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सती

सती

ब्रम्हा जी ने दक्ष को बनाया जब प्रजापति
बोले प्रजापति से ब्रम्हा समय को दो गति
परम शक्ति जगदम्बे की कर नित आराधना
पुत्री रुप मां जन्म लो प्रकट कर निज कामना
दक्ष ने आदिशक्ति माता का घोर तप किया
महा गौरी ने दक्ष को मनवांछित वर दिया
माता ने दक्ष घर कन्या रूप में जन्म लिया
प्रसूति की कोख को जगदम्बा ने धन्य किया
सती की अद्भुत शक्ति से दक्ष हुए प्रभावित
सती की शक्ति से जग में सबकुछ संभावित
पुत्री के विवाह खातिर ब्रम्हा लिए बुलाय
बोले दक्ष ब्रम्हा से योग्य वर दो बतलाय
सुन दक्ष के यह वचन ब्रम्हा ने कहा सुनाय
सती, शंकर की जोड़ी मेरे मन अति भाय
आदि शक्ति सती का अद्भुत रूप अनूप
कैलाशपति महादेव आदि पुरुष का रूप
शिव से विवाह हेतु ही हुआ सती का जन्म
शिव को पुत्री सौंपकर, निभाओ पितृ का धर्म
कैलाशपति संग दक्ष कन्या का हुआ विवाह
सती खातिर शिव मन में जागा प्रेम अथाह
सती शिव से करें प्राणों से भी अधिक प्यार
सती, शम्भू के जीवन का बन गईं आधार
जब शिव तप में लीन बैठें धूनी रमाए
सती शिव को देखतीं बस एकटक लगाए
आदिशक्ति का कैलाशपति में इतना नेह
दो बदन होते हुए मानों एक हों देह
ब्रम्हा जी ने धर्म निरुपण सभा बुलाई
अपने- अपने आसन पर बैठे सब आई
अचानक ही सभा में पधारे प्रजापति दक्ष
सम्मान में खड़े हुए सब देव, ऋषि, मुनि, यक्ष
शिव नहीं खड़े हुए दक्ष ने समझा अपमान
तब से दक्ष ने शिव को अपना अरि लिया मान
शिव को सबक सिखाने हेतु दक्ष ने ली ठान
शंकर की महिमा से प्रजापति थे अनजान
प्रजापति दक्ष ने किया अलौकिक यज्ञ अनुष्ठान
शिव को न्योता नहीं पठाया बैरी मान
सती संग पर्वत पर बैठे थे महादेव
सती ने पूछा सब कहां जा रहे पतिदेव
भोले बोले दक्ष ने महा यज्ञ रचाया है
पर शत्रु मान दक्ष ने हमें नहीं बुलाया है
सती ने बहन से मिलने की इच्छा जताई
बार बार शिव से जानें की टेर लगाई
बहुत समझाने के बाद जब सती न मानी
वीरभद्र संग भार्या भेज दिए शिव दानी
घर आने पर सती को नहीं मिला जब मान
सती को न भाया तनिक दक्ष का यह अभिमान
यज्ञ में जब नहीं दिखा है शिवशम्भू का भाग
सती के मुखमण्डल पर क्रोध उठा है जाग
भरी सभा में दक्ष ने शिव उपहास उड़ाया
उल्टा-सीधा कहकर शिव को धता बताया
पति का अपमान सुन हृदय में जागी ज्वाला
यज्ञ की आग में खुद को आहूति कर डाला
देख सती का जलता तन वीरभद्र गुस्साए
वीरभद्र का देख क्रोध सभी जन घबड़ाए
यज्ञ विध्वंस कर वीरभद्र अति उत्पात मचाए
कैलाश से दौड़े शिव शंकर चले आए
वीरभद्र ने दक्ष सिर धड़ से अलग कर डाला
भीषण गर्जन करें पहने मुण्डों की माला
शिव सती के जलते हुए अंग को उठाए
भटक रहे दर दर खुद से खुद को बिसराए
शिव के वैराग से जल,थल,नभ डगमगाए
व्याकुल शिव के मन को कौन धैर्य बँधाए
तब विष्णु ने चक्र से दिए सती के तन काट
इक्यावन भाग में दिया अंग सती का बाँट
इक्यावन शक्तिपीठ से शोभित हैं ये धाम
चण्डी,ज्वाला , कुष्मांडा सती सुन्दर उपनाम
निज अवस्था में लौटे तब जाकर महादेव
शिव आए कैलाश पर प्रसन्न हुए सब देव
सती शिव के प्रेम की अनमिट अमर कहानी
पार्वती रूप में पुनः जन्म लिया भवानी

राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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