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मंजू की किताबों का बसंत पर विमोचन

भंडारा – बसंत पंचमी के दिन भंडारा (महाराष्ट्र) में प्रमुख अतिथि गण मा.आ. नाना भाऊ पंचबुद्धे (पूर्व राज्य मंत्री, महा.शासन), मा.आ. विनय मोहन पशिने (भंडारा पूर्व नगर सेवक व पूर्व नगराध्यक्ष) और मा. आ. परिणय जी फुके (पूर्व पालक मंत्री) के हाथों लेखिका मंजू अशोक राजाभोज की दो किताबों “मंजू के दिल से काव्यांजलि और एक उपन्यास- “जिंदगी के कई रंग, दोस्ती के संग” का विमोचन सम्पन्न हुआ |
मंजू जी ने अपनी वाणी से विद्या की देवी माँ सरस्वती को नमन करते हुए कहा………
“हे माँ शारदे अपनी कृपा हर पल,
यूं ही बनाए रखना हम सब पर |
आपके आशीर्वाद की बदौलत ही तय करता,
हर साहित्यकार यह साहित्य का सफर |
तभी तो आज महफिल में,
हो रही मेरी लेखनी की कदर |
बस ऐसे ही हरदम,
अपनी कृपा दृष्टि रखना हम पर |
ताकि आसान हो आगे का यह सफर |
हे माँ शारदे अपनी कृपा हर पल,
यूँ ही बनाए रखना हम सब पर ||”

मंजू के दिल से दो शब्द कहना चाहूँगी

जब इंसान इस दुनियाँ में आता है |
तब वह कुछ सपने अपनी आँखों में सजाता है |
बस ऐसा ही एक सपना मैंने भी अपनी लेखनी को लेकर देखा था जो आज जाकर पूरा हुआ है |
मैं अक्सर सोचा करती थी क्यों न मेरी लेखनी मेरी पहचान बने |
मैं रहूँ या न रहूँ लेकिन मेरे अल्फाज लोगों के दिलों हरदम जिंदा रहे |
बस इसी वजह ने और कुछ मेरे अपनों के प्रोत्साहन ने मुझे ये बुक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया | मुझे प्रोत्साहन देने वालों में कुछ मेरे अपने और कुछ मेरे पाठकगण है |
मैं अशोक जी के लिए भी कुछ कहना चाहूँगी –
ए मेरे हमसफर हर कदम पर साथ जो तेरा है |
कोई सपना कभी रहता न अधूरा मेरा है ||
मंजू अशोक राजाभोज जी ने जो मंजू के दिल से काव्यांजलि लिखी है वो किताब अपनी स्व. माँ सौ. शीला देवी उजवने को समर्पित की हैं जिसमें मेरी 103 कविताओं का संग्रह है और उनकी दूसरी किताब जो एक उपन्यास है वह उन सहेलियों की कहानी है जिन्होंने अपने बचपन के साथ-साथ जवानी की दहलीज पर कदम रखने तक सबका साथ रहा लेकिन फिर सबकी मंजिल और उस मंजिल तक पहुँचने वाली राहें भी जुदा हो गई लेकिन फिर जिंदगी के इस सफर में सभी बरसों बाद मिली |
लेकिन वो सहेलियाँ कब,कैसे और कहाँ मिली और मिलने पर किसके जिंदगी के कौन से राज उजागर हुए यही जानने के लिए जरूर-जरूर पढ़ियेगा मंजू का उपन्यास “जिंदगी के कई रंग, दोस्ती के संग” आपको लगेगा आप आप अपनी जिंदगी के बारे में पढ़ रहे हैं।
अतिथियों ने मंजू अशोक राजाभोज जी को बधाई देते हुए उनके सृजन धर्मिता की सराहना की।

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