आगरा के अंतराष्ट्रीय सेमिनार में डॉ आठिया ने किया शोधपत्र का ऑनलाइन वाचन
देवरी कलां – डा. बी आर आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में 16 एवम 17 जनवरी को कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषा विज्ञान विद्यापीठ (केएमआइ), कथा (यूके) लंदन, वैश्विक हिंदी संस्थान नीदरलैंड, अखिल विश्व हिंदी समिति कनाडा एवम केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ‘विश्व पटल पर हिंदी ‘भाषा और साहित्य’ विषय पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमे देश विदेश के हिंदी के प्रख्यात विद्वानों ने अपने व्याख्यान दिए। नीदरलैंड से आई वरिष्ठ साहित्यकार डा. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार विदेशों में रहने वाले हिंदी लेखकों द्वारा हुआ है। भारतीयों ने हिंदी भाषा परिवार का विस्तार किया है। विदेश में हम हिंदी को महतारी भाषा कहते हैं। विदेश में रहने वाले साहित्यकारों के लेखन को प्रवासी साहित्य कहने पर उन्होंने कहा कि साहित्य प्रवासी नहीं होता है, साहित्यकार प्रवासी होता है। रूसी राजकीय मानविकी विश्वविद्यालय की डा. इंदिरा गाजिएवा ने कहा कि संगोष्ठी का उद्देश्य विश्व पटल पर हिंदी को स्थापित करना है। रूस के लोग हिंदी सीखना चाहते हैं, जिससे वह भारत आ सकें। संगोष्ठी में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व सागर जिले के डॉ एस आर आठिया ने किया। उन्होंने विश्व भाषा हिंदी : भारत के प्रयास और हिंदी का वर्तमान स्वरूप विषय पर अपने शोध पत्र का ऑनलाइन वाचन किया। आठिया ने अपने शोध पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल सहित भारत में कार्यरत संस्थाएं जैसे केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, हिंदी निदेशालय नई दिल्ली , राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई, सहित विभिन्न विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनोर , विश्व हिंदी परिषद, प्रेरणा हिंदी प्रचारनी सभा जैसे गैर सरकारी संगठनों का भी हिंदी के उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों का विशेष रूप से उल्लेख किया है। बड़वानी के शिक्षक डॉ विजय पाटिल ने भी अपने शोध पत्र का ऑनलाइन वाचन किया।
ओसाका विवि जापान के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डा. मिकि निशिकोका, उज्बेकिस्तान के ताशकंद राजकीय प्राच्य विद्या संस्थान से आईं प्रो. उल्फत मुहीबोबा, प्रो. पूरनचंद टंडन, प्रो. सुरेंद्र दुबे, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो. सुनील बाबूराव कुलकर्णी, केएमआइ के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर, कुलसचिव डा.राजीव कुमार और डा.नितिन सेठी ने भी अपने व्याख्यान दिए । संगोष्ठी में गिरमिटिया मजदूरों के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी भी लगाई गई। उद्घाटन सत्रके बाद दो समानांतर सत्रों में प्रो.उमापति दीक्षित, प्रो. नवीन चंद्रलोहानी, प्रो. शिखा श्रीधर, डा.विवेकमणि त्रिपाठी, प्रगति गुप्ता, डा. लक्ष्मी झमन, प्रो. बीना शर्मा समेत अन्य ने विचार प्रस्तुत किए।
विदेशों में नहीं हिंदी का मानक पाठ्यक्रमः
लंदन से आए वरिष्ठ कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि अंग्रेजी की खासियत यह है कि वह सभी देशों में एक सी लिखी और बोली जाती है। विदेशों में हिंदी का ऐसा कोई मानक पाठ्यक्रम नहीं है, जिसके आधार पर वहां उन्हीं की भाषा में हिंदी सिखाई जा सके। भारतीय संस्थान ऐसा पाठ्यक्रम बनाएं, जिससे हिंदी को विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाया जा सके। ऐसे शिक्षक हों जो हिंदी को रशियन, फ्रेंच व स्पेनिश में पढ़ा सकें। उन्होंने कहा कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ाना बंद हो चुका है, लेकिन वह पूरे विश्व में हिंदी के ए और ओ लेवल के प्रमाण पत्र देने को परीक्षा पाठ्यक्रम करा रही है। हमें इस दिशा में धरातल पर काम करना होगा।
तीन एमओयू हुए
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में तीन एमओयू हुए। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी ने लंदन स्थित सास्कृतिक साहित्यिक संस्था यूके, हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन नीदरलैंड और अखिल विश्व हिंदी समिति कनाडा के साथ हुए एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर 31 आलेखों की पुस्तक विश्व पटल पर हिंदी भाषा और साहित्य’ का विमोचन भी हुआ। शेष प्राप्त आलेखों का प्रकाशन बाद में किया जाएगा।
अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं भारतीय
कनाडा से आए साहित्यकार व आध्यात्मिक कवि गोपाल बघेल “मधु’ ने कहा कि भारतीय हिंदी की अधिक इज्जत न कर अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं। विदेशों में हिंदी की आवश्यकता बढ़ी है और वहां मार्केटिंग के लिए हिंदी सीखना जरूरी हो गया है। कनाडा में हिंदी में बहुत काम हो रहा है, लेकिन इस दिशा में अधिक प्रयास करने की आवश्यता है।