महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी का सामाजिक दर्शन
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी का सामाजिक दर्शन
डॉ. ओम ऋषि भारद्वाज, कवि एवं साहित्यकार/9412388238;
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी का सामाजिक दर्शन भारतीय समाज के समग्र विकास और सामाजिक सुधारों पर आधारित था। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद्, और समाज सुधारक थे जिन्होंने समाज में सुधार और समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए।
1. शिक्षा का प्रसार: मालवीय जी का मानना था कि शिक्षा समाज में जागरूकता और सुधार का सबसे बड़ा साधन है। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके अनुसार, एक सशक्त और शिक्षित समाज ही राष्ट्र की प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
2. सामाजिक समरसता: वे जाति और संप्रदाय के भेदभाव के विरुद्ध थे और सामाजिक एकता पर बल देते थे। उन्होंने छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव का विरोध किया और समाज के सभी वर्गों को एक समान मंच पर लाने की कोशिश की।
3. स्वदेशी और स्वावलंबन: मालवीय जी ने भारतीयों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। वे भारतीय उद्योगों और स्वदेशी वस्त्रों का समर्थन करते थे ताकि देश आर्थिक दृष्टि से भी सशक्त बन सके।
4. राष्ट्रवाद: उनका समाज दर्शन राष्ट्र की अखंडता, भाईचारा और स्वतंत्रता के प्रति गहरी प्रतिबद्धता से प्रेरित था। वे भारतीय संस्कृति और मूल्यों के संवर्धन के पक्षधर थे और भारतीयता को उच्च मानते थे।
5. न्याय और मानवाधिकार: मालवीय जी ने कमजोर और दलित वर्ग के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। वे समाज में न्याय और समानता की स्थापना के लिए समर्पित थे।
महामना मालवीय जी का सामाजिक दर्शन उनके नैतिक मूल्यों और सामाजिक सेवा की भावना को दर्शाता है। वे भारत के पुनर्निर्माण के लिए एक आधुनिक और न्यायसंगत समाज की कल्पना करते थे, जिसमें हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान मिले।