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संगठन से कई गुना सरकार बड़ा…!

संगठन से कई गुना सरकार बड़ा…!
©आलेख: डॉ. अभिषेक कुमार
किसी भी लोकतांत्रिक देश हो या राजतांत्रिक देश वहां की सरकार सबसे महत्वपूर्ण, बड़ी और वृहत इकाई होती है। जो अपने देश और जनसमुदाय को अवसर, विकास, न्याय और सुरक्षा प्रदान करती है। वहां की सरकार में पंजीकृत या मान्यता प्राप्त कोई भी व्यक्ति विशेष, संगठन, कंपनी, उपक्रम, विभाग या संस्थान सरकार से क़तई बड़ा नहीं हो सकता..! क्योंकि उस देश की परिसिमा के अंदर पनपने वाले तमाम संगठन, कंपनी, उपक्रम, विभाग या संस्थान को पहले सरकार ही मान्यता देती है तभी उसकी क्रियाकलाप मान्यताप्राप्त वैधता की श्रेणी में आता है। जिस संगठन को सरकार ने मान्यता दिया हो वह भला कैसे सरकार से बड़ा हो सकता है..? उदाहरण के लिए.. चुनाव आयोग भारतीय संविधान/विधि एवं सरकार से मान्यता प्राप्त एक स्वायत संस्थान/विभाग है। वहीं चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त कोई राजनैतिक दल होता है..! तो ऐसे मान्यता प्राप्त राजनैतिक दल कैसे सरकार से बड़ा हो सकता है ..? बुद्धिजीवी प्रतिउत्तर दें..? सरकार के अधीन ही व्यक्ति, समाज, सारी संपतियां, भूभाग और तमाम संगठन, संस्थान, विभाग आते हैं। सरकार ने ही नियम और मर्यादा सीमा के भीतर किसी भी व्यक्ति/ संगठन को स्वतंत्रता का अधिकार एवं मानवाधिकार दिए हैं। देश के बाहर जाने पर कोई भी भारतीय नागरिक की पहचान उसके पासपोर्ट पर भारत सरकार का होता है की वह भारत सरकार का नागरिक है..! यदि सरकार से बड़ा संगठन होता है तो क्यों नहीं उसके विशिष्ट पहचान जैसे पासपोर्ट, आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पैन कार्ड आदि में उसके संगठन का नाम होता है..?

सरकार की अवधारणा अनादिकाल से चलती आ रही है और यह सत्य है की सरकार में तमाम संगठन और गैर संगठन के लोग बैठे और उठें परंतु सरकार बीते कई शताब्दियों से निरंतर अपने गति से चलाएमान हो रही है। फर्क बस इतना ही है की कभी राजतांत्रिक व्यस्था के अनुरूप सरकार चला फिर उसके बाद ब्रिटिश हुकूमत के मापदंडों के अनुसार सरकार चला और फिर वर्तमान में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के हिसाब से सरकार चल रहा है और आने वाले समय में शायद संगणक तांत्रिक के तौर तरीके पर सरकार चले परंतु सरकार तो चलेगा जरूर..! ऐसा हो ही नहीं सकता की किसी देश में सरकार न चले..? इससे पहले ऐसा प्रसंग कभी भी सुनने, पढ़ने, देखने को नहीं मिला की उस सरकार के भीतर कोई व्यक्ति या संगठन यह कह रहा हो की हम सरकार से बड़े हैं। सरकार के किसी संवैधानिक उच्च पद पर बैठे व्यक्ति से इस प्रकार की वाणी शोभा नहीं देता। बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे जब कोई व्यक्ति उलूल-जुलूल बिना कोई तथ्य के उल्टा-सीधा, व्यर्थ, निरर्थक बोलता है तो बुद्धिजीवियों, पत्रकारों को उन्हें गलती/सुधार का बोध कराना चाहिए..! लेखकों को कलम उठा के उनके कथन का खण्डन या सुझाव देना चाहिए। यदि ऐसा न हो तो आने वाला भविष्य अंधकार में चला जायेगा। आने वाला भविष्य, अंध भक्त, अनुयायी वह यही मान बैठेंगे की सरकार से बड़ा संगठन होता है। आंख बंद कर लेने से सूर्य का प्रकाश लोप नहीं हो जाता। जो सत्य है वह किसी भी दृष्टिकोण से सत्य ही होगा और वह किसी भी कसौटी पर कसा जा सकेगा।

