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माथे की बिंदी हिंदी

माथे की बिंदी हिंदी

भारत माता के माथे की बिंदी हिंदी होती हैl
भाषा के विकास से देश की संस्कृति जिन्दी होती है ll
चौदह अगस्त उन्नीस सौ उनचास को हिंदी राजभाषा बनी l
अपने ही घर में हिंदी रहने लगी सदा अनमनी ll

हमसब हिंदी बोलने में सदा संकोच करते है l
लेकिन अंग्रेजी बोलने में हम गर्व करते है ll
न्यायालय में न्यायाधीश अंग्रेजी में निर्णय करते हैं l
न्यायालय में अधिवक्ता अंग्रेजी में बहस करते हैं ll

आज लोग बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते हैं l
और स्वयं भी हिंदी बोलने से सदा कतराते हैं ll
अधिकतर लोग बच्चों को मॉम डैड सिखाते हैं l
सुबह से शाम तक अंग्रेजी की स्टोरी रटवाते हैं ll

तभी हिंदी भाषा का विकास नहीं कर पाते हैं l
लेकिन उन्हें अर्थ कभी नहीं बतलाते हैं ll
टाटा बाय -बाय के सम्मान से खुश हो जाते हैं l
पूरी साल ही वे अंग्रेजी के ही गीत गाते है ll
केवल चौदह सितम्बर को ही हिंदी – हिंदी मत चिल्लाओ l
वर्षभर हिंदी में ही खुद काम करके भी दिखाओ ll
सरकार पर भारी शक्ति प्रदर्शन कर दबाव बनाओ l
मंत्रियों से भी भाषण सदा हिंदी में दिलवाओ ll

हिंदी के विकास में हर नागरिक भूमिका निभाए l
हिंदी भाषा के विकास से ही राष्ट्र विकसित हो पाए ll
हिंदी भाषा की जननी संस्कृत भी पछताती है l
बेटी के अपमान को वह सहन नहीं कर पाती है ll

अ से अर्जुन से चलकर लम्बी दौड़ लगाती है l
जो मन से पढ़ता है उसको ज्ञानी बड़ा बनाती है ll
एप्पल से चलकर अंग्रेजी मंद – मंद मुस्काती है l
दौड़ धूप करके अंग्रेजी ज़ेबरा पर रुक जाती है ll

रोजगार आधार अगर हिंदी ही यहाँ पर होती है l
हिंदी के उत्थान की सुन्दर पहली सीढ़ी होती होती है ll
भारत माता के माथे की बिंदी हिंदी होती है l
भाषा के विकास से देश की संस्कृति जिन्दी होती है ll

डॉ. बिश्वम्भर दयाल अवस्थी
कवि एवं साहित्यकार
मो. 271 मुरारी नगर, सिद्धेश्वर रोड गली न. 4 खुर्जा बुलंदशहर (उ. प्र.) पि. नं. 203131

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