कर्म अपना अपना (कहानी)
कर्म अपना अपना
(कहानी)
एक मूर्तिकार के 12 और 14 वर्ष के दो बेटे थे मूर्तिकार उन्हें सामने बैठाकर मूर्तियाँ बनाते और कहते की बेटा अपना कर्म करो ।बच्चे पूछते कर्म करने से क्या होगा। पिता ने सोचा इन्हे समझाना चाहिए ।कर्म करने से क्या होगा। उन्होंने 10 ×4 फुट का दो गढ्ढा खोदा और बेटों को अलग-अलग गड्ढों में रात भर के लिए छोड़ दिया, उनमें एक पत्थर व एक फुट की छोटी सलाक भी छोड़ दी। जब अंधेरा होने लगा तो दोनों को भूख प्यास सताने लगी, बड़ा बेटा भूख के कारण रोने लगा और चिल्लाने लगा मुझे निकालो छोटे बेटे ने सोचा की रात हो चुकी है, पिताजी सुबह ही निकालेंगे तो ,सलाक और पत्थर से कुछ करना चाहिए वह मिट्टी खोदने लगा और सीढ़ियां बनाने लगा ऐसे में उसे भूख, प्यास का एहसास भी नही हुआ। वह अपना काम करता रहा ।सुबह जब पिता उन्हें बाहर निकालने के लिए आए तो उन्होंने देखा की बड़ा बेटा तो रो रहा है और छोटा बेटा लगभग ऊपर तक सीढ़ियां बना चुका है ।तो उन्होंने दोनों को बाहर निकाला और बताया की यह कर्म है अपना कर्म करते रहना चाहिए ईश्वर ने सभी को समान रूप से मौका दिया है ,लेकिन कुछ लोग मौका गवा देते हैं और कुछ लोग अपना कर्म करते हैं इसीलिये हमेशा कर्म करना चाहिए और ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए।
“जो कर्म करेगा मेवा खाएगा
जो रोऐगा पछताऐगा”।
मेघाअग्रवाल
नागपुर – महाराष्ट्र