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सम्मान पत्रों का बाढ, जी भर के जितना मर्जी उतना काढ़।

         भारत देश सम्पूर्ण विश्व का दर्शन है। सृष्टि प्रारंभ से ही यहां के सभ्यता संस्कृति सबसे उन्नत और विकसित रही है। इसमें कोई किंतु परंतु नहीं है। वैदिक ज्ञान, विज्ञान, शिक्षा का प्रवाहन, छः प्रकार की ऋतुएं का आवागमन, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का उत्पादन, तमाम औषधियों, खनिज संपदाओं का भंडारण, अनेकानेक नदी, झरनों, तालाबों एवं समुद्र का संसाधन इसे औरों से अलग तथा समृद्ध बनाता है। अनादि काल से ही इस जंबू द्वीप, भारत भूमि पर एक से बढ़ कर एक महान विभूति हुए जो अपने असाधारण कर्मों, अथक परिश्रम, तपस्या त्याग से समाज देश काल के लिए अमिट छाप छोड़ गए। इनमें से बहुत सारे तो ऐसे कर्मयोगी हुए जिनके जीवन काल रहते उनके जन उपयोगी क्रियाकलापों को आम जन समझ ही नहीं पाए। अंततः उनके देहावसान उपरांत उनके कर्मयोगिता को समाज समझ पाया तथा उन्हें मरणोपरांत देश दुनियां के सर्वश्रेष्ठ सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया गया।
 
उन्नीवीं, बीसवीं सदी के पहले असाधारण महानुभावों के दिव्य, परोपकारी कर्म को प्रेरणा प्रसाद मानकर समाज के साधारण जन उनका अनुश्रवण किए तथा उनके पदचिन्हों पर चल कर अपने सत्यकर्मों से समाज को अभिसिंचित करने का कार्य करते रहें। वास्तव इस प्रकार उनके पदचिन्हों पर आचरण व्यवहार अनुपालन से उन असाधारण महानुभावों का असल में सम्मान है तथा उन असाधारण महानुभावों का स्वयं में आत्मसम्मान तथा आत्मसंतुष्टि की प्राप्ति भी है। सम्मान प्राप्ति वह दिव्य अनुभूति है जो स्वयं को तो आनंदित, गौरवान्वित महसूस करता ही है साथ ही साथ अन्य दूसरे व्यक्तियों को भी सत्कर्म करने को प्रेरित करता है। इससे एक सुंदर, सुव्यस्थित, मर्यादित तथा अनुशासित सामाजिक परिवेश का निर्माण होता है। सम्मान से व्यक्ति के भीतर मनुष्य तन प्राप्ति के अवसरों को पापाचर, दुराचार में पड़कर दुर्गति की ओर न जा कर सदाचार को अपना कर सद्गति की ओर जाने हेतु प्रेरणा का प्रज्जवलित दीप स्तंभ मिल जाता है।
 
सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलयुग के प्रारंभ में शासन व्यस्था चलाने वाले राजाओं ने भी विशिष्ठ कर्म, सेवा, सहयोग करने वाले अपने नागरिकों को पारितोषिक तथा सम्मान करते थें। वास्तव में सम्मान पाने का अर्थ यही है की व्यक्ति द्वार निस्वार्थ, सम्मान पाने की लालसा रहित कोई जन सहयोग, समाज कल्याणकारी, मानव हित परोपकारी कार्य में निरंतर तल्लीन है। ऐसे प्रयत्नशील व्यक्ति के ऊपर जब किसी बड़ी सामर्थ्य इकाई को नजर पड़े तो उसके पुनीत कार्यों के एवज में उसे उचित सम्मान देने से अपने आप को रोक न पाए तथा प्रसंशा के स्वर मुंह से स्वत: निकलने लगे। वास्तव में ऐसे सम्मान लेन देन से दोनो के आत्माओं को आत्मसंतुष्टि मिलेगी तथा नए लगनशील लोगो के लिए प्रेरणाश्रोत के आत्मबिंदु भी होगा।
 
