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कांटों की शैय्या

कांटों की शैय्या

रंग बिरंगी सजी दिखे पर,जीवन शैया काँटों की है,।
चक्की सा पीसे दिन रात, बँधे हुये मन पाटों सी है।

सबकी परिमिति अलग अलग है
सबका अपना इक घेरा है,
गोल गोल घूमें उसमें ही
ढूँढें खुशियों का डेरा है,

सीमा भीतर अपनी दुनिया, बाहर केवल बातों की है।
रंग बिरंगी सजी दिखे पर,जीवन शैया काँटों की है।

सपनों की भी इक सीमा है
सीमा बाहर पछतावा है,
जिसने तोड़ा सीमाओं को
कर जाता भाग्य छलावा है,

बँधकर रहना एक कला है,संस्कृति औ संस्कारों की है।
रंग बिरंगी सजी दिखे पर,जीवन शैया काँटों की है।

सागर भी तो बँधा है तट से
तट छोड़े न सागर रहता,
रेत सुखाती बूँद बूँद को
अपना परिचय स्वयं ही खोता,

पंचतत्व आधार देह की,लीला बस कुछ रातों की है।
रंग बिरंगी सजी दिखे पर,जीवन शैया काँटों की है।

भीष्म सा गर पौरुष हो तो
शैया पर काँटों की सो जा,
तपबल जिनकी जीवनचर्या
हँसकर के कर्मों को भोगा,

मानव जीवन एक तपस्या,गठरी ढलते गातों की है।
रंग बिरंगी सजी दिखे पर,जीवन शैया काँटों की है।

माला अज्ञात….

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