किसी भी देश में जब कोई संगठन सरकार से बड़ा और मजबूत हो जाता है तो उसके परिणाम बहुत ही घातक देखा गया है जैसे की आपको अफगानिस्तान की किस्सा मालूम होगा वहां मौजूदा सरकार से बड़ा तालिबान नामक संगठन हो गया। परिणाम क्या हुआ सरकार में तालिबान संगठन के लोग बल और अनीति पूर्वक काबिज हो गए। पर सरकार तालिबान से छोटा नहीं हुआ बल्कि तालिबान के लोगों ने सरकार पर काबिज हुए और पूरा नियंत्रण अपने हाथो में लिया। कभी भारत के तमाम छोटे छोटे टुकड़ों में बटे राज्य सरकारों से ज्यादा बड़ा और शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कम्पनी हो गई, परिणाम क्या हुआ ईस्ट इंडिया कम्पनी यानी सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों की सरकार हो गई। इस बात से यह स्पष्ट होता है की सरकार नमक इकाई/शब्द विभिन्न परिदृश्यों में स्थिर है। उस पर तमाम मत, विचारधारा, संगठन, कार्य क्षमता के लोग आरूढ़ होते हैं, कार्य करते हैं और फिर समयानुसार उतर भी जाते हैं। परंतु सरकार जस का तस बना रहता है।

भारत में वर्तमान परिदृश्य के दृष्टिगत कोई संगठन आधिकारिक तौर पर यह नहीं कह रहा की हम सरकार से बड़े हैं पर उस संगठन के किसी खास व्यक्ति को न जाने क्या सूझ रही और यह साबित करने में लगे हैं की सरकार से बड़ा संगठन होता है..! जबकि यह उनका वक्तव्य तथ्यपरक नहीं है, सरकार से बड़ा उस देश में कोई भी संगठन नहीं होता। यदि ऐसा हुआ तो निश्चित ही तत्कालीन सरकार के लिए वह संगठन खतरा हो सकता है। जैसे रूस और चीन में सरकार से ज्यादा शक्तिशाली वहां के मौजूदा सरकार पर सवार पार्टियां हो गई है। परिणाम क्या हुआ लंबे समय से देश की सरकार एक ही पार्टी चला रही है और मुख्य नेतृत्वकर्ता/हुक्मरान की पद पर एक व्यक्ति लंबे समय से बैठा है। जबकि यह पद्धति लोकतांत्रिक देश की खूबसूरत मर्यादा के विपरीत है। कोई भी राजनैतिक व्यक्ति/संगठन का गुणवत्ता और महत्ता के दृष्टिकोण से उसकी लोकप्रियता में एक न एक दिन गिरावट आती ही है तभी तो सत्ता परिवर्तन होता है।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का मजबूत होना बहुत जरूरी है अन्यथा सत्ता पक्ष मनमानी पर उतारू हो सकता है, वह निरंकुश भी हो सकता है। सभी पक्ष/विपक्ष पार्टियां सत्य धर्म मानवीय मार्ग का अनुसरण करें। जब वह सत्ता में चुन कर आए तो जाति पाती धर्म संप्रदाय से ऊपर उठकर देश के समस्त नागरिक को व्यक्तिगत, सामूहिक सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक दृष्टिकोण से उत्थान के समान समेकित अवसर उपलब्ध कराए।

