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गाँव की गलियों से निकल कर शहरी परिवेश में घुल मिल जाना

गाँव की गलियों से निकल कर शहरी परिवेश में घुल मिल जाना

गाँव से शुरू जीवन का सफ़रनामा कानपुर, लखनऊ से अमेरिका तक परिवार, रिश्तेदार व समाज का उत्तरोत्तर विकास व विश्वास के साथ आत्म विश्वास भी बढ़ सका है । एक नया घर “आदित्यायन” बनकर तैयार है, कविता- संग्रह “आदित्यायन” का सफल प्रकाशन और विमोचन भी हो चुका है और “आदित्यायन” की शृंखला में “आदित्यायन-अनुभूति” दूसरा कविता-संग्रह और तीसरे कविता संग्रह “आदित्यायन- संकल्प”, इसी श्रृंखला में अन्य पुस्तक संग्रह “आदित्यायन-सुभाषितम्” तथा “आदित्यायन- अभिलाषा” भी प्रकाशित होकर विमोचन की प्रतीक्षा में हैं। एक अन्य कविता संग्रह “आदित्यायन-भुवन राममय” और एक लेख संग्रह आदित्यायन-जीवन अमृत” भी प्रकाशन के लिये तैयार हैं। तीन अन्य काव्य-संग्रह भी बिलकुल तैयार हैं और आशा व उत्साह दोनों हैं कि शीघ्र इन पुस्तकों को अपना स्वरूप शीघ्र मिल सकेगा और सम्मानित पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत हो सकेंगी।

मेरे बृहद परिवार के छोटे बड़े सबको जीवन पथ पर अग्रसर देखकर प्रसन्नता होती है, जहाँ एक तरफ़ हम में से कुछ सेवा निवृत हो चुके हैं तो कुछ जीवन पथ पर अग्रसर हो आगे बढ़ते जा रहे हैं जिन्हें जीवन की सफलता देख कर अपार सुख व संतोष का अनुभव हो रहा है। कदाचित यह उन्नति हमारे स्वर्गीय माता-पिता और अग्रज जीवित रहते और देख पाते, जिन्होंने ग्रामीण परिवेश में पाल पोष कर पढ़ा लिखा कर जीवन की नई राह दिखाई। आप सभी के संस्कारों की देन ही तो है, यह सब। आप सभी को शत-शत नमन।
*सेवानिवृत्ति के उपरांत और क्या*

सेवा निवृति (Retirement) के सम्बंध में बहुत कुछ लिखा जाता है और बहुत कुछ कहा जाता है परंतु मुझे लगता है कि अन्य व्यक्तिगत बातों की तरह ही यह विषय भी हर व्यक्ति के लिए अलग अलग विचार व तथ्य प्रस्तुत करता है।

मेरे स्वयं के सम्बंध में कुछ इसी तरह का मिला जुला अनुभव प्राप्त हुआ और हो भी रहा है। सेना की 36 वर्ष 7 महीने और 16 दिन की कुल सेवा में उम्र 60 को पार कर गयी। सेवानिवृत्ति से कुछ उत्साह था, निरंतरता से मुक्ति व स्वतंत्र दिनचर्या पाने का, तो कुछ अवसाद भी अवश्य था कि शायद कर्मठ जीवन के बाद शिथिलता प्रभावित करेगी। यही मिली जुली सोच आगे भी कुछ करने का विकल्प खोजने लगी ताकि सक्रियता अक्षुण्य बनी रहे और इस सोच का संकल्प पूरा होता हुआ भी सामने आया जब एक स्थानीय विश्वविद्यालय में संयुक्त परीक्षा नियंत्रक के पद के लिए चयन हो गया। शीघ्र पद ग्रहण करने का आदेश भी मिल गया लेकिन परिवार, सम्बन्धी व स्थानीय मित्रों ने इस पर रोक लगा दी कि बहुत कर लिया नौकरी, अरे अब तो शान्ति से घर में रहो। इसी तरह और भी अवसर मिले पर यही विरोध हर बार सामने था। अन्ततोगत्वा नौकरी की दूसरी पारी का विचार त्यागना पड़ा।
परंतु लखनऊ के रायबरेली रोड की सैनिक नगर कालोनी की “आवासीय जन कल्याण समिति” का अध्यक्ष पद जो सर्विस में रहते हुये ही ग्रहण कर चुका था, उससे मुक्ति तब से लेकर अब पंद्रह वर्षों के बाद मिली है। इतना ही नहीं, 2011 के प्रारम्भ से ही सैनिक नगर की मुख्य आवासीय समिति “श्री गणेश सहकारी आवास समिति लिमिटेड” की प्रबंध समिति का भी निदेशक व निदेशक बोर्ड का चेयरमैन बनना पड़ा जो दस साल यानी दो बार के कार्य काल तक रहकर निभाना पड़ा। चूँकि तीसरी बार चुने जाने का सहकारिता नियमावली में नियम ही नही है इसलिए इस पद से छुटकारा अब तीन साल पहले मिल सका है।

