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मूक की व्यथा

मूक की व्यथा

तीन बच्चे इन्टू पिंटू चिंटू सोचते रहते थे न जाने हमको लोग क्यों भगाते रहते हैं ।मां पिता है नहीं तो जिसकी जो मर्जी आती है वह कुछ दे देता है नहींc तो डांट के भगा देता है। छोटे ही थे दया खाकर कभी कुछ खाने को दे देते हैं कभी भूखे पेट सोना पड़ता है। एक स्कूल में शरण ली परंतु वहां से भी निकाल दिया गया दूसरे बच्चे तुम्हारे कारण बिगड़ जाएंगे और परेशान होंगे।
मोहल्ले की दो आंटियों ने बांध लिया था कि सुबह शाम वे खाने को देगी कभी-कभी जब वह खाना देती थी समय पाते ही कोई दूसरा चट कर जाता था। जैसे तैसे तीनों बड़े हो गए पर सबसे ज्यादा चालाक जो था वह इंटू था वह अपने दोनों भाइयों का खाना खा जाता था। और जब बात होती थी तो लड़ने बैठ जाता था। न जाने एक दिन इंटू कहां चला गया पता नहीं अब चिंटू एवं पिंटू ही रह गए कि दोनों की आपस में भी नहीं पटती थी आपस में बहुत लड़ते थे एक दूसरे को खूब मारते थे उनके इस व्यवहार से मोहल्ले में सभी को बहुत परेशानी हो जाती थी कभी-कभी खाना नहीं मिलता तो रात रात भर रोते रहते पर कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं एक सीमा के बाद मां पिता भी साथ छोड़ देते हैं उनके माता-पिता रहते भी तो क्या करते इनका दुनिया में कोई नहीं था l
बच्चे थे दूसरे बच्चों के द्वारा मारा पीटा भी जाता उन्हें दुम दबा के भागना पड़ता बच्चों की आदत भी पड़ गई थी बड़े भी हो गए थे वह कुछ कर भी नहीं सकते थेl लोगों के आश्रित रहकर उनका जीवन बन गया थाl एक दिन अचानक भूख के मारे पिंटू रात भर रोता रहा पर मोहल्ले वालों को कोई भी लेना देना नहीं था सब बहरे हो गए हैं lरमा ने देखा रात के 3:00 उठ के उसने खाने को दिया पिंटू गूंगा था । कुछ बोल नहीं पाया पर उसकी आंखों से लग रहा था की बहुत अच्छा किया जो खाने को दे दिया क्योंकि भूख से तो आते कुलबुला रही थीl तब जाकर पिंटू रात को चैन से सोता रहा पर यह क्या अचानक वह दिखाई नहीं दिया केवल चिंटू रह गया थाl और एक दिन चिंटू ने दो बच्चों को दौड़ा दिया कॉरपोरेशन वाले आए और उसे पकड़ के ले गए ऐसे में कभी भी कोई हादसा हो सकता था परंतु चिंटू सोच रहा था इस भरे पूरे संसार में ऊपर वाले ने पैदा तो कर दिया पर खाने की व्यवस्था किस प्रकार से हो सके नीचे वालों को दायित्व दिया था के लिए नीचे वालों को दिल नहीं दिया कि जो अपनी आखिरी रोटी कम से काम निकाल कर दे दे ।
तो उनका जीवन भी बचा रहे उन्होंने क्या गलती करी जो इस तरह की सजा भुगतने के लिए हर गली मोहल्ले में उनके भाई और बहन भूखे है ।
लोगों को बस हमारा काटना दिखता है हमारी भूख नहीं दिखती हम जब भूखे रहते हो चिल्लाते हैं उन्हें लगता है हम बेवजह भूख रहे हैं हमारे खाने की व्यवस्था न करके हम पर डंडे मारे जाते हैं हम अपनी बचत करने के लिए काटे नहीं तो क्या करें फिर हम अपनी पुरानी अवस्था में आ जाते हैं हम जंगली थे हमें पालतू बनाया गया और फिर हमें छोड़ दिया गया हमारे कई भाई अमीरी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं और हम उन्हीं की जाति के हैं हमें यूं ही छोड़ दिया जाता है दूध के पैकेट में कुछ नहीं होता पर उसकी सुगंध से हम उसे कहते हैं और वह हमारे पेट में फंस जाता है इसलिए हमारी यही अवस्था होती है कुछ नहीं सोचता और हम किसी को भी काट देते हैं इसमें हमारा दोष नहीं है मनुष्य रूपी जानवर को समझना चाहिए उन्होंने ने हमें फालतू बनाया हमारे खाने की व्यवस्था भी उन्हीं को करना है।
लोगों के द्वारा डंडे से मार मार कर पैर तोड़ देते हैं कभी कोई गाड़ी के नीचे आकर और कभी दूध की थैलियां को खाकर दम तोड़ने पर मजबूर हैं
* हे भगवान कब हमारी सुध लोगे।लेना खबर हमारी है धर्मराज युधिष्ठिर हे दत्त भगवान

डॉ सरिता अग्निहोत्री सजल
मंडला मध्य प्रदेश

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