इतना सत्य जरूर है की व्यक्ति से बड़ा उसका पद होता है और पद से बड़ा उसका संगठन होता है जिसका वह पदाधिकारी नियुक्त है। किंतु यह संगठन के भीतर के अवधारणा तक सीमित है की संगठन में संगठन से बड़ा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता। परंतु किसी संगठन का ढांचा और सरकार का ढांचा दोनो एक सिक्के के दो पहलू हैं। यह जरूर है की सरकार में किसी राजनैतिक संगठन के लोग बैठते हैं और सरकार को चलाते हैं। परंतु सरकार चलाने का तौर तरीका और संगठन चलाने के रूप रेखा दोनो अलग-अलग भिन्न है। यह सत्य जरूर है की किसी संगठन का व्यक्ति अपने संगठन से बड़ा नहीं हो सकता..! परंतु जब उसी संगठन का कोई व्यक्ति सरकार में बैठता है तो वह खुद या उसका संगठन सरकार से बड़ा नहीं हो जाता क्योंकि वही सरकार ने कभी उसे मान्यता दिया है। तो किसी दूसरे संगठन को मान्यता देने वाला सरकार उस संगठन से छोटा कैसा हो सकता है..? जब कोई राजनैतिक दल जनादेश पाकर एक सीमित निश्चित अवधि के लिए सरकार पर आरूढ़ होती है तो फिर वह एक दिन चुनाव हार के विपक्ष के लाचारी भी बन जाती है। लेकिन सरकार पर कोई न कोई दल काबिज होते रहता है, फिर एक दिन वह भी उतर जाता है। तो ऐसे में कहना क्या उचित होगा की सरकार से बड़ा संगठन होता है..? कदापि नहीं..! सरकार से बड़ा कोई संगठन नहीं हो सकता..! वर्षो से सरकार अपनी नियत चाल में चल रही है और इसमें तमाम राजा, महराजा, संगठन पार्टियां आए, गए और जाते रहेंगे परंतु आज तक किसी राजा और संगठन से यह नहीं सुना गया की वह सरकार से बड़ा हो गया। इस प्रकार की सोच और वक्तव्य अज्ञान, अहंकार, अभिमान का सूचक है इससे बचना चाहिए किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति को..!

अगर देखा जाए तो भारत में जितने राजनैतिक संगठन हो या किसी ट्रस्ट, सोसाइटी या कंपनी हो ये सभी सरकार के द्वारा पूर्व में पारित किए गए किसी अधिनियम/कानून के तहत ही उसकी मर्यादा में रह कर कार्य करने की स्वतंत्रता है। जैसे की राजनीतिक दलों का पंजीकरण जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29(ए) के प्रावधानों के तहत सरकार के चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी जाती है। वहीं ट्रस्ट का पंजीकरण अधिनियम, 1882 के तहत एवं सोसाइटी का पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत तमाम संस्थाओं का पंजीकरण नित्य दिन कराया जाता है। तथा किसी भी कंपनी का पंजीकरण पुनः संशोधित कंपनी अधिनियम 2013 के तहत सरकार मान्यता देती है। ऐसे में कोई संगठन, ट्रस्ट, सोसाइटी, कंपनी कैसे कह सकता है की हम सरकार से बड़े हैं..? जबकि किसी संगठन, ट्रस्ट, सोसाइटी, कम्पनी ने अभी तक नहीं कहा है की हम सरकार से बड़े हो गए है बल्कि उस संगठन के किसी खास व्यक्ति द्वारा बार-बार यह जरूर साबित किया जा रहा है की संगठन, सरकार से बड़ा होता है। तो ऐसे में उस सरकार के प्रमुख संचालक/नेतृत्व कर्ता को उस व्यक्ति से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए की ठीक है आपको बोलने और लिखने की संवैधानिक स्वतंत्रता है परंतु कैसे संगठन, सरकार से बड़ा होता है उसका स्पष्ट आख्या प्रस्तुत करें अन्यथा अपना जुबान वापस लें..? क्योंकि लोकतंत्र में जो शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति जो कुछ भी बोलता है उनके समर्थकों/देश में वह नजीर बन जाता है। सरकार अनादिकाल से पवित्र और सबसे बड़ा था, आज भी है, और कल भी रहेगा। परंतु इसपर आरूढ़ होने वाले व्यक्ति/संगठन भले ईमानदार, नैतिकवान हो, ना हो यह एक अलग विषय है। सरकार में शामिल लोगों को बहुत सोच समझ के केवल सत्य बोलना चाहिए। झूठ, फरेब, जुमलाबाज़ी, और अज्ञानता भरे शब्द बोलने से बचना चाहिए। क्योंकि जैसा राजा, प्रजा भी वैसे ही अनुसरण करती है।

