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गद्य प्रवाह समूह की ऑनलाइन गूगल गोष्ठी में पुस्तक परिचर्चा का कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ

गद्य प्रवाह समूह की ऑनलाइन गूगल गोष्ठी में पुस्तक परिचर्चा का कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ

वनमली सृजन पीठ के अध्यक्ष, आइसेक्ट पब्लिकेशन के निदेशक तथा अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव ‘विश्व रंग’ के सह निदेशक और वनमली पत्रिका के सह संपादक, प्रख्यात कहानीकार और व्यंग्यकार श्री मुकेश वर्मा जी की अध्यक्षता में आज दिनांक 25 4- 24 को गद्य विधा की पुस्तक पर, कहानीकार सुश्री सुनीता मिश्रा जी की कहानी, ‘कलम बोलती है’ पर परिचर्चा सफलतापूर्वक संपन्न हुई।
कार्यक्रम का संचालन, सुश्री शेफालिका श्रीवास्तव जी के कुशल समायोजन में, सुश्री साधना शुक्ला जी के सधे हुए शब्दों से किया गया। स्वरचित सरस्वती वंदना सुश्री विजया रिंगे जी ने सुमधुर कंठ से करके, कार्यक्रम को गति प्रदान किया। अतिथियों का तथा श्रोताओं का स्वागत सुश्री अपराजिता शर्मा जी ने किया। उसके बाद सर्वप्रथम सुनीता मिश्रा जी ने अपनी एक प्रतिनिधि कहानी का पाठ यह कहते हुए किया कि “वैसे तो अपने सभी बच्चे माँ को बराबर प्यारे होते हैं और उनमें से किसी एक को चुनना चुनौती पूर्ण होता है, उसी तरह अपनी ही किसी एक कहानी का चुनाव करना तो कठिन है फिर भी एक कहानी सुनाऊंँगी, कहकर उन्होंने एक कहानी सुनाया।
सुश्री हंसा श्रीवास्तव जी ने भाव पक्ष पर अपनी समीक्षा प्रस्तुत किया। उन्होंने श्रोताओं को निराश नहीं होने दिया। कुछ चुनिंदा कहानियों का सारांश कहते हुए, उनके भावों का परत खोलने का भरपूर प्रयास किया। उन्होंने कहा कि “गद्य का सबसे सुंदर स्वरूप कहानी ही है।” करुणा, प्यार, दया, संवेदना और घृणा का भाव ही जब शब्दों के साथ पिरोया जाता है, तभी एक सुंदर रचना का गुलदस्ता बन सकता है। सुनीता मिश्रा जी की कहानी ‘कलम बोलती है’ कहानियों का एक ऐसा ही सुंदर गुलदस्ता है।”

दूसरी समीक्षा सुश्री मनोरमा पंत जी ने कला पक्ष पर किया। उन्होंने भाषा की परिभाषा, शैली, और कहानी के प्रकार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “सुनीता जी की कहानी, इन सभी मापदंडों पर खरी उतरती हैं। इनके कहानी में मुखरता, परंपरा और सामाजिकता का समायोजन प्रमुखता से है। मुहावरे और क्षेत्रीय भाषाओं का पुट कहानी को पठनीयता प्रदान करते हैं, तथा किस्सागोई शैली में लिखी गई कहानी जीवंत हो उठती है। दोनों ही समीक्षकों ने कहानियों के शीर्षकों पर चर्चा किया और बताया कि ‘जीम के जाना, ‘कैक्टस’ ‘मौन की भाषा’ ‘बरगदिया टोला’ ‘नकटौरा’, आदि सभी कहानियाँ, पाठकों के मन में विशेष छाप छोड़ती हैं तथा सामाजिक, पारिवारिक, और परंपरागत विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए, संदेश देती हुई सी लगती हैं। सुनीता मिश्रा जी की कहानियों पर अपना मंतव्य देते हुए सुश्री जनक कुमारी सिंह बघेल ने कहा – ‘सुनीता जी की कहानियाँ, उन्हीं की तरह सहज, सौम्य भाषा के साथ, मंथर गति से बहती हुई नदी की तरह अपने गंतव्य तक पहुंँचती है, जो न तो कूल किनारों को तोड़ती और न ही कोई चक्रवात ही लाती है, किंतु पाठकों के लिए कुछ विशेष संदेश अवश्य लिए हुए होती है। लेखिका पुरुषों की आत्मा में सहजता से प्रवेश कर पुरुषोचित भावों को प्रबलता के साथ प्रस्तुत करने में सिद्ध हस्त हैं। उनकी यह कला अनुकरणीय है।”
प्रेमचंद गुप्ता जी ने कहा – “सुनीता जी की कहानी शानदार कला पक्ष के साथ सांस्कृतिक पक्ष को भी रखती है, तथा रूढ़ियों और परंपराओं की विसंगतियों को तोड़ने का भी काम करती है। “गृहस्थी की जंजीर” सुनीता जी का गढ़ा हुआ मुहावरा, कहानी में अपना अलग प्रभाव छोड़ता है।”
राज बोहरे जी ने भी अपना मत व्यक्त किया और कहा – “नकटौरा कहानी परंपरा को जीवंत करने के साथ ही स्त्री सत्ता और सामाजिक प्रथा पर केंद्रित कहानी के रूप में, उपन्यास का भी सुख देती है।”
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री मुकेश वर्मा जी ने बड़े ही नपे – तुले शब्दों में समीक्षकों की समीक्षा करते हुए समीक्षा का गुरु भी बताया और कहा – “गद्य प्रवाह के मंच पर महिला साहित्यकारों द्वारा एक ही मंच में बैठकर साहित्यिक चर्चा करना गौरव का विषय है। सुनीता जी की नकटौरा कहानी को स्त्रियों के स्वरूप को जानने समझने का सबसे अच्छा विकल्प बताया। उन्होंने कहा – लेखक कभी रुकता नहीं है, वह सतत यात्रा में रहता है, अतः पाठकों के समक्ष अपनी रचना को रखकर पुस्तक परिचर्चा और समीक्षा लेखन में निखार लाता है। इस तरह की पुस्तक परिचर्चाएँ होती रहनी चाहिए।”
श्री मुकेश वर्मा जी ने कहा – “कहानी की समीक्षा अगर कला पक्ष और भाव पक्ष के अतिरिक्त चार समीक्षकों में, अलग-अलग कहानी बाटकर चर्चा की जाए, तो अधिक से अधिक कहानियों के तह तक पहुंँचा जा सकता है और परिचर्चा अधिक सार्थक हो सकती है।”
“लेखक की शैली में अगर परिवर्तन होता रहे तो उसकी रचना और भी रुचिकर तथा वजनदार हो सकती है।” हल्की-फुल्की चर्चा के साथ सुनीता मिश्रा जी ने सबका आभार व्यक्त किया और श्री मुकेश वर्मा जी ने प्रवासी लेखकों को भी जोड़ने का सुझाव दिया। इस सुझाव का सभी ने सर्वसम्मत से स्वीकार किया और स्वागत भी किया।
जनक कुमारी सिंह बघेल

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