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(समीक्षा) खिल उठे गुलाब–

(समीक्षा)
खिल उठे गुलाब–

साहित्य की अनेक विधाओं में उपन्यास एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक पाठक के सामने ऐसा दृश्य उपस्थित कर देता है कि वह उसकी घटनाओं एवं पात्रों को हृदयगंम करते हुए उसका पूरा-पूरा आनन्द उठाता है। केवल लेखनी के माध्यम से किसी दृश्य को एक चलचित्र की भाँति उसके मन-मस्तिष्क में उत्पन्न करना एक सफल लेखक की सफलता का सूचक है। अनेक पुस्तकों, लेखों एवं काव्य-ग्रन्थों तथा सम्मानों से लब्ध प्रतिष्ठित मेरठ कैंट की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सीमा गर्ग ‘मंजरी’ जी साहित्य के इन मापदण्डों पर पूर्ण रूप से खरी उतरती प्रतीत होती हैं। साधरण भाषा शैली में किसी भी दृश्य को मन-मस्तिष्क में साक्षात उपस्थित करना जैसे उनके बायें हाथ का खेल है।
‘खिल उठे गुलाब’ उपन्यास में कुछ युवा लड़के एवं लड़कियों को पुरातन भारतीय संस्कृति के संस्कारों एवं नवीनतम सामाजिक परिवेश में ढलते हुए दिखाया गया है। जहाँ एक ओर आज के शिक्षित युवक एवं युवतियाँ आधुनिकता की अंधी दौड़ में व्यस्त हैं, वहीं माता-पिता भी परिस्थिति के अनुसार आज सामंजस्य बैठाने में ही अपनी भलाई समझने लगे हैं। बच्चों की खुशी में ही उन्हें अपनी खुशी दिखाई देने लगी है। दकियानूसी परिवेश से निकलकर वे वर्तमान समय के अनुसार चलने लगे हैं। इसी के साथ उपन्यास की कहानी में एक अच्छी मित्रता को भी परिभाषित करने का प्रयास किया गया है।
उपन्यास की कहानी वर्तमान युग की सनाया नाम की युवा लड़की से प्रारम्भ होती है जो एक कॉलिज में पढ़ती है। उसकी सहेली उदीची भी उसी कॉलिज में पढ़ती है। सनाया का सहपाठी एवं मित्रा शिवा एक गरीब घर से सम्बन्ध रखता है। एक दिन वह अचानक उदास दिखाई देता है तो सनाया एवं उदीची की अन्य सहपाठी गौरी एवं उसका मित्र कवीश जो एक बड़े समाजसेवी सेठ का लड़का है मित्रवत उसकी बहुत सहायता करते हैं।
इसी बीच में कॉलिज में ही पढ़ने वाले एक बड़े नेता का लड़का निखिल खलनायक के रूप में प्रस्तुत होता है। वह इन लड़कियों और लड़कों को परेशान करने लगता है। धीरे-धीरे वह इन सब से दुश्मनी पाल लेता है। एक दिन सभी मिलकर स्कूल के प्रधानाचार्य जी से शिकायत करते हैं तो प्रधानाचार्य साहब उसे बुरी तरह फटकार लगाते हैं। इस घटना को वह अपना अपमान मानता है और फिर कभी भविष्य में उनसे बदला लेने की कसम खाता है। बढ़ते घटनाक्रम के साथ इन युवक-युवतियों के बीच में एक स्वभाविक प्रेम भी पैदा हो जाता है जो अन्त में विवाह की सीमा तक जाता है। अन्य सच्ची प्रेम-कहानियों की भाँति इस बीच परिस्थितिवश अनेक झंझावात भी आते हैं लेकिन जीत सच्चे प्यार की ही होती है। इन सभी मित्रों ने आपस में स्नेह, प्रेम, विश्वास और आपसी सहयोग के चिंतन द्वारा आज के युवाओं को जिंदगी जीने का संदेश दिया कि मानवता से जीवन जीना भी एक कला है।
अमन के मित्र गोपाल द्वारा विवाह को जरूरी संस्कार न मानना एवं लिव इन रिलेशनशिप की पैरवी करने को लेखिका ने पात्रों के माध्यम से सिरे से खारिज कराया है। ऐसा करके लेखिका ने भारतीय समाज की पुरातन परम्परा को जीवित रखने का प्रयास किया है। इसी प्रकार एक पात्र‌ ऋतिक द्वारा अपनी प्रेयसी गौरी की दादी की वृद्धावस्था में सेवा करने का वायदा करके उसे अपने साथ विवाह-बन्धन में बँधने के लिए तैयार करने का चिंतन भी सटीक है। जिसे आज के समाज में बड़े-बुजुर्गों की सेवा के लिए युवाओं में जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रेरित करने का जागरुक संदेश मिलता है।
इन्हीं पात्रों एवं उनके परिवार के इर्द-गिर्द उपन्यास की पटकथा लिखी गई है। उपन्यास की विशेषता यह है कि जहाँ एक ओर बच्चे आधुनिकता में रँगे हुए परिवेश में जीवन का आनन्द ले रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे अपने परिवार एवं मित्रों के प्रति दायित्वों एवं कर्त्तव्यों को भी बखूबी निभाते हैं। यह सभी के लिए एक प्रेरणा का विषय हो सकता है।
सीमा गर्ग ‘मंजरी’ जी किसी भी दृश्य का बड़ा सीधे सरल शब्दों में रोमांचित करने वाला वर्णन करने में माहिर हैं। एक स्थान पर सनाया बारिश के मौसम को देखकर कुछ इस प्रकार करती है- *झमाझम बरसती बूँदों को देखकर शीतलता के अहसास में निमग्न हुई सनाया ने अपने दोनों हाथ आकाश की ओर फैला दिये, और बूँदों को हाथों में लेकर अठखेलियाँ करने लगी। उदीची भी उसके नजदीक खड़ी रिमझिम फुहारों का आनन्द लेने लगी।

