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“रंग भरी होरी” बुंदेली

“रंग भरी होरी” बुंदेली

होरी आई होरी आई,
हुरिया आई रंगभरी,
रंग भर भर खुशियांँ लाई,
हुरिया आई…..

कबलौं चलत तैयारियाँ,
बनत घर घर मिठाईयाँ,
बूंदी लड्डू घेवर गुजियाँ,
पपड़ी खुरमा और बतियाँ,
हुरिया आई…..

मलाई रबड़ी रस की गुलियांँ,
बाबा पीस रये घोट घोट भंगियाँ,
बनत सतमाल मलरियांँ,
करखैं पूजन लावें अंगरियाँ,
हुरिया आई…..

भुंसारे से करत अगुवाई,
घर अँगन होरी जरवाई,
सिंक रयीं गेहुँन की बलियां,
होरी में बन रयीं गकड़ियाँ,
हुरिया आई…..

लरकन दौरत ले पिचकारी,
गप गप खा रये मिठईयाँ,
खाना बनाये खैं भौजी दौरी,
देवर लला इते खौं अंईयाँ,
हुरिया आई…..

काये मल दैवें रंग गुलाल,
घिस घिस रंग डारें गाल,
बढ़े देवरा भौजी खौं रंग डारो,
उड़ेलो रंग हरिरो पीरो भैयां,
हुरिया आई…..

भीगी अंगिया चोली सारी,
भीगी चूनर गोटा फुलकारी,
सैंया आये मरौड़ीं बैयाँ,
चल तना गौरी डार गलबंहियाँ,
हुरिया आई…..

सैंया जी खेले होरी गुंइयाँ,
होरी रंग भीगी प्रेम रस में,
करत वरजोरी मदहोस में,
तन मन रंग डारो सररर गुंईयाँ,
हुरिया आई…..

सासु माँ आंई दौरी दौरी,
काये री लाज शरम तोखौं नैंया,
लाज शरम की मारी बहुरिया,
दुबके को काहुँ गैल मिलत नैंया,
हुरिया आई…..

होरी आई होरी आई,
हुरिया आई रंग भरी,
रंग भर भर खुशियाँ लायी,
हुरिया आई….।

काव्य रचना-रजनी कटारे ‘हेम’
जबलपुर म. प्र.

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