बीसवीं इक्कसवीं शताब्दी में कलयुग के घोर कलुषित वातावरण में अधर्म, असत्य, झूठ, फरेब का घना कोहरा छाने लगा तो मौखिक, मानद सम्मान के स्थान पर कागज के टुकड़े पर लिखित प्रामाणिक सम्मान पत्रों आदान-प्रदान का प्रचलन तेजी से बढ़ा। आगे चलकर शासन सत्ता, सरकार के साथ-साथ सरकार से मान्यता प्राप्त गैर सरकारी संगठन भी व्यक्ति के असाधारण कार्यों के एवज में सम्मान पत्र प्रदान करने के हेतु अधिकृत इकाई बने।
किसी भी संस्थान के द्वारा सम्मान देना कोई बुराई नहीं है। सम्मान के हकदार व्यक्ति को उसके असाधारण कार्य, परिश्रम, एवं त्याग के एवज में आवश्य उचित सम्मान एवं प्रोत्साहन नि:संदेह मिलना चाहिए। परंतु हमने यह अनुभव किया की इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दसक के अखरी में और तीसरे दसक के प्रारंभ में सम्मान पत्रों के आदान प्रदान का बाढ सा आ गया है। कोई भी व्यक्ति इस सम्मान पत्रों के बाढ़ से जितना चाहे उतना छान लें। सूखे रेगिस्तान के प्रचंड गर्मी में एक प्यासा व्यक्ति एक बूंद शीतल जल की महत्ता को भली भांति समझ सकता हैं। वहीं सावन भादो के अप्रत्याशित जल के बाढ़ में एक बूंद पानी की कीमत भला कोई क्या समझेगा। ठीक इसी प्रकार सम्मान पत्रों की इस बाढ में सैंकड़ों सम्मान पत्र पाने के बाद भी संतुष्टि नहीं है वह हजारों, हजार अधिक सम्मान पत्र पाने की लालसा लिए व्हाट्सएप फेसबुक ग्रुपों पर टकटकी लगाए बैठे है की कहां से किस संस्थान से रुपया अथवा मुफ्त में सम्मान पत्र मिल रहा है उसे बटोरा जाए। सम्मान पत्रों के सतको का भी सतक लग जाए तो यह वर्ल्ड रिकॉर्ड हो जायेगा। उसमें भी यदि भौतिक कार्यक्रम में उपस्थित न होकर मोबाइल पर डिजिटल सम्मान पत्र मिल जाए तो सोने पर सुहागा। क्योंकि यह युग डिजिटल क्रांति का है। ऐसे महानुभावों के मनोदशा के दृष्टिगत बहुत सारे संस्थाओं ने सम्मान पत्र प्रदान करने का व्यापारीकरण शुरू कर दिया और कुछ ने तो बहुत बड़े मुनाफा का व्यापार भी किया कुछ कर रहे हैं। पहले अप्रतिम कार्यों के एवज में नि:शुल्क सम्मान मिलते थें अब अप्रतिम कार्य नहीं बल्कि उच्च किमतो में एक बहुत बड़े सुसज्जित मंच पर गणमान्य लोगो के मौजूदगी में जो चाहो वह नाम अलंकरण का सम्मान पत्र प्राप्त कर लो। बहुत सारी संस्थाओं ने सौ, दो सौ, पांच सौ, हजार, दो हजार, पांच हजार, दस हजार, पचास हजार तथा कुछ लाख, दो लाख ले कर रुपय के उसी कीमत के अनुसार कार्यक्रम की भव्यता बनाते हुए सम्मान समारोह रखते हैं। किसी किसी ऐसे भव्य आयोजन में आने वाले गणमान्य लोग भी अपने आने का एवम समय देने का रुपए लेते हैं। कोई भी मामूली व्यक्ति डॉक्टरेट की मानद उपाधि जैसे दुर्लभ बेशकीमती सम्मान को भी दस हजार से लेकर ढाई लाख रुपए तक के किमतो में बड़े सहूलियत से खरीद सकता है। ऐसी संस्थाओं से जब पूछा जाता है की आप सम्मान के एवज में सम्मान पाने वाले व्यक्तियों से रुपए क्यों लेते हैं तो उनका स्पष्ट सुसंगत विनम्र प्रति उत्तर रहता है की हम सम्मान पत्र का कोई कीमत नहीं लेते, कार्यक्रम की व्यवस्था हेतु अपने संस्था में दान लेते हैं। जबकि दान की मर्यादा तो व्यक्ति के सामर्थ्य और इच्छानुसार है। पर इन संस्थाओं का सम्मान प्राप्ति हेतु एक निश्चित मूल्य दर निर्धारित रहता है। सम्मान समारोह जैसे मानवीय सरोकार, धार्मिक कार्यों के आयोजन करने में होने वाले व्यय हेतु समाज में धन्नासेठ, भामाशाह का सहयोग तथा सरकारी अनुदान का विकल्प है। सम्मान पाने वाले व्यक्तियों से रुपए लेने के बजाए धन्नासेठ, भामाशाह या सरकारी अनुदान हेतु अनुनय विनय कर स्वैच्छिक दान प्राप्ति का प्रयास किया जा सकता है।
 
