“जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी,
गोरों से लड़ना सीखा गयी
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी!!”
झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को झांसी के पास भोजला गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सडोबा सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जो दलित समुदाय से संबंध रखते हैं। झलकारी बाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। झलकारी बाई बचपन से ही घुड़सवारी और हथियार चलाने में कुशल थी। बचपन में ही मां का देहांत हो गया ।उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण झलकारी बाई प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाई थी। झलकारी बाई का पालन -पोषण पिता ने एक बेटे की तरह किया। झलकारी बाई का विवाह एक टोपची सैनिक पूरन सिंह से हुआ था। जो रानी लक्ष्मीबाई के ही तोपखाने की रखवाली किया करते थे। पूरन सिंह ने ही झलकारी बाई की मुलाकात रानी लक्ष्मीबाई से कराई थी। इसके बाद झलकारी बाई सेना में शामिल हो गईं। वहीं झलकारी बाई ने बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया।
झलकारी बाई की एक प्रतिमा समाधि स्थल के रूप में भोपाल के गुरु तेग बहादुर परिसर में स्थापित की गई है। जिसका अनावरण भारत के मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा 10 नवंबर 2017 को किया गया था। भारत सरकार के द्वारा झलकारी बाई के नाम का पोस्ट और टेलीग्राम,स्टांप भी जारी किया गया है।
झलकारी बाई की मृत्यु को लेकर आज भी संसद का विषय है।कुछ इतिहासकारों का मानना है कि रानी लक्ष्मी बाई को सुरक्षित किले से बाहर निकालने के दौरान अंग्रेजों के द्वारा बंदी बना लिया गया था परंतु बाद में उन्हें अंग्रेजों ने छोड़ दिया था। झलकारी बाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। इतिहासकारों के अनुसार झलकारी बाई झांसी के किले में ही अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थीं।
ऐसी वीरांगना को कोटि-कोटि नमन!!

डॉ मीना कुमारी परिहार

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