तुम होते तो
तुम होते तो
‘तुम होते तो’ साहित्यांजलि प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित, वरिष्ठ कवि आदरणीय पंकज बुरहानपुरी जी द्वारा रचित कई गीतों का एक गीत संग्रह है, जिसमें उन्होंने अपनी संवेदनाओं को गीतों के माध्यम से बड़े ही प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है-
सात सोपानो में विभक्त यह पुस्तक भाषा, शिल्प, भाव, लयात्मकता, विभिन्न रसों आदि को खुद में समाहित किये हुए पूर्ण समग्रता प्राप्त करती है।
जीवन के अनुभवों को बड़ी सजीवता से इस किताब में पंकज जी ने उतारा है। उनका चिंतन दार्शनिक है। ढेर सारे विषयों को समेटे हुए यह पुस्तक समस्त छंद-विधान का पालन करते हुए उत्कृष्टता प्राप्त करती है।
मेरा मानना है कि यह किताब निश्चित ही पाठकों के हृदय में सीधे उतरेगी।
इसी किताब से शीर्षक गीत की कुछ पंक्तियां –
तुम होते तो सावन मेरे,
सपनों के मंजर हो जाते।
गुंचा-गुंचा मन खिल जाता,
तन के तृप्त अधर हो जाते।
संशय-सरिता में विश्वासों
की चट्टानें ध्वस्त न होतीं।
पर-उपवन की मुस्कानों से
आँखें विचलित त्रस्त न होतीं।
तुम होते तो दो-राहों के
सारे द्वार प्रखर हो जाते।
गुंचा-गुंचा मन खिल जाता
तन के तृप्त अधर हो जाते।।
सोमनाथ शुक्ल
प्रयागराज (उ.प्र.)