75 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद भी कार्य क्षमता बनाये रखने की पटुता व कार्य कुशलता के, कतिपय सेना सेवा के लगातार प्रशिक्षण व अनुशासन बद्ध कार्यशैली ही मुख्य अवयव हैं।

वास्तव में पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक जीवन में सक्रियता का बृहद अवसर तो सेवानिवृत्ति के उपरांत ही मिल सका, और यह सक्रियता जीवन की निरंतरता बनाये रखने व शारीरिक सौष्ठव बनाये रखने में हमेशा मददगार साबित होती आयी है, अभी भी हो रही है। यद्यपि स्वयं की कुछ शारीरिक रोग ग्रस्तता व जीवन साथी की निरंतर रोग ग्रस्तता अक्सर इस जीवन पद्धति में अवरोध भी पैदा कर रही है परंतु परमात्मा की कृपा भी साथ साथ ही बरसती रही कि हम दोनो अपनो-परायों के बीच सकुशल उपस्थित हैं।

यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि सामाजिक व धार्मिक चिंतन के अवसर के साथ साथ भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक व कुछ हद तक राजनीतिक चेतना (बिना किसी राजनीतिक सरोकार के प्रभाव के साथ) का समावेश भी अपने स्वयं के व्यक्तित्व में दिखाई पड़ने लगा। इसी बीच बचपन की अधूरी गद्य पद्य व काव्य रचना का शौक़ भी पूरा करने का अवसर, कुछ सीमा तक रचनात्मक लोक प्रियता के स्तर तक पहुँचने का अवसर व अपवाद स्वरूप नकारात्मक विरोध भी इसी जीवन काल में उपस्थित होते रहे हैं।

इसी तरह पिछले वर्षों में तीन बार की अमेरिका की यात्रा व वहाँ निवास का विशेष अवसर हमारे छोटे सुपुत्र अनुपम के वहाँ रहने से भी मिला । वहाँ का वातावरण, जलवायु, रहन सहन, सामाजिक व धार्मिक जीवन जानने व समझने का सुंदर अवसर भी मिलता रहा, जिसका ज़्यादा वर्णन यहाँ सम्भव नही है।

विषय को विराम देने के पहले इतना ही कहना चाहूँगा कि सेवा निवृत्ति के बाद की दूसरी पारी जहाँ तक मेरे व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य में किसी भी दृष्टि से सुखद व संतुष्टि कारक ही है। यह सम्भव तब हुआ जब शायद पारिवारिक उत्तरदायित्व का कोई बोझ अवशेष न रहने का एक पहलू भी इस संतुष्टि में विशेष कारक है क्योंकि एक बृहद पारिवारिक दायरा होते हुये भी सबका स्नेह, सबका साथ व दोनो तरफ़ का सादर सम्मान भाव, जीवन की निश्चिंतता को और अधिक स्वतंत्र बना देते हैं।

जय हिंद, जय जवान, जय हिंद की सेना।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ

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