प्रहरी
प्रहरी
गांव के वृद्ध लोग नदी किनारे बैठ के अंबाडी के धागे से रस्सी बनाते, तो कुछ लोग ताड़ी के पत्ते से झाड़ू बनाते, तो कुछ लोग कपास के लकड़ियों से चटाई झोंपड़ी पर डालने के लिए बनवाते चारों और खुशहाली थी।
फैन कुलर एयरकंडीशनर नहीं थे। ठंडी हवाएं हमेशा बहती थी। नदी का सुंदर जल और ये वसुंधरा कितनी मनमोहक लगती थी।
चारों ओर हरियाली वृक्ष लताएं।
पशु पक्षियों का कलरव उनका चहकना मोर का थिरकना हिरणों का झूडं।
बंदरों का एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर चढ़ना लटकना। ये सभी जीव उन्मुक्त होकर अपनी मर्यादाओ का पालन करते हुए इस धरती पर रहने लगे थे। बारिश के मोसम में नदी बड़ी तेज गति से बहती थी। नदी का पानी देखने के लिए सभी जाते थे। साक्षी भी अपने बाबा के साथ जाती थी। नदी को देखकर उसने कहा था बाबा ये नदी कहां से आई है। इसके भी माता-पिता होते हैं…… क्या। छोटी साक्षी को बाबा ने बताया-
राजा भगीरथ की बड़ी तपस्या से गंगा इस धरती पर प्रगट हुईं। हम सब की प्यास बुझाने के लिए वह धरती पर आई है।
गंगा मनुष्य को ही अपना पूत्र मानती है। उसकी रक्षा हमें करनी चाहिए बेटा –
साक्षी के बाबा हर माह गंगा का दर्शन करने नदी पर जाते थे। वह भी अपने बाबा के साथ जाती थी। साक्षी रेती में भाड़ बनाने में मग्न थी ।
तभी उसके बाबा ने आवाज दी
बेटी साक्षी इधर आओ देखो
गोदावरी गंगा मैया कैसे शांति से बह रही है। बाबा गुनगुना रहे थे ।
गोदावरी, कावेरी, सरस्वती, नर्मदा
पावन है गंगा की धारा,
कितना कुछ सह लेती हो
महानदी की धारा।
तेरी धरा में पावन हो जाता है
जीवन सारा ।
कैसे शांत बहती हो
जीवन भर
क्यों नहीं आवाज उठाती
मौन होकर सह लेती हो
मैल सारा ।
तुम हो मौन नदी की धारा।
गंगा अपने अलग अलग नामों से प्रवाहित होकर मनुष्य जीवन की गंदगी को साफ करने लगी।
साक्षी इस प्रकृति ने मनुष्य जीवन के लिए कितने अद्वितीय उपहार दिए हैं।
राहगीर और पशुओं के लिए वृक्ष छाया फूल फल देते हैं। फल को प्रक्रृति ने छिलके के साथ दिया है
ताकि कोई बीमार न पड़ सके।
हम मनुष्य का भी कर्तव्य है कि प्रकृति की रक्षा करें। उसे सुरक्षा प्रदान करें ।
प्रकृति के हितैषी बने।
ये वृक्ष उन्मुक्त रुप से दूसरों के हितार्थ काम आते हैं। ये कभी भेदभाव नहीं करते। प्रकृति हमें
समदृष्टि का पाठ पढ़ाती है।
मनुष्य और पशु एक ही नदी का पानी पीते थे, पर कोई शिक़ायत नहीं थी, कभी कोई बीमार नहीं होता था। किसी को बी. पी . शूगर नही हुआ था। अब विकास के आने से विकास बहुत हुआ बीमारियां भी उतनी ही विकसित हुई है।
बाबा रहीम का दोहा हमेशा गाया करते थे।
तरुवर फल नहीं खात है
सरवर पियही न पानी।
कही रहीम पर काज हित
संपत्ति संचहि सुजान।
वृक्ष सरवर खुद पानी नहीं पीते
दूसरो के हित काम आते हैं।
निस्वार्थ भाव से मनुष्य की सेवा
करते हैं।
नांदेड़ शहर का सौभाग्य यह है कि वह गोदावरी नदी के किनारे है। नांदेड़ की गोदावरी नदी शंकर राव चव्हाण के समय बहुत ही साफ सुथरी स्वच्छ रहती थी।
इस नदी का दर्शन करने गुरु गोविंद सिंह जी हर दिन आया करते थे।
साक्षी पढ़ लिख कर नर्स बन गई उसकी नौकरी गुरु गोविंद सिंह नांदेड़ के अस्पताल में ही लगी थी।
वहां पर वह बीमार लोगों को दवा देती इंजेक्शन लगती।
उनके शरीर के ज़ख्मों को ठीक करती। पर मन के मैल को कैसे मिटाती।
जिन लोगो के मन मैले दूषित है। प्रकृति के उपहार को नष्ट कर रहे हैं।
ऐसे लोगों को कौन-सी दवा देगी।
जो की प्रकृति के हितैषी बने।
प्रकृति के प्रहरी बने प्रकृति के रक्षक बने। प्रकृति के रक्षक अब विकास के नाम पर भक्षक क्यों बन गये है। यह सवाल उसे बार-बार परेशान कर रहा था।
साक्षी गोदावरी का प्रदूषित रुप देखकर जोर जोर से चिलाने लगी
हे गुरु गोविंद सिंह जी तुम्हारी कर्म भूमि गोदावरी अब मैली हो
गयी है। माननीय मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण जी निष्ठावान सैनिक
क्यों मौन हो तुम देखो क्या हाल
हुआ है तुम्हारी अपनी गोदावरी का। हे गोदावरी के रक्षक गंगा मैया तुम्हें बुला रही है
हे गोदावरी के सच्चे प्रहरी क्यों मौन हो अब तो लौट आओ बचाओ अपनी गंगा को दूषित होने से।
पुष्पा गायकवाड़
नांदेड़ – महाराष्ट्र