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समीक्षा – काव्य कस्तूरी राज

समीक्षा – काव्य कस्तूरी राज

कवयित्री राजकुमारी रैकवार राज जी ने आयु की गणना के महत्त्व पर कठिन कुठाराघात किया है । माननीय कवियत्री ने अपने समग्र जीवन अनुभव को अत्यंत सरल भाषा में व्यक्त कर दिया है ।
पुस्तक माँ को समर्पित है और पिता के लिए भी उनके हृदय में सम्मान है , वह कविता में भरपूर छलक रहा है । वास्तव में लेखनी से निकली स्याही काली नीली हरी कैसी भी हो , संस्कारों की उज्ज्वलता इसमें श्वेत वर्ण का आधान करती हुई स्पष्ट प्रतिभासित हो रही है । छंद के स्थान पर भावों का ज्वार भाटा पाठक को मूक एवं स्तब्ध कर देता है । कवयित्री ने ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति को कई कविताओं में परिलक्षित किया है, किन्तु भौतिक प्रेम को छोड़ा नहीं । प्राकृत सौन्दर्य और प्रकृति के विषय में जल और माँ नर्मदा की स्तुति करके काव्य की सामाजिक सार्थकता सिद्ध कर दी है । यही नहीं उनका कोमल हृदय पौधे से स्पर्धा करके संपूर्ण प्राणिमात्र के कल्याण की जो बात करता है, वह निश्चित ही अनुसरणीय एवं अनुकरणीय भी है । आध्यात्मिक चेतना और मन की शुचिता पर भी जो लिखा है , वह कालान्तर तक बहुत से नव कवियों को प्रेरणा देता रहेगा । काव्य संग्रह में ग़ज़ल को सम्मिलित किया है , पर साथ ही साथ अपनी हिन्दी भाषा का सम्मान दुलार करना नहीं भूलीं
मैं आभार व्यक्त करती हूँ श्रीमती राजकुमारी जी का, जिन्होंने इतना सुंदर काव्य पढ़ने का अवसर प्रदान किया । यह समीक्षा सूर्य के प्रकाश में दीप दिखाने की भाँति पूर्ण कर रही हूँ । मेरा यह अनुमोदन रहेगा कि प्रत्येक आयु के जिज्ञासु , ज्ञान और काव्य पिपासुओं को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । यह अनुभव , भाव संस्कार का अद्भुत संस्कार है । इसे प्राप्त करने में किसी को भी चूकना नहीं चाहिए ।
सादर एवं सम्मान
प्रोफ़ेसर निशि अरोड़ा
विभागाध्यक्ष ,संस्कृत संहिता एवं सिद्धांत विभाग , आयुर्वेद एवम् यूनानी तिब्बिया कॉलेज और अस्पताल , दिल्ली यूनिवर्सिटी

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