ऐसे सैकड़ों हजारों सम्मान पत्र प्राप्त करने वालो के लिए इन व्यापारियों ने गरम लोहा पर एक और चोट किया की इतने सारे सम्मान पत्र प्राप्त होना दुर्लभ तो है ही साथ ही साथ यह विश्व में अनोखा, अनूठा तथा पहला है। उनके लिए विभिन्न नामों से वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराएं जिसके लिए रजिस्ट्रेशन, प्रोसेजिंग शुल्क का निर्धारित मोटा रकम होता है। वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने हेतु ऐसे व्यक्ति के पास यदि रुपए पर्याप्त न हो तो अपनी पत्नी, परिवार के गहने बेच कर या ऋण लेकर भी अदा करने पड़े तो वह सहर्ष स्वीकार करता है। मुझे याद आता है पिछले वर्ष जब हमने सतगुरु कबीर आश्रम सेवा संस्थान बड़ी खाटू नागौर राजस्थान के पीठाधीश्वर महंत श्री डॉ नानक दास जी महराज के मार्गदर्शन में “आधुनिक भारत के निर्माण में सद्गुरु कबीर का योगदान” नामक पुस्तक लिखा था। जिसके लिए देश के कई गणमान्य लोगों का एवम कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री का शुभकामना संदेश प्राप्त हुआ था तथा इसकी प्रसंगिगता को देखते हुए देश के 27 भाषाओं में वहां के क्षेत्रीय भाषा के विद्वानों ने अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद किया। यह पुस्तक देखते ही देखते असाधारण व ऐतिहासिक हो गया और 05 फरवरी 2023 के दिन नई दिल्ली के जनपथ रोड स्थित डॉ. आंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय हॉल में आयोजित कबीर कोहिनूर सम्मान समारोह में 27 भाषा के विद्वानों के मौजूदगी में एक साथ सम्मानित मंच से गणमान्य लोगो तथा देश भर से नि:शुल्क चयनित दो सौ कबीर कोहिनूर आवर्डी के बीच 27 भाषाओं में विमोचन हुआ। जिसका गूगल पर साक्ष्य सहित मौजूद वीडियो मौजूद है। ऐसा वास्तव में देश दुनियां का पहला असाधारण सुकृत्य है। परंतु हमने कई वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड वाले संस्थानों से नाम दर्ज करने हेतु संपर्क साधा पर उनका कम से कम तीस हजार का शुल्क निर्धारित है जो मेरे आत्मसम्मान के विपरीत है। रुपए देकर रिकॉर्ड अर्जित करना तथा सम्मान प्राप्त करना मुझे कतई पसंद नहीं है। ज्ञात हो की इसी उपलब्धि के लिए और इसी कार्यक्रम में सौहार्द शिरोमणि डॉ. सौरभ पाण्डेय के प्रयास से मुझे पिन्युमा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, जिम्बाब्वे के द्वारा साहित्य लेखन में डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली परंतु वह पूर्णतः निशुल्क मेरे कार्यों के एवज में था जो वास्तव में आनंद की अनुभूति करता है।
 
