विदेशों में हिंदी शिक्षण : देवनागरी लिपि हिंदी भाषा की विरासत
विदेशों में हिंदी शिक्षण : देवनागरी लिपि हिंदी भाषा की विरासत
साझा संसार फाऊंडेशन नीदरलैंड की ओर से ‘विदेशों में हिंदी शिक्षण, देवनागरी लिपि हिंदी भाषा की विरासत’ ऑनलाइन आयोजन, नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरि सिंह पाल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। आयोजन में डॉ मीरा गौतम मुख्य अतिथि तथा यूक्रेन से यूरी बोत्वींकिन विशिष्ट अतिथि रहे। इस आयोजन में, दुबई से डॉ उर्मिला चौधरी, डेनमार्क से अर्चना पैन्यूली, बुल्गारिया से डॉ मौना कौशिक, लंदन गुरुकुल से इंदु बारौट चारण व डॉ सुनील कुमार परीट ने भाग लिया।
इस आयोजन के संयोजक व साझा संसार फाउंडेशन नीदरलैंड के अध्यक्ष रामा तक्षक ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि देवनागरी लिपि भारतीय संस्कृति व भारतीय ज्ञान परम्परा का रथ है। आज यही रथ अपने घर में और भारत से बाहर भी चुनौतियों से जूझ रहा है। विदेशी लोग मूलतः भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने के लिए ही हिंदी भाषा सीखना चाहते हैं। अतः एक भारतीय संस्कृति के जिज्ञासु को देवनागरी लिपि के वर्णों की ध्वनि साधना की सीख के साथ ही हिंदी भाषा सिखाई जाए न कि रोमन लिपि के जरिए।
डॉ हरिसिंह पाल ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि देवनागरी लिपि के उपयोग का प्रचार प्रसार आसान काम नहीं है। यदि मन में लगन और इच्छाशक्ति हो तो सब सम्भव है। लिपि के साथ भाषा ही नहीं अपितु संस्कृति और लोक बातें भी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हमने कश्मीरी, सिंधी, उड़िया, कोंकणी और कन्नड़ भाषाओं को नागरी लिपि में लिखकर पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किया है। हमारा प्रयास सतत रूप से जारी है। विनोबा भावे ने कहा था कि विश्व की किसी भी भाषा को लिखने की सामर्थ्य नागरी लिपि में है।
आयोजन की मुख्य अतिथि डॉ मीरा गौतम ने बताया कि देवनागरी लिपि को अपनाने का मध्यम मार्ग ही पराकाष्ठा तक ले जायेगा। समय की यही जरूरत है। विदेशों में हिंदी शिक्षण हेतु सबसे पहले रोमन लिपि का देवनागरी लिपि में लिप्यंतरण हो। देवनागरी लिपि की ध्वनियों की समझ आने के बाद हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं का शिक्षण देवनागरी लिपि में ही हो।
आयोजन के विशिष्ट अतिथि कीव विश्वविद्यालय यूक्रेन से डॉ यूरी बोत्वींकिन, हिंदी भाषा एवं भारतीय साहित्य के अध्यक्ष ने बताया कि देवनागरी लिपि के माध्यम से यूक्रेन में हिंदी पिछले तीस वर्ष से यानी 1995 से हिंदी मुख्य विषय के रूप में पढ़ाई जा रही है। हिंदी भाषा सहित भारतीय संस्कृति, इतिहास दर्शन, धर्म आदि सभी विषयों पर यहाँ काम हो रहा है। भारतीय जीवन के सभी पहलुओं को पढ़ाया जाता है। उन्होंने बल देकर कहा कि भारत को समझने के लिए देवनागरी लिपि सीखना अनिवार्य है। रोमन लिपि को किनारा करने का प्रयोग भी हमने किया है। बिना ठीक से उच्चारण सीखे छात्र मजाक का पात्र बन जाता है। उन्होंने बताया कि रोमन लिपि पर शुरुआत अवश्य करनी चाहिए लेकिन वहीं पर रुकना नहीं चाहिए। जैसे ही उच्चरण आ जाए। उसके बाद दो-तीन सप्ताह में, देवनागरी लिपि के वर्णों का अभ्यास भी सहज ही आ जाता है।
