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भगवान महावीर विचारों के वैज्ञानिक जन्मकल्याणक पर विशेष

भगवान महावीर विचारों के वैज्ञानिक
जन्मकल्याणक पर विशेष

*प्रो. रवि जैन*
जीवन का वास्तविक सुख आंतरिक शांति में है। आंतरिक शांति भावनाओं की निर्मलता में है। हम जितना विकार मुक्त रहते हैं उतने ही दुखों से मुक्त रहते हैं और उतने ही हम धार्मिक बन सकते हैं। हमारा मन यदि निर्मल है तो ही वह सच्चा धर्म है। जैन धर्म अनादि काल से चला आ रहा है। जैन धर्म में अहिंसा और कर्मों की विशेषता पर विशेष बल दिया जाता है। भगवान महावीर ने मुख्य रूप से पांच सिद्धांत दुनिया को दिए हैं। इनमें से प्रमुख तीन- अहिंसा, स्यादवाद एवम् अनेकांत और अपरिग्रह की चर्चा हम करेंगे। इन्हें अगर विश्व ईमानदारी से अपनाए तो दुनिया में सुख शांति हो सकती है।

अहिंसा: भगवान महावीर ने हमें कौन-सा ऐसा मार्ग बताया था, जिस कारण वह हमारे मन-मस्तिष्क में समाए हुए हैं। उन्होंने हमें अहिंसा का ऐसा सिद्धांत दिया था, एक ऐसा मार्ग बताया था, जिस पर चलकर हम सुख-शांति का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। अहिंसा जैन धर्म की मुख्य देन है। किसी भी जीव को मारना नहीं, हिंसा न करना ही अहिंसा है। किसी का दिल दुखाना, किसी की स्वतंत्रता को बाधित करना, किसी के साथ अन्याय एवम् शोषण करना, किसी की आजीविका बंद कर देना अथवा करा देना, ये सब हिंसा है। इनका त्याग ही अहिंसा है। भगवान महावीर ने पशु-पक्षी और पेड़-पौधों तक की हत्या न करने का अनुरोध किया है। अहिंसा की शिक्षा से ही समस्त विश्व में दया को ही धर्म प्रधान अंग माना जाता है। भगवान महावीर का “जियो और जीने दो” का सिद्धांत जन कल्याण की भावनाओं को परिलक्षित करता है। दया, करुणा, प्रेम, दान, क्षमा, सत्य आदि सभी गुण अहिंसा में आ जाते हैं। हमारे आज के वैज्ञानिक कहते हैं कि हमें पानी छानकर पीना चाहिए। इसलिए हम आजकल आरओ आदि का उपयोग करते हैं, मगर भगवान महावीर स्वामी ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व ही यह बता दिया था कि एक पानी की बूंद में लगभग 36,450 जीवाणु होते हैं। इसलिए हमें उनकी रक्षा के लिए पानी छानकर पीना चाहिए।
जैन धर्म में रात्रि भोजन का पूरी तरह से त्याग है। आज के वैज्ञानिक भी इसी सिद्धांत को कह रहे हैं कि हमें इंटरमिटेंट फास्टिंग करना चाहिए, यानी 14 से 16 घंटे का उपवास करना चाहिए और यह तभी संभव है, जब हम अपना भोजन शाम को 6-7 बजे के पूर्व कर ले यानी कि रात्रि भोजन न करें। यह बात भी जैन धर्म बहुत पहले से कहता हुआ आ रहा है। महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने प्रतिपादित किया था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है, मगर यह बात हमारे महावीर भगवान ने ढाई हजार वर्ष पहले ही कह दी थी कि पेड़-पौधे एक इंद्रिय जीव हैं, इसीलिए जैन धर्म को वीतराग विज्ञान- वैज्ञानिक धर्म- भी कहा जाता है।

स्यादवाद एवम् अनेकांत: मैं ही सही हूं, यह एकान्तवाद है। मैं भी सही हूं, यह अनेकांतवाद। अनेकांतवाद का अर्थ है कि वास्तविकता को जानने के लिए अपने दृष्टिकोण के साथ-साथ विरोधी दृष्टिकोण को भी परखना। किसी भी वस्तु का परीक्षण करने के लिए हमें केवल अपने दृष्टिकोण पर ही अडिग नहीं रहना चाहिए, बल्कि दूसरों की जगह अपने आप को रखकर उनका दृष्टिकोण भी लेना चाहिए।