सरकार, सरकार तभी है जो अपने देश में किसी भी व्यक्ति, समूह, संगठन, संस्थान या कोई विभाग से सबसे शक्तिशाली, सामर्थ्यवान और मजबूत हो। जब देश के संपूर्ण संसाधन, इकाइयों, संस्थानों, उपक्रमों, विभागों, शक्तियों और परिसंपतियों को खुद से संचालन न कर देश के किसी गैर सरकारी संगठन, कंपनियों को हवाले कर दे तो वह सरकार खुद को कमजोर, लाचार और भविष्य के दृष्टिगत निश्चित ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रही है। जिस दिन वह कंपनी, संगठन सरकार से मजबूत हैसियत बना लेगी फिर या तो वह सरकार पर खुद काबिज हो जायेगी जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने कभी काबिज हुआ था या वह सरकार में अपने रिमोट कंट्रोल, रबर स्टांप व्यक्तियों को अपने रसूख के दम पर बैठना शुरू कर सकता है। इस लिए सरकार को अपने तमाम मुख्य परिसंपतियों, संसाधनों को स्वयं से अपने सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों द्वारा नियंत्रण करना चाहिए ना की किसी प्राइवेट कंपनी को कुछ नियत राशि/टैक्स पर ठेका कॉन्ट्रैक्ट दे देना चाहिए। भविष्य में जब दूसरे व्यक्ति/संगठन सरकार पर काबिज होंगे तो वह निश्चित ही अपने आप को कमजोर, लाचार समझेंगे क्यों की सरकारी परिसंपत्तियों, संसाधनों में पूर्व में पाए अधिकांश कॉन्ट्रैक्ट, ठेका के कारण इक्का-दुक्का कंपनियां निश्चित ही मौजूदा सरकार से बजबूत हो जायेगी। तब उस समय के सरकार के पास एक बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। उदाहरण के तौर पर दूरसंचार सरकारी कंपनी बीएसएनएल का देख लीजिए। जिसका दूर संचार का केबल (तार) पूरे भारत में बिछा हुआ है जिसका उपयोग कर कुछ गिने चुने दूरसंचार प्राइवेट कंपनियां कहा से कहा 5G तक पहुंच गई और आज बीएसएनएल का क्या हाल है किसी से छुपा नहीं है। वे प्राइवेट कंपनियां 999 में लाइफटाइम रिचार्ज कराने वाली आज केवल इनकमिंग कॉलिंग के लिए भी प्रत्येक माह एक मोटा रकम वसूल रही है। पहले सिम फ्री में इस्तेमाल हेतु लॉलीपॉप बाटा फिर दिन प्रतिदिन इन प्राइवेट कंपनियों का रिचार्ज बढ़ता ही चला गया कोई इन्हें रोकने टोकने वाला नहीं..! इनका रिचार्ज महीना भी 28 दिन का होता है। यदि इन प्राइवेट कंपनियां आज सेवा देना बंद कर दे तो देश में पूरे संचार, इंटरनेट व्यवस्था ही ठप पड़ जायेगी। सारे आवश्यक कार्य रुक जायेंगें। सरकारी उपक्रम बीएसएनएल को चाह कर भी वर्तमान सरकार इतना जल्दी प्राइवेट कंपनियों के तुलना में सेवा देने में सामर्थ्य नहीं बना सकती। इस लिए प्राइवेट कंपनियां रिचार्ज शुल्क में मनमानी कर रही है सरकार भी अंकुश नहीं लगा पा रहा। सरकारी परिसंपत्तियां प्राइवेट कंपनियों के हाथो निजीकरण होने पर ऐसे तमाम समस्याएं भविष्य में पनप सकती है। क्यों की इन कंपनियों को मोटा मुनाफा पहले नजर आता है बाद में मानवीय संवेदनाएं देखा जायेगा।