दरकते रिश्ते आज की बड़ी पारिवारिक समस्या है। लेखिका ने इस बुराई को दूर करने का भी प्रयास किया है। आपसी रिश्तों को कैसे निभाया जाता है यह भी उपन्यास में अनेक स्थानों पर पात्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। एक स्थान पर सनाया की मम्मी कहती है- ‘‘ सम्बन्ध‌ में बड़प्पन उम्र से नहीं बल्कि रिश्तों के लिहाज से होता है। आजकल रिश्ते नातों में प्यार घटता जा रहा है। आपसी रिश्तों में गर्माहट बनाये रखने के लिए रक्त सम्बन्धी रिश्तों की सभी को कद्र करनी चाहिए।’’
आधुनिक परिवेश को देखते हुए लेखिका विवाह सम्बन्धी मामलों में लड़के-लड़कियों की आपसी सहमति को भी प्राथमिकता देती हैं। उनका मानना है कि अब बड़ी उम्र में विवाह होने के कारण पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ अपना भला-बुरा समझने लगे हैं। उपन्यास की मुख्य पात्रा सनाया का विवाह उसके सहपाठी तथा मित्रा शिवा से न कराकर सनाया की बहन की ससुराल से जुड़ी रिश्तेदारी में कराने पर उसे बहुत कष्ट भोगना पड़ा। सनाया के पति की एक दुर्घटना में मौत हो जाने पर उसके परिवार वालों ने सनाया का बहुत उत्पीड़न किया।
लेखिका अपनी कवित्त-लेखनी का भी भरपूर प्रयोग करना जानती है। वे साहित्य की अनेक विधाओं में पारंगत हैं। वे एक अच्छी कवयित्री भी हैं वे यह सिद्ध करना भी उपन्यास लिखते समय नहीं भूली हैं। उपन्यास को रोमांचक बनाने के लिए जहाँ एक और पुराने फिल्मी गीतों की कुछ लाईने गुनगनाई गई हैं वहीं दूसरी ओर लेखिका ने स्वरचित कुछ छन्द तथा कविताएँ भी कुछ दृश्यों में जोड़ी है। जिसने उपन्यास की खूबसूरती को चार चांद लग दिये हैं। यथा- सनाया की बुआ के बेटे के जन्मदिन पर गाना बजता है- ‘‘कोई शहरी बाबू, दिल लहरी। पग बांध गया घुँघरुँ, मैं छम-छम नचति फिरा…..।
एक दृश्य में उपन्यास-लेखिका जो कवयित्री भी है अपनी लेखनी का हुनर दिखाती है। उपन्यास की मुख्य पात्रा सनाया को कुछ छात्रा घेरे हुए है और कुछ सुनाने का आग्रह कर रहे हैं तब सनाया सुनाती है-
‘‘ एक बार प्रिय तुम आ जाते….
प्रिय दिल का हाल सुनाती…..
नैनों में स्वप्निल संसार सजाये…
चाँदनी रातों में पिघलता…
आँगन में चाँद चलाती….।
साँसों के तारों पर झंकृत
मद्धम सरगम-सी सधती…
प्रीत के रंग उमंग भरती…
उर में बसाये मधुमास….
प्रियवर लाज भरे नैनों से
मादक रैन बिताती……
एक बार प्रिय तुम आ जाते….
प्रिय दिल का हाल सुनाती…..

