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कविता

कविता

इसलिए अच्छा है

आम बात है –
जो दिखता है,
सो बिकता है।
बात वस्तु तक तो
ठीक है, पर
व्यक्ति के लिए
बिलकुल बेठीक।
इसलिए,
खास बात है –
जो बिकता है,
वह बचता नहीं है।
सच में तब वह,
वही नहीं रहता,
जो वह रहता है,
क्योंकि बिकना,
वास्तव में
व्यक्ति का वस्तु
बन जाना है,
चेतन से अचेतन,
जड़, नहीं तो जड़वत।
फिर,
व्यक्ति का
वस्तु बनकर
क्या दिखना
और क्या बिकना,
दिखाऊ-बिकाऊ
और कमाऊ बनना?
इसलिए,
अच्छा है –
दिखने के लिए
दिखना या न दिखना,
पर बिकने के लिए
नहीं दिखना,
बचा रहना।
व्यक्ति का व्यक्ति
बना रहना,
वस्तु न बनना।

– प्रो. नागेन्द्र शर्मा
राम जयपाल महाविद्यालय, छपरा

2 Comments

  1. समसामयिक यथार्थबोधयुक्त , मिश्रित विम्ब ।

  2. बिल्कुल सत्य, तथ्यपरक, ओर संयमित शब्दकोषों से आडंबर पर आघात करने वाली एक उत्कृष्ट कविता।

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