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एक ख्वाहिश,,

अभिलाषा ।।
तुम्हें देखना तो चाहा,
लेकिन ना देख पाया।
आखिर सूरत है कैसी,
पहचान ही ना पाया।।
तुम्हें देखना तो चाहा,,,

कभी ख्वाब में भी आओ,
दिल में तुम समाओ।

आखिर मस्ती है कैसी,
मैं जान ही ना पाया।।
तुम्हें देखना तो चाहा,
लेकिन न दे ख पाया।,,,,
मैं भी हूं कायल तुम्हारा,
बस ,तुम्हें चाहता हूं।
अब कुछ ना कहूं, मैं तुमसे,
मुझ से रहा न जाए।।
तुम्हें देखना तो चाहा,
लेकिन ना देख पाया,,,
कई लोगों से सुना है,,,

,
तुम वह रहम दिल हो। 2
मेरे पास भी तो आओ,
दीदार तो कराओ।
आखिर सूरत है कैसी,
मेरे मन को भी यह भाये।।
तुम्हें देखना तो चाहा,
लेकिन ना देख पाया,,,

मैं भी हूं तुम्हारा अपना,
बस, तुम्हें चाहता हूं।
अब कर दो नजारा ऐसा,
तुमको भुला ना पाऊं।।
तुम्हें देखना तो चाहा,
लेकिन ना देख पाया,,,

है कुछ तो कशिश तुम में
जो दुनिया को लुभाये,,,

आखिर सूरत है कैसी,
पहचान ही ना पाया।
तुम्हें देखना तो चाहा,
लेकिन ना देख पाया,,

राजेन्द्र कुमार तिवारी, मन्दसौर मध्यप्रदेश

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