परिस्थिति के अनुसार लेखिका ‘मंजरी’ ने कहीं शृंगारिक वातावरण को सहज भाव से उपस्थित किया है तो कहीं बहुत अधिक मार्मिकता भी इस उपन्यास में प्रस्तुत की है। कुछ स्थानों में इतना मार्मिक दृश्य उपस्थित हो गया है कि पाठक की आँखें गीली हुए बगैर नहीं रहती है। भाई-बहनों, मित्रों एवं परिवार के बीच सामान्य हँसी-ठिठोली भी अनेक स्थानों में दिखाई देती है।
सनाया की बड़ी बहन मायरा की शादी की बात पक्की होने पर दोस्त आपस में छेड़ते हुए कहते हैं– ‘सनाया डियर तेरे लिए तो यह बहुत बढ़िया रहेगा। क्योंकि दीदी की शादी होते ही तुम्हारी लाइन अब क्लीयर हो जायेगी न…..और फिर जल्दी ही तू डोली में बैठकर….. उड़न छू….। आये….ओये…हमारी शेरनी… ससुराल चल जाएगी, तब हमारे जैसे मगजमार दोस्तों का क्या होगा रे…।’
जीवन के उतार चढ़ावों को प्रदर्शित करता उपन्यास ‘खिल उठे गुलाब’ एक सुखान्त नाटक की भाँति समाप्त होता है। प्रेम, विछोह, संघर्ष आदि मानव के मस्तिष्क में रेखाचित्र की भाँति रंग भरते हैं। इन्हीं से मनुष्य की जीवटता तथा उसकी योग्यता का पता चलता है। इस उपन्यास ने जीवन के सभी पहलूओं को छूने की कोशिश की है। आम आदमी के अन्तस को छूने वाले इस उपन्यास को लिखने पर *सीमा गर्ग ‘मंजरी’ जी* अनेक शुभकामनाओं की पात्रा हैं। *खिल उठे गुलाब’* उपन्यास को पढ़कर पाठकवृन्द अवश्य जीवन के अनेक विषयों का आनन्द लेने के साथ ही अच्छे मित्र, अच्छे परिवार और मानवता की परिभाषा की सीख भी लेंगे ऐसा मेरा विचार है।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी श्रीमती सीमा गर्ग ‘मंजरी’ जी को इस उपन्यास के लेखन हेतु अनन्त शुभकामनाएँ-

-चरण सिंह स्वामी
साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासकार ;सम्पादक- कलमपुत्र हिन्दी मासिक पत्रिका
पता- 481/2, न्यू मुल्तानगर, भोला रोड, मेरठ ;उ.प्र.

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