कबीर कोहिनूर सम्मान 2023 और 2024 हेतु असाधारण प्रतिभाओं के चयन के दरमियान हमने यह आकलन किया कुछ लोग जितने बड़े-बड़े नामों के सैंकड़ों, हजारों अलंकरण सम्मान पत्र पाए हैं उसके सापेक्ष उनके पास ठोस कार्य की सुबूत नहीं है। उनके कार्यों का चर्चित राष्ट्रीयकृत मुद्रित अखबारों में प्रकाशन बेहद कम है। वैसे अखबारों में प्रकाशन है जिनके पाठक बहुत ही कम है। लेखन शैली या संबंधित कार्य की भूमिका तो ठीक है परंतु प्रदर्शन हेतु सुसज्जित संग्रह मौजूद नहीं है। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की सामाजिक सरोकार संबंधित कार्यों से ज्यादा किसी भी संस्थान से सम्मान पाने की होड़ में कुछ आदरणीय सज्जन ज्यादा तल्लीन हैं।
    हमने मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति के विवरण देखा जिसमें उल्लेख था गत 84 माह में 1,856 विभिन्न सम्मान पत्रों की प्राप्ति हुई। अर्थात पिछले 2,520 दिन में 1,856 सम्मान पत्र यानी की 0.73 सम्मान का औसत प्रति दिन। उसमें से लगातार दो वित्तीय वर्ष का औसत 1.54 का। आप कल्पना करे जो व्यक्ति पिछले 7 वर्षो में प्रतिदिन एक से डेढ़ की औसत से सम्मान पत्र प्राप्त कर रहा हो वह समाज हित में क्या काम करता होगा। भारी तादात में सम्मान पत्र बटोरने के अलावा कहां फुरसत है उसे..! मैं तो इस महान उपलब्धि देख कर हतप्रभ रह गया। ऐसी उपलब्धि के लिए वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के पन्ने छोटे पड़ जायेंगें। ऐसी उपलब्धि के लिए चांद और मंगल के सतह पर अंकित करना होगा।
कार्य यदि असाधारण कोटि का तथा किसी को दिखाने लायक न हो अथवा कम हो और उसके सापेक्ष बायोडाटा में सकड़ो हजारों सम्मान प्राप्ति का सूची उल्लेखित हो तो वैसे सम्मान का विवरण मुल्य हीन, अर्थहीन नजर आता है। वैसे भी इस देश में सम्मान पत्रों का बाढ है। कोई भी व्यक्ति बिना कोई पर्याप्त परिश्रम किए किसी भी अलंकरण का सम्मान ले सकता है।
 
हमने ऐसा भी देखा की जो पद्य के कवि हैं उन्हें मुंशी प्रेम चंद सम्मान मिला हुआ है। जो गद्य के लेखक हैं वे राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर सम्मान प्राप्त हैं। मैं अक्सर विभिन्न व्हाट्सएप, फेसबुक पटल पर देखता रहता हूं बस एक फोटो, नाम, परिचय भेज दो तथा कुछ मामूली शुल्क भेज दो, ई सम्मान पत्र अथवा भौतिक सम्मान पत्र आपके मोबाइल एवं घर तक प्रेषण कर दी जाएगी। ऐसे सम्मान पाने वाले व्यक्ति को यह पता नहीं की जब वे उनकी संस्था से सम्मान पत्र पाकर अपने सोशल मीडिया अकाउंट जैसे की फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर साझा करेंगें तो एक तरफ उनकी संस्था का नि:शुल्क सहजतापूर्ण प्रचार भी होगा तथा उन संस्थाओं को कुछ धनार्जन, आमदनी भी हो रहा है।
 
बिना कोई ठोस आधार के रुपए पैसा लेकर विभिन्न नाम अलंकरण के सम्मान पत्र बांटने वाले संस्थानों पर सरकार को शख्त होना पड़ेगा अन्यथा समाज में असंतुलन पैदा हो जायेगा और असल में प्रतिभावान, असाधारण व्यक्तित्व का उदय कम होगा। पैरवी, जुगाड तथा रुपए पैसे वाले व्यक्ति के घर सम्मान पत्र खूबसूरत सोकेश में सुसज्जित होंगें और समाज कल्याण हेतु मेहनती, असाधारण कार्य करने वाले व्यक्ति के मन में असंतोष, नकारात्मकता की भावना विकसित होगी। इन सभी पहलुओं पर विभिन्न क्षेत्रों में कार्तव्यशील समाज सेवी विचार करना होगा की ऐसे सम्मान पत्रों के ढेर उनके घर में कूड़ा के ढेर से ज्यादा नहीं हैं। जीवन का उद्देश्य लक्ष्य हजारों सम्मान पत्र एकत्रित करना न हो बल्कि समाज के अंतिम हसीय तक के उत्थान संबंधी कार्यों में हजारों परोपकार की भावना हो तथा वैसा कार्य भी परिलक्षित हो जिससे उन्हें सम्मान हेतु चयन होने पर आत्मानुभूति में गर्व का एहसास हो। वास्तव में इससे मिले आत्मसम्मान देश दुनियां के सर्वोच्च सम्मान से लाखो गुना ज्यादा आनंददायक है।
©आलेख: डॉ. अभिषेक कुमार
भारत साहित्य रत्न व राष्ट्र लेखक उपाधि से अलंकृत

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