निस्कर्ष
संगठन और सरकार दोनों के अपने-अपने महत्व और प्रभाव होते हैं। संगठन एक पंजीकृत, मान्यता प्राप्त, संरक्षित समूह होता है जो किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम करता है, जैसे कि व्यापार, सामाजिक कार्य, राजनीति या अन्य गतिविधियाँ।
समग्र रूप से समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे की राजनीति, कानून, नीति, और जन कल्याणकारी कार्यों को मूर्त रुप देने तथा नियंत्रित और प्रबंधित करने के वास्ते सरकार एक विधि व्यवस्था का अंग है जिसका मजबूत होना परमावश्यक है। हां इतना जरूर है की कोई भी राजा अपने देश तथा जनसमुदाय से बड़ा नहीं हो सकता। परंतु किसी भी दृष्टिकोण से किसी पंजीकृत मान्यता प्राप्त संगठन से वह छोटा नहीं हो सकता। सरकार के पास कानून बनाने और लागू करने की शक्ति होती है जो व्यापक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव डालती है। परंतु किसी संगठन के पास यह शक्ति मौजूद नहीं है। ऐसे में कोई संगठन सरकार से कैसे बड़ा हो सकता है..? सरकार तमाम उत्पाति संगठनों को बैन, प्रतिबंधित कर सकती है परंतु क्या कोई संगठन सरकार को खत्म कर सकती है..? सरकार एक स्वतंत्र इकाई है। दोनो सदनों के सासंद विधायक सर्व सम्मति से देश हित के लिए कुछ भी फैसला ले सकते हैं। क्या किसी पंजीकृत संगठन के पास ऐसी कोई शक्ति है जिससे वह सरकार से बड़ा होने का गौरव पाल सके..? नहीं..? सरकार में बैठे किसी भी संगठन का व्यक्ति यदि कोई भ्रष्टाचार में पकड़ा जाता है तो कानूनी कार्यवाही हेतु उसके लिए कोर्ट, कचहरी, ED, CBI ये सब सरकार के ही तो अंग है। देश में आए आपदा, विपदा में सरकार ही तो अपना धन, बल लगा के स्थिति नियंत्रण में करती है। यदि सत्तारूढ़ संगठन सरकार से बड़ी है तो आपदा विपदा मुसीबत में वह क्यों नहीं अपना संगठन कोष को खाली करती..? बाहरी देशों के दुश्मनों से रक्षा हेतु लाखों फौज है, वह सरकार के ही तो हैं। किसी सत्तारूढ़ दल के तो वो होते नहीं। वे सरकार के नियंत्रण में होते ना की किसी सत्तारूढ़ दल के..? ऐसे तमाम परिस्थितियों के मध्यनजर सरकार, संगठन से कई गुना बड़ा है।
कोई भी राजनैतिक संगठन का बहुमत स्पष्ट न होने की दशा में यदि सरकार न बनाए तो क्या राष्ट्रपति शासन लागू नहीं होगा..? होगा..! इस अवधि में भी सरकारी काम काज नहीं रुकता चलता रहता है। तो फिर कैसे संगठन सरकार से बड़ा हो सकता है यह महत्वपूर्ण सवाल है..?
इस लिए किसी भी देश में धर्म नीति पूर्वक मजबूत शासन सत्ता व्यवस्था जिसमें सबका साथ सबका विकास वास्तव में संभव करना हो तो निसंदेह सरकार को उस देश के किसी भी महत्वकांक्षी संगठन से मजबूत होना पड़ेगा।

नोट: इस आलेख के जरिए मेरा मकसद किसी के निजीगत स्वैच्छिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। यदि किसी को ठेस पहुंचाता हो तो यह एक संयोग मात्र होगा जिसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। अभिव्यक्ति के संवैधानिक स्वतंत्रता के अधिकारों तहत हमने केवल अपना निजी मत प्रस्तुत किया है। अन्य लोग मेरे विचारों से सहमत हो ऐसा कोई जरूरी नहीं है।

राष्ट्र लेखक एवं भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत
डॉ. अभिषेक कुमार
मुख्य प्रबंध निदेशक
दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र
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