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चांदनी रातों की बातें

चांदनी रातों की बातें

मत पूछो चांदनी रातों की बातें
वो चांद से मुलाकात की रातें
आज भी मन मधुर यादों में खो जाता है
बहुत ही लुभावनी और सुहानी होती है
आसमां मैं चमकते ये चांद और सितारे
मन को कर देते हैं उजियारे
वो लम्हें आज भी मुझे याद है
वह लम्हें भुलाए नहीं कभी भूल सकती
जब दादा -दादी मुझे चांदनी रातों में
आंगन में खाट पर बिठाकर अपने संग
मुझे आसमां में चांद को दिखाते
चुप हो जा लाडली चांद मां तुझे बुला रहे हैं
तुझे चांद की सैर कराएंगे
चंद मामा तुम्हें कटोरी में दूध -भात खिलाएंगे
वो तुमसे मिलने आएंगे तुझे साथ ले जाएंगे
मैं चाहे जितना गुस्सा करूं
चंद मामा की बातों से मेरा गुस्सा यूं
झट से गायब हो जाता
चांद की सैर करने को दिल मचल उठता
चांद मामा अपनी रुपहली चांदनी से
नहला रहे हैं
मम्मी -पापा गोद में बिठाकर चंद मामा के पास ले जाने की बातें करके फुसलाते
कैसे भूलूं..? वो चांदनी रातों की बातें
जब कुछ सयानी हुई तो चांद में
हमसफर की तलाश करने लगी
वो मोहब्बत के लम्हें
जिसमें डूब जाना है इबादत
एक शिद्दत से मिलने की जद्दोजहद
फिर एक दूजे खो जाना
चांदनी रातों में चांद से बातें करना
चांद भी चांदनी में अपने पूरे शबाब
के संग धवल प्रकाश बिखेरता हुआ
मानों प्रेमगीत छेड़ जाता है
चांद पर दाग बहुत कुछ कह जाते हैं
अफसाने
हौले -हौले से मेरे तन -मन में
अजीब सी हलचल लगा है मचाने
सच, चांद भी क्या सितम ढाता है
प्रणय के बंधन में बढ़ने को मजबूर करता है
चांदनी रातों की बातें है अनूठी
चाहे जितना कर लो होती नहीं पूरी

डॉ मीना कुमारी परिहार

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