दुबई से डॉ उर्मिला चौधरी ने बताया कि यूएई में हिंदी भाषा का भरपूर प्रयोग होता है। दूसरे शब्दों में यूएई में हिंदीमय वातावरण है। यूएई भारत का एक कौन सा लगता है। हालांकि देवनागरी लिपि में हिंदी सीखने में शिक्षण की चुनौतियां भी हैं। अंग्रेजी से लगाव के कारण, नई पीढ़ी हिंदी का प्रयोग नहीं करती है। हालांकि यहाँ के शेख भी हिंदी में बात करते हैं।
डेनमार्क से अर्चना पैन्यूली ने बताया हिंदी भाषा में भारत का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता है। डेनमार्क में हिंदी के अध्ययन, अध्यापन की व्यवस्था है। इसमें हमारी अप्रोच हॉलिस्टिक होनी चाहिए। यहां हिंदी भाषा को केवल भाषा के रूप में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है। हमारे सामने व्याकरण संबंधित चुनौतियां अवश्य हैं। उन्होंने श्रीमती कुमुद माथुर का बीस वर्ष से हिंदी पढ़ाई जाने के अनुभव को साझा करते हुए बताया कि हिंदी के प्रति रुचि बनाए रखने में दिक्कत है। यहाँ उचित शिक्षण संस्थाओं का अभाव है और सही सामग्री का उपलब्ध नहीं होना भी अखरता है।
बुल्गारिया से डॉक्टर मौना कौशिक ने बताया कि बुल्गारिया के दिलों में हिंदी है। हिंदी भाषा का सम्मान है। हिंदी सीखने वाले सोफिया विश्वविद्यालय के भारतीय विद्या विभाग में, देवनागरी लिपि में शिक्षण पाते हैं।
सोफिया विश्वविद्यालय में देवनागरी लिपि माध्यम से शिक्षण, विशेष स्थान रखता है। यहाँ पिछले चालीस वर्ष से आयुर्वेद पढ़ाया जा रहा है। बी ए, एम ए के कोर्स चालू हैं। यहाँ संस्कृत भाषा भी पढ़ाई जाती है। उपनिषदों का बुल्गारिया की भाषा में अनुवाद भी हुआ है। उन्होंने बताया कि देवनागरी के बिना हिंदी नहीं है। नया छात्र देवनागरी लिपि में दस दिन में अपना परिचय, देवनागरी लिपि में लिखना, दो सप्ताह में सीख जाता है। साथ ही भाष्य संवाद एक माह में सीख जाता है।
गुरुकुल लंदन की संचालिका इंदु बारौट चारण ने कहा कि देवनागरी लिपि का चार्ट व अलग से पाठ्यक्रम हो। माता-पिता को विदेश में रह रहे बच्चे के मन में देवनागरी लिपि व हिंदी भाषा के प्रति ललक पैदा करनी पड़ेगी। हिंदी भाषा गुरुकुल लंदन में भी पढ़ाई जाती है। देवनागरी लिपि को सीखने से भारतीय सांस्कृतिक स्रोत खोलते हैं। साथी वृद्ध पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच संवाद के रास्ते भी खुलते हैं। हिंदी की शुरुआत हिंदी सीखने की शुरुआत भारतवंशियों को अपने घर से ही शुरू करनी होगी। इस समय हिंदी विश्व में बहुत प्रसिद्ध भाषा है। साथ ही यह हम सब प्रवासी भारतीयों की जिम्मेदारी है कि इस हिंदी भाषा की लोकप्रियता को देवनागरी लिपि के माध्यम से वैश्विक स्तर पर सशक्त किया जाए। देवनागरी लिपि को संरक्षित किया जाए।
कर्नाटक से डॉ सुनील कुमार परीट ने कर्नाटक में हिंदी की चर्चा करते हुए बताया कि हिंदी भाषा को व्याकरणिक रूप में पढ़ाया जाए। मॉरीशस से सोमदत्त काशीनाथ व चैन्नई से राज लक्ष्मी ने भी देवनागरी लिपि की महत्ता पर अपने विचार व्यक्त किये।
इस आयोजन का सफल संचालन लक्जमबर्ग से मनीष पांडेय ने किया।