अपरिग्रह: अपनी आवश्यकताओं को सीमित और मर्यादित करना ही अपरिग्रह है। संतोष परम सुख है और अपनी जरूरत पूरी होने के बाद साधन-साधना का प्रयोग जन सेवा में करना चाहिए। भगवान महावीर के सिद्धांतों में आज के समय में जिसकी नितांत आवश्यकता है वह है- “अनर्थ दंड व्रत”। इसका अर्थ होता है कि किसी भी चीज का दुरुपयोग ना करें, हर चीज का सदुपयोग करें। जैसे जल है, जल हम अपनी आवश्यकता के लिए चाहे जितना सदुपयोग में ले सकते हैं, मगर यदि हम इस जल को बिना किसी उद्देश्य के व्यर्थ में बहा देते हैं तो यह अनर्थ दंडवत है। उसी प्रकार यदि हम कमरे की बिजली, पंखा, एयर कंडीशनर, टीवी, बल्ब, ट्यूब लाइट इत्यादि बिना किसी उद्देश्य के चालू रखते हैं तो भी यह अनर्थ दंड व्रत है। यदि हम मोबाइल का उपयोग कुछ उद्देश्य पूर्ण कार्यों में लगा रहे हैं या कर रहे हैं तब तो ठीक है। हम लोग यदि अपने मोबाइल पर व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम देख रहे हैं और बिना किसी उद्देश्य के अपना समय व्यतीत कर रहे हैं तो यह भी हमारे लिए एक अनर्थ दंड व्रत की श्रेणी में ही आएगा। इसलिए अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। उसे सच्चे मार्ग पर लगाना चाहिए। हमेशा हम कोई भी कार्य करें तो उसका उद्देश्य ध्यान में रखना चाहिए। आज की आपाधापी की दुनिया में तेज गति से बढ़ते वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में आज के मानव समाज में दया, करुणा का अभाव हो गया है। आज का जमाना इतना बेदर्द हो गया है कि किसी अपरिचित की मौत किसी के लिए कुछ मायने नहीं रखती है। सड़क के किनारे कोई आदमी मृत या बेहोश पड़ा हो तो उसे देखते हुए हजारों लोग निकल जाते हैं, पर कोई भी उसकी मदद के लिए झिझक के मारे आगे नहीं आता है। इसी तरह शव यात्रा में शामिल लोगों में हंसी-मजाक की बातें राजनीतिक चर्चाएं देखने को मिलती हैं। ऐसे संवेदनहीन जमाने में भी हम भगवान महावीर को याद करते हैं। आज भी भगवान महावीर आउट ऑफ डेट नहीं, बल्कि एकदम अप-टू-डेट हैं। कोई भी आदमी अपने विचारों से ही अप-टू-डेट होता है। भगवान महावीर को भी उनके विचारों के लिए ही जाना जाता है। भगवान ने अहिंसा का जो उपदेश 2,550 वर्ष पहले दिया था, उसकी वर्तमान में जितनी आवश्यकता है, उतनी तो भगवान महावीर के काल में भी नहीं थी, क्योंकि आज हिंसा ने भयंकर रूप धारण कर लिया है। आज हम एक बारूद के ढेर पर बैठे हुए हैं। कहीं से भी एक चिंगारी उठे तो दुनिया चंद लम्हों में ही बर्बाद हो सकती है। हिंसा इतनी खतरनाक हो उठी है कि कदम-दर-कदम भय का वातावरण बना हुआ है। इस हिंसा का खत्म करने के लिए आज भगवान महावीर की अहिंसा की आवश्यकता है।

पहले लड़ाइयां व्यक्तियों के बीच होती थीं, बाद में परिवारों के बीच होने लगी और आज देश लड़ते हैं। रामायण की लड़ाई व्यक्तियों की लड़ाई थी। महाभारत की लड़ाई दो परिवारों के बीच की लड़ाई थी। सन 1965, 1971 और 1999 की लड़ाइयां दो देशों के बीच थी, जब व्यक्ति लड़ते हैं तो व्यक्ति बर्बाद होते हैं, जब परिवार लड़ते हैं तो परिवार बर्बाद होते हैं, जब देश लड़ते हैं तो देश तबाह होते हैं। देश में इंसानों के साथ-साथ खेत-खलिहान, कल-कारखाने, पशु-पक्षी, बाजार भी तहस-नहस हो जाते हैं। देश के तबाह होने का अर्थ है, इन सभी का विनाश हो जाना। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में कहा जाए तो आज आतंकवादी घटनाओं ने एक विनाशकारी रूप ले लिया है। इस आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है। देश में बढ़ती बम विस्फोट की घटनाएं दिल को दहला देने वाली होती हैं। सैकड़ों की संख्या में निर्दाेष लोग ऐसे में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इस दुख को वही परिवार ज्यादा महसूस करता है, जिस परिवार से कोई सदस्य इस दुर्घटना का शिकार हो जाता है। विनाश की इस भयंकर लीला को रोकने में यदि कोई समर्थ है तो वह एकमात्र भगवान महावीर की अहिंसा ही है। भगवान महावीर के समय में अहिंसा की आवश्यकता जितनी नहीं थी, उतनी आज है। भगवान महावीर के रूप में विश्व को उस देवदूत की आवश्यकता है, जो वैमनस्यता, हिंसा, घृणा, आतंकवाद से निजात दिलाकर प्यार, भाईचारा और सद्भाव का निर्माण कर सके, इसलिए आज के इस वर्तमान को भगवान वर्धमान की आवश्यकता है।

( *लेखक तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद में सिविल इंजीनियरिंग विभाग में सीनियर प्रोफेसर हैं।)*

 

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