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माँ

माँ

मां का जीवन में, कोई पर्याय नहीं है।
मां जैसा सकल जगत में अध्याय नहीं है।।

जिसके लबों पर कभी, बद्दुआ नहीं होती।
वह एक माँ ही है, जो कभी खफा नहीं होती।।

मां इस सृष्टि का सार, जीवन का आधार है। ईश्वर का उपहार औ प्रीत का मल्हार है ।।

मां ईश्वर का रूप और दिव्यता का प्रारूप है।
मां एक शब्द नहीं बल्कि, संपूर्णता का रूप है।।

ईश्वर सम आभा है मां, बच्चों के कष्ट हरती है। जननी बन बच्चों में, प्राणों का संरक्षण करती है।।

मां श्रद्धा,आस्था,समता, ममता का कुंज है।
मां कठिन डगर में समर्पण का पुंज है।।

मां जीवन में पुण्य और सत्कर्मों का फल है।
मां हर मुसीबत में डाल और मन का संबल है।।

माँ हताश, निराशा में, जीवन की आशा है।
मां का आशीष साथ हो, तो दूर होती निराशा है।।

माँ मुसीबत की धूप में शीतल सी छाया है।
माँ की रहमतें और दुआएं बच्चों का साया है ।।

कठिन राहों में भी, आसान सा सफर लगता है।
ये सब मेरी मां की दुआओं का असर लगता है।।

मां कांटों पर चलकर, खुद फूल बिछा देती है।
रातों जागकर लाडले को चैन की नींद सुलाती है।।

माँ बच्चे को मखमली स्पर्श देकर खुद कष्ट सह जाती है।
तभी माँ करुणा, वात्सल्य औ दया मूर्ति कहलाती है।।

आशा “पंकज” मूँद्ड़ा
57, उदय विला बापू नगर पाली (राजस्थान)

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